े वैश्वीकरण से बदले परिदृश्य और आधुनिकता की बयार ने महिलाओं की महत्वाकांक्षाओं और सपने में नए रंग भर दिए हैं । इसीलिए आज महिलाएं घर की दहलीज से निकलकर जिंदगी के रंगमंच पर विविध क्षेत्रों में प्रभावशाली भूमिका निभा रही हैं । रोजगार का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जहां महिलाएं अपना योगदान न दे रही हो ं। कल्पना चावला, इंदिरा नूई, सानिया मिर्जा जैसी अनेक प्रतिभाओं ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाकर देश का नाम रोशन िकया है। लेकिन इस सबके बावजूद देश में महिलाओं के साथ ऐसी घटनाएं होती हैं जो उनके आत्मविश्वास को कमजोर कर देती हैं ।
पूरे देश में महिला संबंधी अपराधों की स्थिति बडी चिंताजनक है । छेडछाड़, बलात्कार, अपहरण, दहेज उत्पीडऩ, घरेलू हिंसा और तस्करी की बढती घटनाएं महिला जीवन की त्रासदी को उजागर करती हैं। इन अपराधों के कारण बडी संख्या में महिलाओं को शर्मनाक स्थितियों का सामना करना पडता है। इन घटनाओं के कारण कई बार महिलाएं अपनी प्रतिभा का देश और समाज के लिए पूर्ण योगदान नहीं दे पाती हैं।
नेशनल क्राइम रेकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष २००६ में बलात्कार की १९३४८, महिलाओं और लडकियों के अपहरण की १७४१४, यौन उत्पीडऩ की ९९६६ तथा पति और परिजनों की क्रूरता का े शिकार होने की ६३१२८ मामलों की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज की गईं। देश की राजधानी दिल्ली में ही जनवरी से अप्रैल २००८ के मध्य बलात्कार के १२१ मामले प्रकाश में आए । वर्ष १९७१ में बलात्कार के २४८७ मामलेे दर्ज किए गए थे । वर्ष २००६ तक इनमें ६७८ प्रतिशत की वृद्धि हो गई । महिला अस्मिता से खिलवाड़ की ये लगातार बढ़रही घटनाएं देश और समाज के लिए बेहद शर्मनाक हैं । बड़ी संख्या में महिलाओं से छेडछाड की घटनाएं होती हैं जिनमें से अनेक की तो पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं होती है। स्कूल और कार्यस्थलों पर जाती अनेक लडकियों और महिलाओं को मनचलों की अभद्र टिप्पणियों का शिकार होना पडता है। विरोध करने पर उनके ऊपर तेजाब डालने जैसी घटनाएं भी हुई हैं । ऐसे में सहज ही यह सवाल उठता है कि इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन है? इन घटनाओं को कैसे रोका जाए?
वास्तव में किसी भी समाज का विकास नारी शक्ति के सहयोग के बिना संभव नहीं है । इसके लिए जरूरी है कि उन्हें निर्भीक होकर सम्मानसहित जीवनयापन के अवसर मिलें । आज जरूरी है कि लडकियों को पढाई के साथ ही कैरियर बनाने के लिए अच्छा माहौल मिले । जीवनसाथी चुनने की आजादी मिले । सडकों पर वह बेखौफ गुजर सकें । विकास के लिए सुरक्षित सामाजिक परिवेश होना आवश्यक है। दहशत के बीच तरक्की के सपनों में रंग नहीं भरे जा सकते हैं । इसलिए पुलिस को महिला संबंधी घटनाओं पर सख्ती से अंकुश लगाना होगा । जनसाधारण को इसमें सहयोग देना होगा। सम्मान से जीना हर लडकी का अधिकार है लेकिन इसके साथ ही उन्हें अपनी वेशभूषा, हावभाव और रहन सहन पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए । उनमें संस्कारों की झलक दिखाई दे, संस्कारहीनता से उपजी मानसिकता नहीं । साथ ही असामाजिक तत्वों से निपटने के लिए प्रशिक्षण भी पाना चाहिए । ऐसा होने पर ही महिलाएं अपने सपनों को पूरा कर पाएंगी ।
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5 comments:
jab tack logo ki mansikta nahi badalegi,tab tack abradh kam nahi hogein.
अच्छा विश्लेषण एवं विचारणीय आलेख.
बेशक पुरूष प्रधान मानसिकता...ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं...जो इस मानसिकता को बनाए रखने में यकीन करती हैं...
very nice sir
Very informative and useful Post . lost of love And respect .
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