ज्ञान के विस्तार के लिए सभी भाषाओं के प्रति सम्मान जरूरी है । जीवन के विविध क्षेत्रों में आगे बढऩे का सफर अब केवल एक़ही भाषा के सहारे पूरा नहीं किया जा सकता है । पूरी दुनिया में हिन्दी का जो विस्तार हो रहा है, उसके पीछे विदेशियों का भारतीय भाषाओं के प्रति उत्पन्न रुझान भी एक बड़ी वजह है । आज विश्व में ज्ञान के नित नए क्षेत्र विकसित हो रहे हैं । वैश्वीकरण के इस दौर में इन नए क्षेत्रों में कदम रखने के लिए भाषिक विविधता की महत्ता को समझना होगा और अन्य भाषाओं में भी संवाद करना होगा । अपनी मानसिकता को संकीर्णता से मुक्त करते हुए भाषा केे दृष्टिकोण को विकसित करना होगा । सीमाओं से मुक्त होकर ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए खुद को तैयार करना होगा । भाषा को लेकर संकीर्ण मानसिक दायरा बना लेना अच्छा संकेत नहीं है । भविष्य की चुनौतियों के संदर्भ में स्वयं का परिष्कार करना होगा । ज्ञानके रास्ते और भाषाओं के सहारे भी खुलते हैं, यह हम नकार नहीं सकते हैं। हम दुनिया के किसी भी देश में जाएं, अगर अपने ज्ञान को बांटना है तो वहां के लोगों की ही भाषा में ही संवाद करना होगा । तभी हम अपनी भाषा गौरव पताका विदेश में भी फहरा पाएंगे । आज अगर लंदन, अमेरिका, मारीशस और फिजी से हिन्दी भाषा में पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं, तो केेवल इसलिए कि पहले हम वहां केे लोगों को उनकेी भाषा में भारतीय भाषा से साक्षातकार कराते हैं । यही वजह है कि अनेक विदेशी विद्वानों ने भारतीय भाषाओं में साहित्य सृजन और अनुवाद किया है । यानी हमें भाषा को लेकर संकीर्ण मानसिकता त्यागनी होगी । भाषा को लेकर कोई विवाद को स्थिति भी नहीं होनी चाहिए ।
अंग्रेज जब इस देश में आए थे तो सबसे पहली चोट उन्होंने भाषा पर ही की थी । उन्होने भारतीय भाषाओं केे प्रति हेय दृष्टिकोण पैदा करने के लिए साजिश केे तहत यहां अंग्रेजी को प्रतिष्ठित कर दिया । अंग्रेजी जानने वालों को उच्च पदों पर आसीन किया । इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय भाषाएं स्वत: गौण हो गईं और महत्ता खोने लगी । धीरे-धीरे अंग्रेजी का वर्चस्व कायम होता चला गया । आजादी केे बाद विकास की जो हवा चली, उसमें अंग्रेजी उच्च वर्ग के सिर चढकर बोलने लगी । नतीजा पब्लिक स्कूलों की बाढ़आ गई और अभिजात्य वर्ग में अंग्रेजी का दबदबा बढ़ गया । अंग्रेजी के सामने खडी हिन्दी की भी महत्ता प्रभावित हुई । लेकिन राजभाषा घोषित कर देने से हिन्दी की स्थिति मजबूत हुई । बाजारवाद के दबाव ने हिन्दी को सबसे मजबूत भाषा के रूप में उभरने का मौका दिया । भारत में आज सर्वाधिक अखबार हिन्दी में प्रकाशित हो रहे हैं । बड़ी संख्या में हिन्दी टेलीविजन चैनल देखे जा रहे हैं । रेडियो के हिन्दी चैनल खूब लोकप्रिय हो रहे हैं। हिन्दी फिल्में पूरी दुनिया में देखी जा रही हैं । कई हिन्दी फिल्मों के प्रीमियर तो विदेशों में पहले हुए, बाद में वे देश में दिखाई गईं । अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढाई जा रही है । हिन्दी की स्वीकार्यता को देखते हुए अन्य भाषाओं के प्रति भी हमारा दृष्टिकोण उदार होना चाहिए । वैश्वीकरण के े दौर में बदलते परिïवेश और विकास की नई ऊंचाइयां छूने के लिए यह जरूरी भी है।
Monday, September 15, 2008
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4 comments:
प्रभावी एवं विचारणीय आलेख.
bahut sundar lekh
ashokjee,I am eagerly waiting for your new blog.nirmal
Very informative and useful Post . lost of love And respect .
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