Friday, February 26, 2010

अंग्रेजों की जमीन पर हिंदी के फूल खिले


-डॉ. अशोक प्रियरंजन
हिंदी भाषा और साहित्य से विदेशी भूमि भी आलोकित हो रही है। अंग्रेजी के लिए जाने जाना वाले इंग्लैंड तक में हिंदी के फूल खिल रहे हैं। यूरोप में हिंदी भाषियों की बड़ी संख्या है। भारतवंशी अनेक साहित्यकार विदेशों में हिंदी साहित्य सृजन कर रहे हैं। मेरठ में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से १२-१४ फरवरी तक आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी में आए भारतवंशी हिंदी साहित्यकारों ने विदेशी भूमि पर हिंदी की गौरवशाली सृजनशीलता से साक्षात्कार कराया।
इजराइल से आए गेनाल्डी स्लम्पोर वहां के विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर हैं। वह कई देशों में हिंदी शिक्षण का कार्य कर चुके हैं। उनकी हिंदी भाषा और साहित्य पर कई पुस्तकें हैं। उन्होंने बताया कि उनके देश में हिंदी सीखने की ओर रुझान है।
इंग्लैंड के नाटिंघम से आईं जया वर्मा की पहचान एक अच्छी कवयित्री के रूप में है। वह गीतांजलि बहुभाषी साहित्यिक समुदाय टैं्रथ की अध्यक्ष हैं। यह संस्था साहित्यिक गतिविधयों में सक्रिय है। संस्था की शुरुआत बर्मिंघम में १९९५ में हुई। नाटिंघम में २००३ में संस्था ने कामकाज प्रारंभ किया। यह संस्था हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित करती है जिसमें यूरोप, मास्को, यूक्रेन समेत कई देशों के विद्यार्थी भाग लेते हैं। इसके विजेता बच्चों को भारत भ्रमण के लिए भी भेजा जाता है। जया वर्मा ने १५ सालों तक नाटिंघम के कला निकेतन स्कूल में हिंदी का शिक्षण कार्य किया। त्रैमासिक हिंदी पत्रिका पुरवाई और प्रवासी टुडे भी इंग्लैंड से प्रकाशित होती हैं। सप्लीमेंटरी स्कूलों में यहां ए लेवल अर्थात् १२वीं तक हिंदी पढ़ाई जाती है। जया वर्मा के मुताबिक टीवी पर हिंदी के अनेक प्रमुख चैनल इंग्लैंड में देखे जाते हैं जिनकी हिंदी को लोकप्रिय बनाने में खास भूमिका है। इसके साथ ही गीतांजलि की ओर से इंग्लैंड के सात शहरों लंदन, बर्मिंघम, नाटिंघम, लेस्टर, यार्क और मेनचेस्टर में हिंदी कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है। कैंब्रिज, लंदन और योर्क यूनिवर्सिटी में बीए और एमए में हिंदी पढऩे वाले विद्यार्थी हैं।
कनाड़ा में बसी स्नेह ठाकुर के मुताबिक वहां हिंदी की स्थिति अच्छी है। वह छह वर्षों से त्रैमासिक पत्रिका वसुधा का संपादन व प्रकाशन कर रही हैं। संजीवनी, उपनिषद् दर्शन जैसी पुस्तकों की लेखिका स्नेह ठाकुर सद्भावना हिंदी साहित्यिक संस्था की अध्यक्ष हैं। यह संस्था हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए सक्रिय है। वहां से हिंदी अब्राड नामक समाचारपत्र का भी प्रकाशन होता है। मंदिरों में शनिवार को निजी प्रयासों से हिंदी स्कूल की कक्षाएं चलती हैं। विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है।
मारीशस मेें बसे भारतीय मूल के डॉ. हेमराज सुंदर मोका स्थित महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट से जुड़े हैं। वह वसंत और रिमझिम नामक पत्रिका का प्रकाशन भी करते हैं। इस इंस्टीट्यूट में एम फिल और पीएचडी तक की पढ़ाई होती है। हिंदी साहित्य सम्मेलन परीक्षाएं कराता है। डॉ. सुंदर के अनुसार मारीशस में माध्यमिक स्तर तक हिंदी पढ़ाई जाती है। लंदन यूनिवर्सिटी १२वीं तक की परीक्षा कराता है। आर्य सभा मारीशस भी धार्मिक परीक्षाएं कराता है। रेडियो पर २४ घंटे हिंदी के कार्यक्रम चलते रहते हैं। दूरदर्शन पर भी साहित्यिक कार्यक्रम और हिंदी फिल्में धडल्ले से चलती हैं। अलबत्ता हिंदी अखबारों की कमी खलती है। हिंदी जनता की भाषा के रूप में स्थापित है।

Saturday, February 13, 2010

मेरठ की माटी से महका साहित्य

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
हिंदी के चर्चित हस्ताक्षर गिरिराज किशोर के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास 'ढाई घर'की शुरुआत कुछ इस तरह होती है-'मेरा नाम भास्कर राय है। मैं उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके के एक पुराने खाते-पीते राय खानदान का अंतिम राय हूं। अब मेरे बाद कोई राय नहीं होगा। मेरे बच्चे हैं पर जिस आधार पर हम लोग राय हुआ करते थे, वह एक बड़ी जमींदारी थी। वह कभी की खत्म हो गई।' दरअसल इस उपन्यास में जिस अंचल को केंद्रबिंदु बनाकर कथा का ताना-बाना बुना गया है, वह कोई और नहीं बल्कि मुजफ्फरनगर और मेरठ ही भूमि है। खड़ी बोली के लिए जाने जाना वाला मेरठ अंचल ही इस बहुचर्चित उपन्यास में जीवंत रूप में दिखाई देता है। मेरठ अंचल की परंपराएं, मान्यताएं और रीति रिवाज इस उपन्यास में हैं। प्रमुख पात्रों के संवाद खड़ी बोली में हैं और इसमें कौरवी के भी शब्दों का प्रयोग किया गया है। इस उपन्यास में मेरठ और यहां के कुछ प्रमुख स्थलों के विषय में भी जानकारी दी गई है। इस साहित्यिक कृति में मेरठ कालेज और बुढ़ाना गेट का जिक्र है। उपन्यास के मुख्य पात्र हरिराय के शब्दों में-'मेरठ कॉलेज में भी साथ ही साथ पढ़े थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उस समय दो ही बड़े कॉलेज थे। एक शायद आगरा कॉलेज आगरा और दूसरा मेरठ कॉलेज मेरठ। आगरा का सेंट जान्स भी पुराने कॉलेजों में में है। पूरी कमिश्नरी के लड़केमेरठ ही पढऩे जाते थे। तब मेरठ कॉलेज इंटर तक था। लेकिन था काफी बड़ा। ' इसी क्रम में वह आगे बताते हैं कि, 'बुढाने दरवाजे पर एक मशहूर पान लगाने वाला था। वह उस जमाने में सौ-सौ रुपये का कुश्ते वाले पान बनाता था। रईस लोग अपनी ऐय्याशी को सही सलामत रखने के लिए उसका पान खाते थे।Ó गिरिराज किशोर के उपन्यास 'लोग' और 'जुगलबंदी' में भी मेरठ अंचल धड़कता दिखाई देता है।
उर्दू के मशहूर कथाकार सआदत हसन मंटो ने अपनी कलम से अनेक बेहतरीन कालजयी चरित्रों की रचना की है। ऐसा ही एक चरित्र मंटो ने रचा और उसका नाम रखा-मेरठ की कैंची। मंटो के १० कहानियों का संग्रह मेरठ की कैंची नाम से प्रकाशित हुआ है। इसकी प्रमुख कहानी मेरठ की कैंची की नायिका के बारे में वह लिखते हैं, '---अब पारो रोज स्टूडियो आने लगी। बहुत हंसमुख और मीठी आवाज वाली तवायफ थी। मेरठ उसका वतन था जहां वह शहर के करीब-करीब हर रंगीन मिजाज रईस की मंजूरे नजर थी। उसको ये लोग मेरठ की कैंची कहते थे। इसलिए कि वह काटती थी और बड़ा महीन काटती थी।' आगे वह लिखते हैं, '---पारो में आम तवायफों जैसा भड़कीला छिछोरापन नहीं था। वो महफिलों में बैठकर बड़े सलीके से बातें कर सकती थी। इसकी वजह यही हो सकती है कि मेरठ में उसके यहां आने-जाने वाले ऐरे-गैरे नत्थू -खैरे नहीं होते थे। उनका संबंध सोसाइटी के उस तबके से था जो नाशाइस्तगी की तरफ सिर्फ तफरीह की खातिर मायल होता है।'
हिंदी के प्रमुख साहित्यकार अमृतलाल नागर का उपन्यास 'सात घूंघट वाला मुखड़ा' मेरठ केसरधना की बेगम समरू को केंद्र में रखकर लिखा गया है। कालजयी उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री के उपन्यास 'सोना और खूनÓ केदूसरे भाग में १८५७ की क्रांति के दौरान मेरठ अंचल में लोगों की शहादत का वर्णन किया गया है। यह भी बताया गया है कि कैसे पंजाब से आकर विस्थापितों ने मेरठ और उसके आसपास के इलाके में शरण ली। डॉ. सुधाकर आशावादी ने भी अपने उपन्यास 'काला चांद' में मेरठ का वर्णन किया है।

Sunday, February 7, 2010

मेरठ में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी 12 से


-डॉ. अशोक कुमार मिश्र
भारत का हृदयस्थल पश्चिमी उत्तर प्रदेश। इसी का सबसे महत्वपूर्ण शहर है मेरठ। पूरी दुनिया में यह शहर कई कारणों से मशहूर रहा है। अंगेजों के जमाने में इसी शहर से आजादी की लड़ाई की शुरुआत हुई। सन् 1857 की क्रांति का उद्गम स्थल माना जाना वाला यह शहर एक गौरवशाली अतीत को समेटे है। इसी शहर में लगता है नौचंदी मेला जो सांस्कृतिक विरासत और सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है। राजधानी दिल्ली के निकट स्थित यह शहर कभी कैंची के लिए मशहूर रहा तो कभी खेल के सामान के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता रहा है। कभी इस शहर का नाम दंगे के कारण लोगों के जेहन में आया तो कभी विक्टोरिया पार्क जैसे हादसे के चलते चर्चा में आया। वजह कोई भी रही शहर हमेशा विश्व मानचित्र पर अपनी पहचान बनाए रहा।
अब हिंदी साहित्य जगत में भी यह शहर खास पहचान बना रहा है। इसका श्रेय जाता है विश्वविद्यालय में चल रहे हिंदी विभाग और इसकेअध्यक्ष डॉ. नवीन चंद्र लोहनी को। डॉ. लोहनी ने अपनी आधुनिक सोच से न केवल विद्यार्थियों में हिंदी के प्रति आत्मगौरव जागृत किया बल्कि उन्हें जमाने के साथ कदमताल करने केलिए तैयार भी किया। विभाग में आधुनिक कंप्यूटर लैब, मल्टीमीडिया लैब, पुस्तकालय और सुसज्जित संगोष्ठी कक्ष है जिसकी विद्यार्थियों के लिए व्यापक उपयोगिता है। इसके साथ ही विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन के लिए समय-समय पर विशेषज्ञ विद्वानों केव्याख्यान भी डॉ. लोहनी कराते रहे हैं। हिंदी के प्रचार प्रचार केलिए कई बड़े कार्यक्रम विभाग की ओर से आयोजित किए गए हैं।
इसी क्रम में इस बार डॉ. लोहनी अब तक का सबसे बड़ा आयोजन करने जा रहे हैं। विभाग की ओर से १२ से १४ फरवरी 2010 के मध्य 'भूमंडलीकरण के दौर में हिंदी, विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है जिसमें देश-विदेश के अनेक विद्वान, शोधार्थी, हिंदी साहित्य के मर्मज्ञ और मीडिया से जुड़े लोग भाग ले रहे हैं। इस संगोष्ठी में 'अङ्क्षहदी भाषी राज्यों में हिंदी, 'प्रवासी क्षेत्रों में हिंदी, 'विदेशी लेखकों द्वारा हिंदी लेखन और प्रसार, 'हिंदी का लेखन और हिंदी साहित्य जैसे सत्र आयोजित किए जाएंगे। जिन लोगों में हिंदी के प्रति अनुराग है, उनके लिए इसमें भाग लेना सुखद अनुभव होगा, ऐसा विश्वास है। हालांकि पूर्व में स्वीकृति के उपरांत ही संगोष्ठी में भाग लेना संभव होगा। भाग लेने केलिए १० जनवरी तक सूचना भेजी जा सकती है।
प्रतिभागिता हेतु संपर्क करें-
प्रो० नवीन चन्द्र लोहनी , विभागाध्यक्ष हिन्दी
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ ।
nclohani@gmail.com, nclohani@yahoo.com
Phone & fax-01212772455, +919412207200
अन्य फोन नंबर एवं वेब पते-
विवेक सिंह ( शिक्षण सहायक)
गजेन्द्र सिंह ( शिक्षण सहायक)
+9258040773 ,9359770328