Sunday, September 21, 2008

टूटते रिश्ते, दरकते संबंध

भारत ऐसा देश रहा है जहां सामाजि और पारिवारि संबंधों ो विशेष महत्व दिया जाता रहा है । रिश्तों ी आत्मीयता भारतीय संस्ृति में रची बसी है । भारतीय संस्ृति में जीवित होने पर ही नहीं बल्ि मृत्यु होने े बाद भी रिश्ते ा निर्वाह िया जाता है । यह संबंधों े प्रति लगाव ही है ि भारत में पूर्वजों ी आत्मा ी शांति के लिए पितृपक्ष पर तर्पण की परंपरा है । भारतवासियों को सदैव रिश्ते निभाने की गौरवशाली परंपरा पर गर्व रहा है । विदेशियों के लिए भी भारतीय संसकिरिति का यह पक्ष बडा आर्षित रता रहा है । लेिन पिछले ुछ समय से स्थितियां बदली है ।
भौतितावाद, उपभोक्तावाद, आधुनिरण, वैश्वीरण, बाजारवाद, बदलते जीवन मूल्यों, नैति मूल्यों के पतन, संयुक्त परिवार के विघटन और नित नए आार लेती महत्वाांक्षाओं ने व्यक्ति ी मानसिता ो गहराई से प्रभावित िया है । यही वजह है रिश्तों ी आत्मीयता में जो गरमाहट थी, वह ुछ म होने लगी है । सामाजि संबंधों में जो निटता थी, वह घटने लगी है । ई बार ऐसा लगता है ि मौजूदा समय में रिश्ते टूटने लगे हैं और संबंध दरने लगे हैं।
२० सितंबर ो बिजनौर जिले में ए व्यक्ति ने दो सगे भाइयों े साथ अपनी मां और १० वर्षीय पुत्री ी धारदार हथियारों से हत्या र दी । वजह थी सिर्फ १४ बीघा जमीन जो मां के नाम थी । यह जमीन बेेटे हथियाना चाहते थे । इस घटना े संदर्भ बडे व्याप हैं और पूरे समाज े सामने ई सवाल खडे रते है ं। क्या आज संपत्ति मां और पुत्री से ज्यादा महत्वपूर्ण होने लगी है? क्या समाज में हिंस प्रवृत्तियां अधि प्रभावशाली होने लगी हैं? क्या हम भारतीय संस्ृति के मूलभूत सिद्धांतों ो भूलने लगे हैं? इन सवालों पर विचार रना जरूरी है । अगर भारतीय समाज में संबंधों ी जडें़मजोर हुईं तो इसा असर सीधा संस्ृति पर पडेगा ।
दरअसल बदले भौतिवादी परिवेश ने संयुक्त परिवार ी अवधारणा ो बहुत गहराई से प्रभावित िया है । रोजगार े सिलसिले और स्वतंत्र रूप से जीवनयापन ी इच्छाओं ने एल परिवार ी परंपरा ो बढावा दिया । इसा परिणाम यह हो गया ि अब सिर्फ पति, पत्नी और बच्चों ो ही परिवार ा हिस्सा माना जाने लगा है । अन्य रिश्तों े प्रति लगाव घटता जा रहा है । उनमें परस्पर आत्मीयता भी घटती जा रही है । तीज त्योहारों और विवाह आदि अवसरों पर ही संयुक्त परिवार ी झल दिखाई देती है । पारिवारि सदस्यों में दूरियां बढऩे से परस्पर संबंधों में दरार पडऩे लगी । ऐसे में ई बार रिश्ता गौण और स्वार्थ प्रमुख हो जाता है ।
पहले आर्थि समृद्धि जिन रिश्तों ो जोडती थी आज उनमें ईष्र्या पैदा र रही है । ए भाई अगर अमीर है और दूसरा गरीब तो फिर उनमें रिश्तों ी आत्मीयता ी जगह ए खास िस्म ी दूरी महसूस ी जा सती है । भारतीय समाज और संस्ृति के लिए यह अच्छे संेत नहीं है ं। इस बदलाव ी अभिव्यक्ति भी अब विविध माध्यमों से होने लगी है । बागवान फिल्म में रिश्तों में आ रहे इस बदलाव ो बडी लात्मता के साथ परदे पर उतारा गया है । सचमुच बदलते परिवेश में अब बच्चे दादा-दादी े प्यार, ताऊ-ताई े दुलार से वंचित होने लगे हैं । अपनी जिद पूरी राने े लिए अब उन्हें चाचा-चाची नहीं मिल पाते हैं । बुआ-फूफा, मामा-मामी, मौसा-मौसी से भी खास मौे पर ही मुलाात हो पाती है । अब हानियां सुनाने े लिए उने पास बुजुर्ग होते ही नहीं है ं। इन स्थितियों पर वैचारि मंथन ी जरूरत है । हमें इस ओर ध्यान देना होगा । नई पीढ़ी ो रिश्तों ा अहसास राना होगा । ऐसे प्रयास रने होंगे जिससे सामाजि और पारिवारि रिश्ते मजबूत हों । रिश्तों ी आत्मीयता, संवेदनशीलता और प्रेम गहरा होगा, तभी समाज मजबूत होगा ।

3 comments:

Udan Tashtari said...

रिश्तों की आत्मीयता, संवेदनशीलता और प्रेम गहरा होगा, तभी समाज मजबूत होगा- अक्षरशः सहमत हूँ आपसे!!!

parul said...

very nice sir

रंजन राजन said...

क्या आज संपत्ति मां और पुत्री से ज्यादा महत्वपूर्ण होने लगी है? क्या समाज में हिंसक प्रवृत्तियां अधिक प्रभावशाली होने लगी हैं? क्या हम भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धांतों को भूलने लगे हैं? इन सवालों पर विचार करना जरूरी है ।