संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी है । देववाणी है, व्यापक क्षेत्र में निवास कर रहे जनमानस की आस्था का प्रतीक है । तमाम भारतीय पौराणिक ग्रंथों की रचना संस्कृत में हुई है, इसलिए इस भाषा के प्रति एक धार्मिक श्रद्धा का भी भाव है । भारतीय संस्कृति में हिंदू धर्म केे अनुयायियों के जन्म, विवाह से लेकर मृत्यु तक के तमाम कर्मकांड संस्कृत में ही संपन्न होते हैं । इस कारण इस भाषा के प्रति व्यापक आदरभाव और भक्ति की सीमा तक की अटूट आस्था है । भारतीय जनमानस को सदियों से संजीवनी प्रदान कर रहे वेदों की ऋचाएं, भारतीय जीवन-दर्शन का दर्पण श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक और सभी पौराणिक ग्रंथ संस्कृत में ही हैं । योग, ध्यान, भारतीय दर्शन और आयुर्वेद विदेशियों को आकर्षित करते हैं और इन विषयों से जुडी अनेक जानकारियां संस्कृत में ही हैं । संस्कृत की वैश्विक महत्ता भारतवासियों के लिए गौरव का विषय भी है ।
विदेशों में भारतीय पुरोहितों, संस्कृत के विद्वानों और कर्मकांडी पंडितों की मांग बढ़ी है । देश की सीमाओं को पार करके जिन भारतवासियों ने विदेशों में अपना बसेरा बनाया है, उनके लिए वहां संस्कार-कर्म कराने के लिए पंडितों की जरूरत होती है । ऐसे में विदेश में संस्कृत की पताका गर्व के साथ फहराने लगी है । लेकिन यही अंतिम सत्य नहीं है ।
सच यह है कि आधुनिक भारत में संस्कृत के विकास के लिए उस तरह काम नहीं हुआ, जैसा होना चाहिए था । संस्कृत पढऩे वालों के लिए न रोजगार के श्रेष्ठ अवसर उपलब्ध कराए गए और न ही उसके प्रचार-प्रसार के लिए ठोस तरीके से काम किए गए । जो संस्कृत विद्यालय देश में चल रहे हैं, उनकी भी अपनी तमाम समस्याएं हैं । कहीं अध्यापकों को वेतन नहीं है तो कहीं भवन जर्जर पडे हैं । संस्कृत विद्यालयों का आधुनिकीकरण नहीं हुआ है । संस्कृत के विकास के लिए गठित संस्थाएं आर्थिक संकट से गुजर रही हैं । संस्कृत पठन पाठन में भïिवष्य की संभावनाएं घटने के कारण उससे विद्यार्थियों का मोहभंग हो रहा है ।
ऐसी हालात में जरूरी है कि संस्कृत को प्रतिष्ठित करने और इस भाषा में डिग्री पाने वालों को तरक्की के नए रास्ते खोलने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं । मौजूदा दौर में विषय कोई भी पढें लेकिन कामकाज में कंप्यूटर एक अनिवार्य जरूरत बन गया है । अधिकतर कंप्यूटरों पर अंग्रेजी में काम किया जाता है । इसलिए संस्कृत के साथ ही अंग्रेजी की जानकारी अगर होगी तो और कैरियर संवारने में मदद ही मिलेगी । संस्कृत की पढाई के साथ कंप्यूटर की भी शिक्षा दी जाए ताकि संस्कृत के विद्यार्थी आधुनिक युग की जरूरतों के अनुसार रोजगारोन्मुखी परिणाम दे सकें । साथ ही एक अन्य भाषा को सीखना भी उनके लिए अनिवार्य कर दिया जाए ताकि वह उस भाषा क्षेत्र में संस्कृत की महत्ता को रेखांकित कर सकें ।
संस्कृतसाहित्य का अन्य भाषाओं में अनुवाद भी बडी संख्या में सुलभ कराया जाना चाहिए । इससे उपभोक्तावादी इस युग में दूसरी भाषा के लोग संसकृत की महत्ता से परिचित होंगे । इसका लाभ संस्कृत से जुडे लोगों को मिलेगा । संस्कृत को पुराना गौरव वापस मिल गया तो भारतीय संस्कृति की जडें और मजबूत होंगी । साथ ही भारतीय संस्कृति को दुनिया में और विस्तार मिलेगा ।
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12 comments:
sahi kaha aapne.
सहमत हूँ आपसे.
बेशक..
बिल्कुल सही कहा आपने..
सामयिक चिंतन का विषय है ये..
बहुत अच्छा एवं सशक्त लेख! आज सारथी पर इसका उद्धरण दिया गया है, जरा देख लें!! संस्कृत मेरी द्वितीय भाषा है!!
-- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
बेहतरीन तहरीर...
असहमत होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.
कंप्यूटर की शिक्षा को सभी के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए.
बहुत सुन्दर और प्रभावी लिखा है। बधाई स्वीकारें।
एक अच्छे लेख के लिए धन्यवाद और वधाई.
bahut hi sashakt aur prernadaayak lekh padha aaj aapke blog par...aisi baaten hi hame jod sakti hai...
bilkul sach likha hai apne, dhnyabad,
सही कहा! बहुत अच्छा लेख है!
respected sir your vision need to be implemented and it should be complusory from primary level
regards
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