Monday, September 15, 2008

भाषाओँ के बंद दरवाजे खोलें

ज्ञान के विस्तार के लिए सभी भाषाओं के प्रति सम्मान जरूरी है । जीवन के विविध क्षेत्रों में आगे बढऩे का सफर अब केवल एक़ही भाषा के सहारे पूरा नहीं िया जा सता है । पूरी दुनिया में हिन्दी ा जो विस्तार हो रहा है, उसे पीछे विदेशियों ा भारतीय भाषाओं के प्रति उत्पन्न रुझान भी ए बड़ी वजह है । आज विश्व में ज्ञान े नित नए क्षेत्र विसित हो रहे हैं । वैश्वीरण के इस दौर में इन नए क्षेत्रों में दम रखने के लिए भाषि विविधता ी महत्ता ो समझना होगा और अन्य भाषाओं में भी संवाद रना होगा । अपनी मानसिता संकीर्णता से मुक्त रते हुए भाषा केे दृष्टिोण ो विसित रना होगा । सीमाओं से मुक्त होर ज्ञान े आदान-प्रदान के लिए खुद ो तैयार रना होगा । भाषा ो ले संकीर्ण मानसि दायरा बना लेना अच्छा संकेत नहीं है । भविष्य ी चुनौतियों के संदर्भ में स्वयं ा परिष्ार करना होगा । ज्ञानके रास्ते और भाषाओं के सहारे भी खुलते हैं, यह हम नार नहीं सते हैं। हम दुनिया के िसी भी देश में जाएं, अगर अपने ज्ञान को बांटना है तो वहां के लोगों की ही भाषा में ही संवाद करना होगा । तभी हम अपनी भाषा गौरव पताका विदेश में भी फहरा पाएंगे । आज अगर लंदन, अमेरिका, मारीशस और फिजी से हिन्दी भाषा में पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं, तो केेवल इसलिए कि पहले हम वहां केे लोगों को उनकेी भाषा में भारतीय भाषा से साक्षातकार कराते हैं । यही वजह है कि अनेक विदेशी विद्वानों ने भारतीय भाषाओं में साहित्य सृजन और अनुवाद किया है । यानी हमें भाषा को लेकर संकीर्ण मानसिकता त्यागनी होगी । भाषा को लेकर कोई विवाद को स्थिति भी नहीं होनी चाहिए ।
अंग्रेज जब इस देश में आए थे तो सबसे पहली चोट उन्होंने भाषा पर ही की थी । उन्होने भारतीय भाषाओं केे प्रति हेय दृष्टिकोण पैदा करने के लिए साजिश केे तहत यहां अंग्रेजी को प्रतिष्ठित कर दिया । अंग्रेजी जानने वालों को उच्च पदों पर आसीन किया । इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय भाषाएं स्वत: गौण हो गईं और महत्ता खोने लगी । धीरे-धीरे अंग्रेजी का वर्चस्व कायम होता चला गया । आजादी केे बाद विकास की जो हवा चली, उसमें अंग्रेजी उच्च वर्ग के सिर चढकर बोलने लगी । नतीजा पब्लिक स्कूलों की बाढ़आ गई और अभिजात्य वर्ग में अंग्रेजी ा दबदबा बढ़ गया । अंग्रेजी के सामने खडी हिन्दी ी भी महत्ता प्रभावित हुई । लेिन राजभाषा घोषित र देने से हिन्दी ी स्थिति मजबूत हुई । बाजारवाद े दबाव ने हिन्दी ो सबसे मजबूत भाषा े रूप में उभरने ा मौा दिया । भारत में आज सर्वाधि अखबार हिन्दी में प्राशित हो रहे हैं । बड़ी संख्या में हिन्दी टेलीविजन चैनल देखे जा रहे हैं । रेडियो के हिन्दी चैनल खूब लोप्रिय हो रहे हैं। हिन्दी फिल्में पूरी दुनिया में देखी जा रही हैं । ई हिन्दी फिल्मों े प्रीमियर तो विदेशों में पहले हुए, बाद में वे देश में दिखाई गईं । अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढाई जा रही है । हिन्दी ी स्वीार्यता ो देखते हुए अन्य भाषाओं े प्रति भी हमारा दृष्टिोण उदार होना चाहिए । वैश्वीरण े े दौर में बदलते परिïवेश और विास ी नई ऊंचाइयां छूने े लिए यह जरूरी भी है।

4 comments:

Udan Tashtari said...

प्रभावी एवं विचारणीय आलेख.

art said...

bahut sundar lekh

निर्मल गुप्त said...

ashokjee,I am eagerly waiting for your new blog.nirmal

प्रिया सिंह said...


Very informative and useful Post . lost of love And respect .

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