डॉ. अशोक कुमार मिश्रा की नवप्रकाशित पुस्तक “ जनसंचार माध्यमों का विकास और प्रभाव ” पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों के साथ
ही जनमानस के लिए पठनीय, उपयोगी और महत्वपूर्ण है। 15 अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक के माध्यम से भारत में जनसंचार के विकास
क्रम को निर्धारित करते हुए जनमानस, समाज और राष्ट्र पर
उसके प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। यह पुस्तक मुद्रित पत्रकारिता, इलेक्ट्रानिक मीडिया और वैकल्पिक जनसंचार
माध्यमों की प्रवृत्तियों और विशेषताओं की सूक्षमता से रेखांकित करती है। पुस्तक
की विषयवस्तु को सारगर्भित बनाने का प्रयास किया गया है। इसकी भाषा सहज, सरल और संप्रेषणीय है। पुस्तक आनलाइन बिक्री के लिए
एमेजान डाट इऩ पर उपलब्ध है।
Tuesday, June 9, 2020
Monday, May 25, 2020
राष्ट्रीय, सामाजिक और भाषाई मुद्दों को उठाती पुस्तक
साहित्यकार और पत्रकार डॉ. अशोक
कुमार मिश्रा की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक “ राष्ट्रीय, सामाजिक और भाषाई
मुद्दे ” में मौजूदा
दौर की अनेक समस्याओँ और चुनौतियों को रेखांकित किया गया है । ई कामर्स प्लेटफार्म एमजान पर बिक्री के लिए उपलब्ध यह पुस्तक देश की उन समस्याओं और चुनौतियों को उठाती
है जिनसे आम आदमी के सरोकार जुड़े हैं और जो उन्हें गहराई से प्रभावित करती हैं ।
मौजूदा दौर में कोराना वायरस महामारी का खतरा लोगों के जीवन पर मंडरा रहा है ।
इससे उपजी मंदी, बेरोजगारी और आर्थिक संकट ने लोगों की कमर तोड़
दी है । इस बीच आतंकवाद की घटनाएं भी हुईं । बेसिक शिक्षा गुणवत्ता की समस्या से
जूझ रही है तो उच्च शिक्षा केंद्रों में होने वाली हिंसक घटनाएं छात्र छात्राओँ की
पढ़ाई में बाधा डाल देती हैं । सामाजिक रिश्तों का ताना बाना कमजोर होता जा रहा है
। इन्हीं तमाम मुद्दों को पुस्तक में उठाया गया है । पुस्तक समाज के हर आयुवर्ग के
लोगों के लिए पठनीय है।
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Thursday, May 14, 2020
डॉ. अशोक ने किया पुस्तक में महिलाओं का संघर्ष उजागर
साहित्यकार व पत्रकार
डॉ. अशोक कुमार
मिश्रा ने लाकडाउन का सकारात्मक उपयोग करते हुए साहित्य सृजन का महती कार्य किया ।
परिणामस्वरूप विगत दिवस उनकी पुस्तक प्रकाशित होकर साकार रूप में पाठकों के समक्ष
प्रस्तुत हो गई । एमाजान के इंटरनेशल प्लेटफार्म पर भारत और अमेरिका समेत 13 देशों में आनलाइन बिक्री के लिए
उपलब्ध हुई इस पुस्तक “ कितनी लड़ाइयां लड़ेंगीं लड़कियां ” में मौजूदा दौर में
महिलाओँ के संघर्ष, चुनौतियों और उनकी उपलब्धियों को उजागर किया गया है ।
मेरठ स्थित शिवशक्तिनगर निवासी डॉ. मिश्रा शामली के रुड़की इंजीननियरिंग और मैनेजमेंट
इंस्टीट्यूट में डीन हैं । वह आईएमएस नोएडा में मास्टर आफ जर्नलिज्म एंड मास
कम्यूनिकेशन डिपार्टमेंट में प्रोफेसर और हेड आफ डिपार्टमेंट रहे हैं । उन्होंने
कई वर्षों तक चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में भी पढ़ाया है ।
पत्रकारिता और जनसंचार, हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा पर उनके 23 शोधपत्रों और
विविध विषयों पर 100 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है ।
“ कितनी लड़ाइयां लड़ेंगीं
लड़कियां ” पुस्तक समसामयिक समाज में महिलाओँ की स्थिति को
रेखांकित करती है । स्त्री विमर्श पर केंद्रित इस पुस्तक में डॉ. मिश्रा
ने समकालीन समाज में
महिलाओं की स्थितियों का विश्लेषण करते हुए इस दिशा में किए जाने वाले सरकारी,
गैरसरकारी और महिला समाज प्रयासों को रेखांकित किया है । महिलाओं की विविध
समस्याओँ और उनसे संबद्ध प्रश्नों की पड़ताल की गई है । अपने अधिकारों को पाने की
लालसा और इस दिशा में किए जा रहे लड़कियों और महिलाओँ के सार्थक प्रयासों को
पुस्तक में मुखर किया गया है । वास्तव में यह पुस्तक समकालीन समाज का महत्वपूर्ण
दस्तावेज है ।
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Sunday, September 29, 2013
वर्धा में ब्लाग पर महामंथन से निकले विचार कलश
प्रो. डा. अशोक कुमार मिश्र
वर्धा में 20-21 सितंबर
2013 को अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय परिसर में हिंदी ब्लागिंग और सोशल
मीडिया विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला एवं सेमिनार कई मायनों में बड़ी
महत्वपूर्ण रही। श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के संयोजन में हुई इस संगोष्ठी में हिंदी
ब्लाग और सोशल मीडिया से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर हुए महामंथन से कई एसे
विचार निकलकर सामने आए जिन्होंने न केवल ब्लाग लेखन के उज्ज्वल भविष्य को रेखांकित
किया बल्कि इसकी महत्ता को स्थापित करते हुए इसे आम आदमी की अभिव्यक्ति का सबसे
ताकतवर हथियार भी बताया। यह तथ्य भी सामने आया कि सोशल मीडिया हर वर्ग को गहराई से
प्रभावित कर रहा है। नई पीढ़ी हो या बुजुर्ग समुदाय सभी ब्लाग और सोशल मीडिया से
जुड़कर संवाद स्थापित कर रहे हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से समसामयिक मुद्दों पर
अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति कर रहे हैं।
विभूति नारायण राय ने किया
हिंदी ब्लागिंग के भविष्य के प्रति आश्वस्त
यह सम्मेलन एसे समय
में आयोजित किया गया जब फेसबुक और ट्विटर के बढ़ते प्रभाव से हिंदी ब्लागिंग के
पिछड़ने की आशंका उभरकर सामने आ रही थी। समापन सत्र में कुलपति विभूति नारायण राय
ने इस आशंका को सिरे से खारिज कर दिया। हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार विभूति
नारायण राय ने कहा कि जब अखबार आया तो लोगों ने इसी प्रकार की आशंका जाहिर करते
हुए कहा था कि अब फिक्शन खत्म हो जाएगा। जब लोगों को रोजाना नई घटनाएं पढ़ने को
मिल जाएंगी तो फिर काल्पनिक शब्द संसार में लोगों की रुचि खत्म हो जाएगी लेकिन एसा
कुछ नहीं हुआ। इलेक्ट्रानिक मीडिया आया तो अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के इतिहास बन
जाने की आशंका उभरी लेकिन वस्तुस्थिति इसके विपरीत रही। आज जितनी पत्रिकाएं छप रही
हैं, उतनी पहले कभी नहीं छपीं। इसी तरह फेसबुक और ट्विटर के आ जाने से हिंदी ब्लागिंग
का कोई नुकसान नहीं होने वाला है। हिंदी ब्लागिंग का भविष्य उज्ज्वल है।
ब्लाग एग्रीगेटर की
संभावनाओं से शुरू हुआ उद्घाटन सत्र
हबीब तनवीर सभागार में सुबह
10 बजे शुरू हुए उद्घाटन सत्र में कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि
विश्वविद्यालय हिंदी ब्लागिंग के लिए एक एग्रीगेटर उपलब्ध कराएगा। समापन सत्र में
इसके लिए 15 अक्टूबर की समय सीमा भी निर्धारित की गई। यह इस संगोष्ठी की महत्वपूर्ण
उपलिब्ध है। दरअसल चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी जैसे एग्रीगेटर बंद होने से ब्लाग लेखक
एक लोकप्रिय और प्रभावशाली एग्रीगेटर की आवश्यकता महसूस कर रहे थे, विश्वविद्यालय
का एग्रीगेटर उसी आवश्यकता की पूर्ति करेगा, यह उम्मीद सभी ब्लागरों को है। नरेश
सक्सेना द्वारा रचित कुलगीत से शुरू हुए इस सत्र में संयोजक श्री सिद्धार्थ शंकर
त्रिपाठी ने कार्यशाला और सेमिनार की महत्ता को रेखांकित किया। कार्तिकेय मिश्र ने
विषय प्रवर्तन किया जबकि प्रवीण पांडेय ने हिंदी ब्लागिंग के विविध पक्षों को
उठाया। प्रति कुलपति अरविंदाक्षन और प्रो, अनिल कुमार राय ने भी संबोधित किया।
ब्लाग, फेसबुक और ट्विटर की
तिकड़ी के समीकरणों पर विचार
पहले सत्र में प्रवीण
पांडेय, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, अविनाश वाचस्पति, संतोष त्रिवेदी, बलिराम धाप्से
और अरविंद मिश्र ने इस बात को स्थापित किया कि फेसबुक और ट्विटर की अपेक्षा ब्लाग लेखन
में अधिक गंभीरता है। तीनों की अलग महत्ता है। ब्लाग पर लेखन में विषय को विस्तार
दिया जा सकता है जबकि ट्विटर पर शब्द सीमा
निर्धारित है। इस सत्र का संचालन किया अनूप शुक्ल ने।
विद्यर्थियों ने सीखी ब्लाग
बनाने की तकनीक
रिमझिम बारिश के बीच विश्वविद्यालय
की कंप्यूटर लैब में विद्यर्थियों ने ब्लाग बनाने की तकनीक सीखी। आलोक कुमार,
विपुल जैन, शैलेश भारतवासी और ब्लागरों ने छात्र-छात्राओं को ब्लाग बनाने के गुर
बताए। अनेक विद्यर्थियों ने ब्लाग बनाकर पहली पोस्ट लिखी। बच्चों की अनेक जिज्ञासाओं
का ब्लागरों ने समाधान किया।
तीसरे सत्र में सोशल मीडिया
और राजनीति के रिश्ते पर मंथन
मौजूदा दौर में सोशल मीडिया
ने राजनीति को बहुत गहराई से प्रभावित किया है। अनेक राजनीतिज्ञ जनता में अपनी पैठ
बनाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। पेड पोस्ट का मुद्दा भी इसी
सत्र में उठाया गया। कार्तिकेय मिश्र, संजीव तिवारी, पंकज झा, संजीव सिन्हा. अनूप
शुक्ल, अनिल रघुराज और शकुंतला शर्मा ने सोशल मीडिया के राजनीतिक प्रभाव का
विश्लेषण किया। संचालन हर्षवर्धन त्रिपाठी ने किया।
दूसरे दिन चौथे सत्र में हिंदी
ब्लागिंग और साहित्य से जुड़े पक्ष उभरे
साहित्य के कितने आयामों को
छू रहा है हिंदी ब्लाग। दूसरे दिन के चौथे सत्र में इस विषय पर बोलते हुए डा. अशोक
कुमार मिश्र ने कहा कि ब्लाग ने आम आदमी लेखन और प्रकाशन का अधिकार दे दिया है। वह
स्वयं अपनी लिखी रचनाएं ब्लाग पर प्रकाशित कर विशाल जनसमूह तक पहुंचा सकता है। इससे
रचनात्मकता का विकास हुआ है। अनेक विधाएं समृद्ध हुई हैं। ब्लाग साहित्य के विविध
आयामों को प्रखरता प्रदान कर रहै। इसी सत्र में ब्लाग विधा है या माध्यम पर बहस
हुई और निष्कर्ष निकला कि ब्लाग लेखन का माध्यम है। अविनाश वाचस्पति, अरविंद
मिश्र, ललित शर्मा, शकुंतला शर्मा, डा. प्रवीण चोपड़ा और वंदना अवस्थी दुबे ने इस
विषय पर विचार रखे। इसके बाद तकनीकी सत्र में विकीपीडिया पर सामग्री संपादित करने
और पेज बनाने की जानकारी दी गई।
समापन सत्र में खुली चर्चा
मनीषा पांडे ने अंतिम सत्र
में स्त्री विमर्श से जुडे मुद्दों को प्रभावशाली ढंग से उठाते हुए शिक्षा, विवाह
और जीवन के महत्वपूर्ण फैसले लेने की स्वतंत्रता महिलाओं को दिए जाने की वकालत की।
कुलपति विभूति नारायण राय ने ब्लागरों से लेखन में विविधता लाने पर जोर दिया।
प्रो. अनिल राय अंकित ने विचार रखे। संचालन किया सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने।
Tuesday, June 25, 2013
जब हर शाम होने लगी काव्य गोष्ठी
डा. अशोक कुमार मिश्र
बात उन दिनों की है जब मैं बदायूं में था। हिंदी में सबसे पहले गजल कहने का
श्रेय जाता है कवि-सम्मेलनों के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि बलवीर सिंह रंग को। इसीलिए
उनको गीत-गजल सम्राट भी कहा जाता था। उम्र के आखिरी दौर में रंगजी बदायूं आ गए थे।
सरकारी अस्पताल का प्राइवेट वार्ड उनका आशियाना बना था। उन दिनों मैं भी अशोक
प्रियरंजन नाम से कविताएं लिख रहा था। रंग जी का व्यक्तित्व बड़ा प्रेरणादायक था।
अक्सर मैं रंग जी के पास चला जाता। बातचीत के दौरान वह अपने गीत-गजल सुनाते और
मुझसे भी आग्रह करते कि कुछ लिखो और सुनाओ। जब मैं उन्हें अपनी रचना उन्हें सुनाता
तो वह बड़े ध्यान से सुनते, सुधार करते और अपने सुझाव भी देते थे। कविता के प्रति
उनका लगाव अद्भुत था। धीरे-धीरे लोगों को रंग जी के आने का पता चलता गया और उनसे
मिलने वालों की संख्या बढ़ने लगी। उन दिनों बदायूं में कवि-सम्मेलनों के दिग्गज
हस्ताक्षर मौजूद थे जिनकी वाणी पूरे देश में गूंजती थी। वीर रस के मशहूर कवि
श्रद्धेय ब्रजेंद्र अवस्थी, ओज के हस्ताक्षर डा. उर्मिलेश शंखधार, मोहदत्त साथी,
सुभाष बशिष्ठ, शमशेर बहादुर आंचल, काका देवेश, अवधेश पाठक और नई पीढ़ी के अनेक
काव्य सर्जकों के लिए रंग जी का बदायूं आना बहुत उत्साहजनक था। ये लोग और आसपास के
जिलों से लोग रंगजी का हालचाल पूछने अक्सर आते रहते थे। शाम को रोजाना दो-चार कवि
और कुछ काव्य प्रेमी रंग जी के पास पहुंच जाते थे और फिर बिना किसी पूर्व योजना के
अपने आप हो जाती थी काव्य गोष्ठी। ऐसी काव्य गोष्ठी जिसमें रंग जी के साथ ही कोई न कोई दिग्गज
कवि भी मौजूद होता था। जब तक रंग जी बदायूं में रहे, ये सिलसिला अनवरत चलता रहा और
काव्य गंगा प्रवाहित होती रही। आज भी उनकी गजल की पंक्तियां कानों में गूंजती हैं-
कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो कि सुलझाए नहीं जाते,
और उत्तर भी ऐसे हैं कि बतलाए नहीं जाते।
बनाना चाहता हूं स्वर्ग तक सोपान सपनों का,
मगर चादर से बाहर पांव फैलाए नहीं जाते।
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Tuesday, March 12, 2013
नए अध्यादेश से मिलेगी महिलाओं को सुरक्षा, रुकेंगे अपराध
डा. अशोक कुमार मिश्र
महिलाओं की सुरक्षा संबंधी कानून के विधेयक के मसौदे पर गहन मंथन के बाद भी
कैबिनेट की बैठक में सहमति न बन पाने की स्थिति कई सवाल खड़े करती है। मसौदे के
कड़े प्रावधानों को लेकर मंजूरी से पहले ही इसके दुरुपयोग की आशंका पैदा हो रही है
जिसके चलते मंत्रियों तक को पसीने छूट रहे हैं। सवाल पैदा होता है कि दुरूपयोग की
आशंका के चलते क्या सख्त कानून ही न बनाए जाएं। फिर कैसे अपराधों पर रोक लगेगी।
बलात्कार की घटनाएं जिस तेजी से बढ़ रही हैं, उसके चलते जरूरी है कि इसकी रोकथाम
के लिए कड़े कानून हों और उनका सही तरीके अनुपालन होना चाहिए। कानून का अगर
दुरुपयोग होता है तो इसके लिए भी हमारी पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था ही दोषी होती है।
पहली इस तरह के जघन्य अपराध को लेकर जो सामाजिक जागरूकता पैदा हुई है, सरकार ने
जिस तरह से गंभीर मंथन किया है, उसका सम्मान करते हुए बिना किसी राजनीति के विधेयक
को अंतिम रूप दे दिया जाना चाहिए। कई मायनों में दुष्कर्म विरोधी अध्यादेश महत्वपूर्ण
है।
इस अध्यादेश से महिलाओं के खिलाफ
यौन अपराधों पर लगाम लगाना संभव होगा। प्रस्तावित आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक
-2013 में बलात्कार की परिभाषा में ही बदलाव लाने का प्रस्ताव है। इसके लागू होने
पर अंतरंग अंगों का किसी भी प्रकार से स्पर्श बलात्कार के दायरे में आएगा। इसका
असर यह होगा कि अभी तक अंतरंग अंगों के स्पर्श के जो मामले छेड़छाड़ में दर्ज होते
थे, यौन हमलों के दायरे में आते थे, वे अब बलात्कार के दायरे में आएंगे और दोषियों
को इसी कानून के तहत सजा मिलेगी। गौरतलब है कि छेड़छाड़ की सर्वाधिक घटनाएं होती
हैं जिनमें से संकोचवश अनेक मामले तो पुलिस में दर्ज भी नहीं कराए जाते हैं। यहां
पर यह बहस का मुद्दा रहा कि यौन उत्पीड़न शब्द को ही बरकरार रखा जाए अथवा इसके लिए
बलात्कार शब्द रखा जाना चाहिए। अब बलात्कार शब्द पर ही सहमति बन रही है।
दुष्कर्म रोधी विधेयक में यह भी प्रावधान है कि कोई डाक्टर यदि बलात्कार
पीडित के इलाज से मना करता है तो उसके लिए पांच से सात साल तक की सजा हो सकती है।
यह बहुत जरूरी है। इलाज के अभाव में महिलाओं की स्थिति बिगड़ जाती थी और डाक्टर
कानूनी पचडे में पड़ने से बचने के लिए उसके इलाज से कतराते थे। पुलिस पर भी
अध्यादेश के मार्फत लगाम कसी गई है। अगर कोई पुलिस अफसर बलात्कार के मामले की जांच
करने में नाकाम रहता है तो उसे भी इस स्थिति में छह माह की सजा हो सकती है।
गैंगरेप के मामलों में भी आरोपियों को पीड़त के इलाज और पुनर्वास का खर्च उठाना
होगा। अध्यादेश के इस प्रावधान से पीड़ित महिला को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी। यह
अच्छी पहल है और न्याय संगत भी। सरकार ने सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र भी
18 वर्ष से घटाकर 16 साल कर दी है। इसके भी दूरगामी परिणाम अच्छे ही होंगे। अदालती
आदेश पर अलग हो चुकी पत्नी के साथ भी शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार के दायरे में
आएगा। इसके लिए दो से सात साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
अध्यादेश लागू होता है तो इसके प्रावधान निश्चित रूप से महिलाओं को सुरक्षा
प्रदान करने में समर्थ होंगे। इसलिए जरूरी है कि सरकार आम राय बनाकर इसे पारित कर
दे। यह वक्त की जरूरत है। दुरुपयोग न हो, इसके लिए व्यवस्था की जानी चाहिए। सरकारी
तंत्र सतर्क रहेगा तो कोई वजह नहीं कि दुरुपयोग हो पाए।
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Wednesday, March 6, 2013
महिलाओं की सुरक्षा के हों पुख्ता इंतजाम
-डा. अशोक कुमार मिश्र
पूरी दुनिया में आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह एक दिन एसा होता है जिस दिन पूरी दुनिया में महिलाओं की मौजूदा हालात पर गहन मंथन हो जाता है। अखबारों में लेख छपते हैं, गोष्ठियां होती हैं और कुछ निष्कर्ष भी निकलते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि महिलाएं पहले के मुकाबले मजबूत हुई हैं। 21 वीं सदी के कुल जमा पिछले 12 सालों में जितनी महिलाएं शिक्षिक, इंजीनियर, डाक्टर, बनी, उच्च पदों पर पहुंची और रोजगार के विविध क्षेत्रों में सक्रिय हुईं, वह अद्भुत है। आज महिलाओं ने आईटी, प्रशासन, शिक्षा और विज्ञान जैसे अनेक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी बढ़ाकर पहचान बनाई है। 20 वीं सदी में यह संख्या काफी कम थी। आज महिला शिक्षा का प्रतिशत बढ़ा है। आर्थिक रुप से महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं, यह अच्छे संकेत है। कुछ न कुछ नकारात्मक पक्ष हमेशा रहे हैं, उन्ही को तो ठीक करने के लिए समाज में संघर्ष चलता रहता है, और आगे भी चलता रहेगा। यह भी सच है कि महिलाओं के प्रति अपराध बढ़े हैं, बाजार के गणित के चलते उनके प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आया है, जिस पर गहनता से विचार करने की जरूरत है। कामकाजी व्यस्तताओं के चलते अब वह घर और परिवार के लिए समय कम दे पाती हैं। मौजूदा हालात में अगर सुरक्षा की बेहतर स्थितियां हों तो महिलाओं को रोजगार के अवसर अधिक मिलेंगे और वह तेजी से आगे बढ़ सकेंगीं।
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