Monday, October 4, 2010

प्राइमरी स्कूलों की संख्या संग गुणवत्ता भी बढ़ाएं

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
लखनऊ में १८ सितंबर को हुई बैठक में उत्तर प्रदेश सरकार ने तय किया कि अब ३०० लोगों की आबादी पर एक प्राइमरी स्कूल खोला जाएगा। शिक्षा का अधिकार अधिनियम में १४ वर्ष के तक बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था की गई है। इसकेअनुरूप बुनियादी शिक्षण संस्थान खोलने के लिए सूबे में कवायद की जा रही है। पहले सरकार ने तय किया था कि प्रदेश में स्कूल खोलने का मानक आबादी के बजाय क्षेत्रफल रहेगा। इसके मुताबिक एक किलोमीटर के दायरे में एक स्कूल खोला जाएगा लेकिन प्रदेश प्राइमरी स्कूलों की जो हालत है, उसके मुताबिक नीति में परिवर्तन किया गया है।
प्रदेश में मौजूदा समय में १ लाख ५ हजार ५०५ प्राइमरी और ४२ हजार ७४८ उच्च प्राइमरी स्कूल हैं। प्रदेश में मौजूदा समय में जितने स्कूल हैं, उनमें नए मानक के अनुसार ३.२५ लाख सहायक अध्यापकों की जरूरत होगी।
प्राइमरी शिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ाने से इससे सूबे में शिक्षा का बुनियादी ढांचा निश्चित रूप से बहुत मजबूत हो जाएगा लेकिन इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि इन स्कूलों में पर्याप्त संसाधन मुहैया कराए जाएं। सूबे में चाहे शहरी इलाके के स्कूल हों, या सुदूर ग्रामीण अंचलों के, सभी में बुनियादी संसाधनों का निहायत अभाव दिखाई देता है।
बड़ी संख्या में स्कूल खस्ताहाल भवनों में चल रहे हैं। अनेक स्कूल किराए की ऐसी इमारतों में चल रहे हैं जिनमें पढ़ाई करना किसी खतरे को मोल लेने से कम नहीं हैं। जिन स्कूलों के अपने भवन भी हैं वहां भी ऐसी इमारतों की संख्या ज्यादा है, जो पुराने हो चुके हैं और मरम्मत न होने के कारण गिराऊ हालत में पहुंच चुके हैं। मेरठ में तो स्कूल की हालत इतनी जर्जर थी कि पड़ोस के एक व्याक्ति ने उसे खुद ही ध्वस्त करा दिया ताकि कोई हादसा न हो जाए। गाहे-बगाहे प्राइमरी स्कूल के जर्जर भवनों की छत आदि गिरने की खबरें अखबारों में छपती भी रहती हैं। कॉम्पैक्ट ने भी सूबे में पड़ताल की तो प्राइमरी स्कूलों की खस्ताहाल तस्वीर को उजागर हुई जहां मौत के साये में मासूम पढ़ाई कर रहे हैं। खतरों की पाठशाला बने ऐसे स्कूलों में बच्चे और शिक्षक दोनों ही दुर्घटना की आशंका से सहमे रहते हैं।
संसाधनों की भी भारी कमी प्राइमरी स्कूलों में दिखाई देती हैं। कहीं टाट-पट्टी फटी हुई हैं तो कहीं ब्लैक बोर्ड की खस्ताहालत है। शिक्षकों के बैठने के लिए कुर्सियां कहीं कम हैं तो कहीं पुरानी और जर्जर हैं। अनेक स्कूलों में टायलेट की व्यवस्था न होना भी विद्यार्थियों शिक्षकों केलिए परेशानी का सबब बन जाता है। स्कूलों में नियमित सफाई का भी इंतजाम नहीं हो पाता है। बिजनौर में १८ सितंबर को उच्च प्राइमरी स्कूल कुरी बंगर में गंदगी पर पाए जाने पर जिला बेसिक शिक्षाधिकारी वरूण कुमार सिंह हेड मास्टर को निलंबित कर दिया तथा अन्य स्टाफ को हटा दिया। बीएसए के मुताबिक निरीक्षण में बहुउददेशीय कक्ष की छत पर घास पाई गई तथा छत पर पानी भरा है दीवारों में सीलन एवं दरार आ गई है। शौचालय एवं मूत्रालय में भूसा एवं टूटी हुई कुर्सियां भरी पाई गर्इं।
शिक्षकों की भारी कमी प्राइमरी स्कूलों में है। ऐसे अनेक स्कूल हैं जो एक या दो शिक्षकों के सहारे चल रहे हैं। मौजूदा समय में सूबे में शिक्षकों की कमी के चलते १४ हजार २७४ एकल और १३८७ स्कूल बंद हो चुके हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि बीच में कई वर्ष ऐसे रहे जब शिक्षक सेवानिवृत तो होते रहे लेकिन भर्ती नहीं की गई।
इन कारणों से प्राइमरी शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई। शिक्षकों की कमी का असर स्कूलों की विद्यार्थी संख्या पर पड़ा। स्कूलों में छात्र के प्रवेश घटे और जिन्होंने दाखिले लिए वे कक्षा में कम दिन उपस्थित रहते। इसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा।
ऐसी स्थिति में जरूरी है कि स्कूलों की संख्या बढ़ाने के साथ ही संसाधनों को भी विकसित करने की ओर ध्यान दिया जाए। साथ ही स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। अच्छे भवनों में विद्यार्थियों की पढ़ाई की व्यवस्था की जाए। शिक्षकों की संख्या भी छात्रों केअनुपात में हो। यह सब होगा तो विद्यालय में पढ़ाई में विद्यार्थियों का मन लगेगा और वह अच्छे शैक्षिक परिणाम देने में समर्थ होंगे। तभी शिक्षा की सार्थकता सिद्ध हो पाएगी और विद्यालय श्रेष्ठ नागरिक तैयार करने में समर्थ हो सकेंगे।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

आप से सहमत हे जी,इतने पढेलिखे लोग बेरोजगार है एक उन्हे काम मिलेगा, दुसरा बच्चो को भी सही शिक्षक मिलेगा,संख्या बढा देने से इन के वोट तो बढ जाते है, फ़िर उस के जरिये इन नेताओ का बेंक बेलेंस भी बढता है, धन्यवाद इस अच्छी रचना के लिये

शरद कोकास said...

यह इस समय की ज़रूरी मांग है ।