
-डॉ. अशोक प्रियरंजन
आजादी के ६३ सालों बाद भी देश में राष्ट्रभाषा घोषित न किया जाना सरकारों की कमजोरी का परिचायक है। इस दौरान कई सरकारें आईं और गईं लेकिन देश की नेतृत्व भाषा को पहचान देने की दिशा में कोई खास कदम नहीं उठाए गए। इसमें कोई दो राय नहीं राजभाषा हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या देश में सर्वाधिक है। विदेशों में भी इस भाषा को जानने और सीखने की ललक व्यापक स्तर पर दिखाई देती है। हिंदी भाषा का शब्दकोश समृद्ध है और विविध विधाओं में प्रचुर मात्रा में इसका साहित्य है। हिंदी में रोजगार की भी व्यापक संभावनाएं हैं। कंप्यूटर पर भी लिखने-पढऩे की सहूलियत भी इस भाषा में है। ऐसे में जरूरी है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया जाए। प्रश्न यह उठता है कि इस संबंध में क्या बाधाएं हैं और उसका समाधान कैसे हो?
सत्तारूढ़ दल अभी तक राजनीतिक तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए राष्ट्रभाषा घोषित करने से इसलिए बचते रहे क्योंकि वह अन्य भाषा भाषियों को नाराज नहीं करना चाहते हैं। कहीं से विरोध के स्वर न उठें, इसीलिए वह राष्ट्रभाषा केमुद्दे पर चुप्पी साधे रहते हैं?
मेरी दृष्टि में इस समस्या का आसान सा समाधान है जिसे सरकार सहजता से अमल भी कर सकती है। हम लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं। लोकतंत्र में जब कोई मुद्दा समस्या बन जाए, तो मतदान से उसका हल निकाला जा सकता है।
मेरी ओर से हिंदी दिवस के मौके पर यह सुझाव है कि राष्ट्रभाषा चुनने के लिए मतदान करा लिया जाए। इसके लिए अलग से व्यवस्था करने की जरूरत नहीं है, बल्कि आगामी संसदीय चुनावों के दौरान जब लोग अपना सांसद चुनें तभी उन्हें राष्ट्रभाषा चुनने के लिए भी एक दूसरा मतपत्र दे दिया जाए। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं को मतपत्र में स्थान देकर राष्ट्रभाषा चुनने के पक्ष में मतदान करा लिया जाए। इस स्थिति में जो भी भाषा चुनकर आएगी, उस पर कहीं से विरोध की स्थिति नहीं रह जाएगी। यह अलग बात है कि हिंदी भाषियों की जिस तरह से संख्या बढ़ी है, उससे हिंदी केराजभाषा से राष्ट्रभाषा बन जाने की प्रबल संभावनाएं हैं। आपकी इस बारे में क्या राय है। हिंदी दिवस २०१० को सार्थक बनाने के लिए आप इस मुद्दे पर अपनी राय टिप्पणी के रूप में अवश्य लिखें।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
4 comments:
आपका सुझाव सही है, मगर अब देश में हिन्दी मान्यता की मोहताज भी नहीं रही है। तेजी से प्रगति कर रही है।
http://sudhirraghav.blogspot.com/
आप की बात से सहमत है, हिन्दी राष्ट्र भाषा हो साथ मै स्थानिया राज्य भाषा भी चले अपने अपने राज्यो अनुसार.
डाक्टर साहब अब वैश्वीकरण के दौर में त्रि भाषी फार्मूला ही कारगर होगा||हिंदी लागू करने से इसका विरोध भी होगा और विरोध से सम्मान तो होगा नहीं
१४-०७-१९४९ को हिंदी को राजभाषाका सुहाग बख्शा गया तभी से बेचारी हिंदी राष्ट्रभाषा के सिन्दूर को अपनी मांग में सजाने को तरस रही है|६१ सालों के बाद भी हिंदी राज्य की ही भाषा है |केंद्र सरकार के कार्यालयों में विशेषकर उत्सव सेलेब्रेट करके प्राईज़ बांटे गए ज्यादा तर अपनों को ही बांटे गए|लेडीस एंड जेंट्स के संबोधनों से दिवस प्रारंभ हुए और टी पार्टी के बाद समाप्त हुए इसके बाद फिर[ वोही पुराना राग] अघोषित राष्ट्रभाषा अंग्रेज़ीमें सर्कुलर बांटने की लीक पीटनी शुरू हो गयी
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