Wednesday, September 24, 2008

महापुरुषों का यह कैसा सम्मान ?

मंगलवार ो जम्मू े मुबार मंडी ांप्लेक्स में राष्टï्रपिता महात्मा गांधी ी प्रतिमा े गले में रस्सी बांधर रोशनी े लिए लाइट लटा दी गई । ए समारोह ी तैयारियों में जुटे टेंट हाउस के र्मचारी बापू ी प्रतिमा पर चढ़ गए । उनंधे और सिर पर पैर भी रखे गए । उफ ! महापुरुषों ी प्रतिमाओं ी यह दशा । समझ में नहीं आता ि जब हम प्रतिमाओं ा पूरा सम्मान ही नहीं र पा रहे हैं तो फिर उन्हें स्थापित रने से क्या लाभ? पूरे देश में जगह-जगह महापुरुषों ी प्रतिमाएं लगी हुई हैं । ई स्थानों पर देखरेख े अभाव में प्रतिमाएं गंदगी से घिरी रहती हैं । उनी सफाई ी भी ोई व्यवस्था नहीं होती । विचार रना होगा ि इस हालत में प्रतिमाएं पूरे देश े लिए क्या संदेश देंगी ?
पूरी दुनिया में महापुरुषों ी प्रतिमाएं लगाई जाती हैं । भारत में भी बडी संख्या में महापुरुषों ी प्रतिमाएं स्थापित हैं । ोई शहर ऐसा नहीं जिसमें प्रतिमाएं न हों । प्रतिमा स्थापित रने े पीछे मंशा यह होती है ि समाज इनके आदर्शों से प्रेरणा ले । इन महापुरुषों े बताए मार्ग पर चलर समाज और देश े विास में योगदान दे । इसके लिए जरूरी है ि प्रतिमा स्थापना े बाद इनकी सफाई और सुरक्षा पर भी पूरा ध्यान दिया जाए । प्रतिमाएं खुद बदहाल स्थिति में रहेंगी तो ैसे दूसरों े लिए प्रेरणा जागृत र पाएंगी । अने प्रतिमाएं खुले में लगी हैं और मौसम ा मिजाज उने रंग-रूप ो बदरंग र देता है । ई बार उनी सुरक्षा न होने से भी अपमानजन स्थिति बन जाती है । ऐसे में यह सुनिश्चित रना होगा ि ैसे महापुरुषों ी प्रतिमाओं े सम्मान ी रक्षा ी जाए? उनी देखरेख ी भी पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए । सुरक्षा और देखरेख ी जिम्मेदारी िसी होगी, यह प्रतिमा लगाते समय ही सुनिश्चित िया जाना चाहिए ।
महापुरुषों े जन्मदिवस ो भी पूरे देश में मनाया जाता है और इस दिन अवाश भी दिया जाता है ताि हम उने व्यक्तित्व और ृतित्व पर विचार रें । उने राष्ट्रहित में िए गए ार्यों ो याद रें । लेिन इस अवाश े मायने भी अब बदलने लगे हैं । ुछ संस्थाओं में ही महापुरुषों के े जन्मदिवस पर महज औपचारि ार्य्रम होते हैं । अवाश पर लोगों ो महापुरुष याद आने के े बजाय दूसरे ाम या ार्य्रम याद आते हैं और वह उनमें व्यस्त रहते हैं ।
महापुरुषों े जीवन े विविध पक्ष नई पीढ़ी े लिए सदैव प्रेरणा ा माध्यम रहे हैं । इसीलिए पहले बुजुर्ग बच्चों ो महापुरुषों े संस्मरण सुनाया रते थे । अब एल परिवार में बच्चों ो यह संस्समरण वाचि परंपरा से सुनने ो नहीं मिल पाते । महापुरुषों ी जीवनियां सिर्फ पाठ्य्रमों में ही उन्हें पढऩे ो मिल पाती हैं क्योंि पुस्त खरीदने ी प्रवृत्ति भी परिवारों में घट रही है ? इस स्थिति में महापुरुषों के विषय में बहुत म जानारी बच्चों ो मिल पाती है । हमें विचार रना होगा ि बच्चे ैसे महापुरुषों े जीवन से जुडे विविध प्रसंगों से अवगत हों पाएंगे ?
समाज में जिस तरह से नैति पतन ी स्थितियां दिखाई दे रही हैं, जीवन मूल्यों ा अवमूल्यन हो रहा है, नई पीढ़ी में दिशाहीनता और भटाव ी स्थितियां दिखाई दे रही हैं, सांस्ृति मान्यताओं और परंपराओं से खिलवाड़ हो रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए महापुरुषों े विचारों और आदर्शों ा प्रचार प्रसार रना होगा तभी समाज सही दिशा में चल पाएगा ।

5 comments:

सचिन मिश्रा said...

ye to bahut hi nidniya hai.

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut hi nidniya

प्रदीप मानोरिया said...

सार्थक और बहुत प्रेअर्नास्पद लेख धन्यबाद ....... आपको मेरे ब्लॉग पर पधारने हेतु पुन:: आमंत्रण है

Hari Joshi said...

गंभीर मुद्दा उठाया है आपने। प्रतिमाओं को उचित स्‍थान पर ही लगाना चाहिए और उनकी देखभाल धरोहर के रूप में होनी चाहिए।

निर्मल गुप्त said...

it seems there is some problem of fonts in comments of Bapu udaas..
they are not appearing properly.nirmal