मंगलवार को जम्मू के मुबारक मंडी कांप्लेक्स में राष्टï्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा के गले में रस्सी बांधकर रोशनी के लिए लाइट लटका दी गई । एक समारोह की तैयारियों में जुटे टेंट हाउस के कर्मचारी बापू की प्रतिमा पर चढ़ गए । उनके कंधे और सिर पर पैर भी रखे गए । उफ ! महापुरुषों की प्रतिमाओं की यह दशा । समझ में नहीं आता कि जब हम प्रतिमाओं का पूरा सम्मान ही नहीं कर पा रहे हैं तो फिर उन्हें स्थापित करने से क्या लाभ? पूरे देश में जगह-जगह महापुरुषों की प्रतिमाएं लगी हुई हैं । कई स्थानों पर देखरेख के अभाव में प्रतिमाएं गंदगी से घिरी रहती हैं । उनकी सफाई की भी कोई व्यवस्था नहीं होती । विचार करना होगा कि इस हालत में प्रतिमाएं पूरे देश के लिए क्या संदेश देंगी ?
पूरी दुनिया में महापुरुषों की प्रतिमाएं लगाई जाती हैं । भारत में भी बडी संख्या में महापुरुषों की प्रतिमाएं स्थापित हैं । कोई शहर ऐसा नहीं जिसमें प्रतिमाएं न हों । प्रतिमा स्थापित करने के पीछे मंशा यह होती है कि समाज इनके आदर्शों से प्रेरणा ले । इन महापुरुषों के बताए मार्ग पर चलकर समाज और देश के विकास में योगदान दे । इसके लिए जरूरी है कि प्रतिमा स्थापना के बाद इनकी सफाई और सुरक्षा पर भी पूरा ध्यान दिया जाए । प्रतिमाएं खुद बदहाल स्थिति में रहेंगी तो कैसे दूसरों के लिए प्रेरणा जागृत कर पाएंगी । अनेक प्रतिमाएं खुले में लगी हैं और मौसम का मिजाज उनके रंग-रूप को बदरंग कर देता है । कई बार उनकी सुरक्षा न होने से भी अपमानजनक स्थिति बन जाती है । ऐसे में यह सुनिश्चित करना होगा कि कैसे महापुरुषों की प्रतिमाओं के सम्मान की रक्षा की जाए? उनकी देखरेख की भी पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए । सुरक्षा और देखरेख की जिम्मेदारी किसकी होगी, यह प्रतिमा लगाते समय ही सुनिश्चित किया जाना चाहिए ।
महापुरुषों के जन्मदिवस को भी पूरे देश में मनाया जाता है और इस दिन अवकाश भी दिया जाता है ताकि हम उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचार करें । उनके राष्ट्रहित में किए गए कार्यों को याद करें । लेकिन इस अवकाश के मायने भी अब बदलने लगे हैं । कुछ संस्थाओं में ही महापुरुषों के े जन्मदिवस पर महज औपचारिक कार्यक्रम होते हैं । अवकाश पर लोगों को महापुरुष याद आने के े बजाय दूसरे काम या कार्यक्रम याद आते हैं और वह उनमें व्यस्त रहते हैं ।
महापुरुषों के जीवन के विविध पक्ष नई पीढ़ी के लिए सदैव प्रेरणा का माध्यम रहे हैं । इसीलिए पहले बुजुर्ग बच्चों को महापुरुषों के संस्मरण सुनाया करते थे । अब एकल परिवार में बच्चों को यह संस्समरण वाचिक परंपरा से सुनने को नहीं मिल पाते । महापुरुषों की जीवनियां सिर्फ पाठ्यक्रमों में ही उन्हें पढऩे को मिल पाती हैं क्योंकि पुस्तक खरीदने की प्रवृत्ति भी परिवारों में घट रही है ? इस स्थिति में महापुरुषों के विषय में बहुत कम जानकारी बच्चों को मिल पाती है । हमें विचार करना होगा कि बच्चे कैसे महापुरुषों के जीवन से जुडे विविध प्रसंगों से अवगत हों पाएंगे ?
समाज में जिस तरह से नैतिक पतन की स्थितियां दिखाई दे रही हैं, जीवन मूल्यों का अवमूल्यन हो रहा है, नई पीढ़ी में दिशाहीनता और भटकाव की स्थितियां दिखाई दे रही हैं, सांस्कृतिक मान्यताओं और परंपराओं से खिलवाड़ हो रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए महापुरुषों के विचारों और आदर्शों का प्रचार प्रसार करना होगा तभी समाज सही दिशा में चल पाएगा ।
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5 comments:
ye to bahut hi nidniya hai.
bahut hi nidniya
सार्थक और बहुत प्रेअर्नास्पद लेख धन्यबाद ....... आपको मेरे ब्लॉग पर पधारने हेतु पुन:: आमंत्रण है
गंभीर मुद्दा उठाया है आपने। प्रतिमाओं को उचित स्थान पर ही लगाना चाहिए और उनकी देखभाल धरोहर के रूप में होनी चाहिए।
it seems there is some problem of fonts in comments of Bapu udaas..
they are not appearing properly.nirmal
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