- डॉ. अशोक कुमार मिश्र
मौजूदा दौर में नई पीढ़ी में पढऩे का संस्कार चिंताजनक स्थिति से घटता जा रहा है। पाठ्यक्रम से इतर किताबें पढऩे की प्रवृत्ति देश के भावी कर्णधारों में नहीं दिखाई देती। यही वजह है कि अब अभिभावक भी साहित्यिक पुस्तकों की खरीदारी को अपने महीने के बजट में शामिल नहीं करते। जो लोग बजट में किताबों को रखते भी हैं, वे कई बार आर्थिक दबाव बढऩे पर सबसे पहले पुस्तकों की खरीद में ही कटौती कर देते हैं। एक संकट यह भी है कि कई बार अच्छी पुस्तकें इतने महंगे दामों पर मिलती हैं कि उन्हें खरीदने में ही पसीने आने लगते हैं। पहले घरों में लोग पुस्तकालय बनाया करते थे जो अब घटते जा रहे हैं। इन सब बातों के चलते ही केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने पांचवीं से बारहवीं तक की कक्षाओं के लिए पाठ्यपुस्तकों से इतर पुस्तकों को भी पढ़ाने की सलाह दी है। इसके लिए सीबीएसई ने स्कूलों को पाठ्य सामग्री के रूप में पुरस्कार प्राप्त पुस्तकों की सूची भेजी है। बोर्ड की ओर से स्कूलों को फरमान दिया गया है कि फॉर्मेटिव मूल्यांकन करने के लिए रीडिंग प्रोजेक्ट्स का भी सहारा ले सकते हैं। बोर्ड का मानना है कि बच्चों को पाठ्यपुस्तकों के अलावा भी जानकारी दी जानी चाहिए जिससे कि उनका समग्र विकास हो सके। इसके लिए बोर्ड ने एसोसिएशन ऑफ राइटरस एंड इलिस्ट्रेटर के सहयोग से भारतीय लेखकों की ऐसी पुस्तकों की सूची तैयार की है। इस रीडिंग मैटीरियल में शामिल की गई पुस्तकों में साइंस फिक्शन, हिस्टोरिक्ल फिक्शन, मिस्ट्री, वास्तविक घटनाओं की कहानियां, प्ले, पर्यावरण आधारित पुस्तकों को शामिल किया गया है। प्रधानाचार्यों को दिए गए निर्देश में कहा गया है कि लाइब्रेरी में ही ऐसे संसाधन उपलब्ध कराएं जाएं जिससे बच्चे में स्वंय पढऩे की भावना जागृत हो। बच्चों को लाइब्रेरी जाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाए। पाठ्येत्तर पुस्तक पढऩे की रुचि जागृत करने केलिए जरूरी है कि दूसरे बोर्ड भी इस तरह की पहल करें और अभिभावक भी शब्दों के संसार से बालकों को रूबरू कराने की ओर ध्यान दें।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
Sunday, March 6, 2011
पढऩे का घटता संस्कार, नई पीढ़ी का बड़ा संकट
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7 comments:
पाठ्यक्रम से इतर किताबें पढऩे की प्रवृत्ति देश के भावी कर्णधारों में नहीं दिखाई देती। यही वजह है कि अब अभिभावक भी साहित्यिक पुस्तकों की खरीदारी को अपने महीने के बजट में शामिल नहीं करते
sahi kaha janab!
saleem
9838659380
उपयोगी आलेख!
विचारणीय पहलू आज के समाज के/// सोचना चाहिये इस दिशा में. उम्दा आलेख.
चिंता जायज़ है.... केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की और से सार्थक पहल...
बहुत विचारणीय विषय पर बात आपने..... सच में पाठ्यक्रम के अलाव भी पुस्तके पढना ज़रूरी है भावी पीढ़ी के लिए ..... आपसे सहमत
aap ki chinta aur vichar sahi hai. din me kam se kam 10 - 15 mins ka samay bachchon ko padhne ke liye dena chahiye.
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