Monday, September 22, 2008

संस्कृत को समृद्ध नहीं करेंगे तो संस्कृति कैसेे बचेगी?

संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी है । देववाणी है, व्याप क्षेत्र में निवास र रहे जनमानस ी आस्था ा प्रती है । तमाम भारतीय पौराणि ग्रंथों ी रचना संस्कृत में हुई है, इसलिए इस भाषा े प्रति ए धार्मि श्रद्धा ा भी भाव है । भारतीय संस्कृति में हिंदू धर्म केे अनुयायियों े जन्म, विवाह से लेर मृत्यु त े तमाम र्मांड संस्कृत में ही संपन्न होते हैं । इस कारण इस भाषा े प्रति व्याप आदरभाव और भक्ति ी सीमा त ी अटूट आस्था है । भारतीय जनमानस ो सदियों से संजीवनी प्रदान र रहे वेदों ी ऋचाएं, भारतीय जीवन-दर्शन ा दर्पण श्रीमद्भगवद्गीता े श्लो और सभी पौराणि ग्रंथ संस्कृत में ही हैं । योग, ध्यान, भारतीय दर्शन और आयुर्वेद विदेशियों ो आर्षित रते हैं और इन विषयों से जुडी अने जानारियां संस्कृत में ही हैं । संस्कृत ी वैश्वि महत्ता भारतवासियों े लिए गौरव ा विषय भी है ।
विदेशों में भारतीय पुरोहितों, संस्कृत े विद्वानों और र्मांडी पंडितों ी मांग बढ़ी है । देश ी सीमाओं ो पार े जिन भारतवासियों ने विदेशों में अपना बसेरा बनाया है, उने लिए वहां संस्ार-र्म राने े लिए पंडितों ी जरूरत होती है । ऐसे में विदेश में संस्कृत ी पताा गर्व के साथ फहराने लगी है । लेिन यही अंतिम सत्य नहीं है ।
सच यह है ि आधुनि भारत में संस्कृत े विास े लिए उस तरह ाम नहीं हुआ, जैसा होना चाहिए था । संस्कृत पढऩे वालों े लिए न रोजगार े श्रेष्ठ अवसर उपलब्ध राए गए और न ही उसे प्रचार-प्रसार े लिए ठोस तरीे से ाम िए गए । जो संस्कृत विद्यालय देश में चल रहे हैं, उनी भी अपनी तमाम समस्याएं हैं । हीं अध्यापों ो वेतन नहीं है तो हीं भवन जर्जर पडे हैं । संस्कृत विद्यालयों ा आधुनिरण नहीं हुआ है । संस्कृत े विास े लिए गठित संस्थाएं आर्थि संट से गुजर रही हैं । संस्कृत पठन पाठन में भïिवष्य ी संभावनाएं घटने ारण उससे विद्यार्थियों ा मोहभंग हो रहा है ।
ऐसी हालात में जरूरी है ि संस्ृत ो प्रतिष्ठित रने और इस भाषा में डिग्री पाने वालों ो तरक्की े नए रास्ते खोलने े लिए ठोस दम उठाए जाएं । मौजूदा दौर में विषय ोई भी पढें लेिन ामाज में ंप्यूटर ए अनिवार्य जरूरत बन गया है । अधितर ंप्यूटरों पर अंग्रेजी में ाम िया जाता है । इसलिए संस्ृत े साथ ही अंग्रेजी ी जानारी अगर होगी तो और ैरियर संवारने में मदद ही मिलेगी । संस्कृत ी पढाई े साथ ंप्यूटर ी भी शिक्षा दी जाए ताि संस्कृत े विद्यार्थी आधुनि युग ी जरूरतों े अनुसार रोजगारोन्मुखी परिणाम दे सें । साथ ही ए अन्य भाषा ो सीखना भी उने लिए अनिवार्य र दिया जाए ताि वह उस भाषा क्षेत्र में संस्कृत ी महत्ता ो रेखांित र सें ।
संस्कृतसाहित्य ा अन्य भाषाओं में अनुवाद भी बडी संख्या में सुलभ राया जाना चाहिए । इससे उपभोक्तावादी इस युग में दूसरी भाषा े लोग संसृत ी महत्ता से परिचित होंगे । इसा लाभ संस्कृत से जुडे लोगों ो मिलेगा । संस्कृत ो पुराना गौरव वापस मिल गया तो भारतीय संस्कृति ी जडें और मजबूत होंगी । साथ ही भारतीय संस्कृति ो दुनिया में और विस्तार मिलेगा ।

12 comments:

सचिन मिश्रा said...

sahi kaha aapne.

Udan Tashtari said...

सहमत हूँ आपसे.

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेशक..
बिल्कुल सही कहा आपने..
सामयिक चिंतन का विषय है ये..

Shastri JC Philip said...

बहुत अच्छा एवं सशक्त लेख! आज सारथी पर इसका उद्धरण दिया गया है, जरा देख लें!! संस्कृत मेरी द्वितीय भाषा है!!

-- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहतरीन तहरीर...

P.N. Subramanian said...

असहमत होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.
कंप्यूटर की शिक्षा को सभी के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए.

शोभा said...

बहुत सुन्दर और प्रभावी लिखा है। बधाई स्वीकारें।

Unknown said...

एक अच्छे लेख के लिए धन्यवाद और वधाई.

art said...

bahut hi sashakt aur prernadaayak lekh padha aaj aapke blog par...aisi baaten hi hame jod sakti hai...

Anonymous said...

bilkul sach likha hai apne, dhnyabad,

Smart Indian said...

सही कहा! बहुत अच्छा लेख है!

makrand said...

respected sir your vision need to be implemented and it should be complusory from primary level
regards