

-डॉ. अशोक कुमार मिश्रमहाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ०९-१० अक्टूबर को ब्लागिंग की आचार संहिता विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी कई मायनों में बड़ी महत्वपूर्ण रही। आज जब पूरी दुनिया में साहित्यिक और पत्रकारिता संबंधी विधाओं के उन्नयन में ब्लाग एक महत्वपूर्ण मंच की भूमिका निभा रहा है, तो यह जरूरी हो जाता है कि उस पर प्रकाशित सामग्री का विविधि दृष्टिकोण से विश्लेषण किया जाए। संगोष्ठी के संयोजक विश्वविद्यालय केआंतरिक सम्परीक्षा अधिकारी सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने इस महत्वपूर्ण पक्ष को समझकर वर्धा में ब्लागरों को एकजुट किया। इस सम्मेलन के माध्यम से कई सवाल उठे और उनके जवाब तलाशे गए। संगोष्ठी का प्रारंभ करते हुए श्री त्रिपाठी ने ब्लाग की महत्ता को रेखांकित करते हुए इसकी संभावनाओं पर प्रकाश डाला और आचार संहिता के प्रश्न को उठाया। प्रति कुलपति प्रो. अरविंदाक्षन ने भी संगोष्ठी की उपादेयता प्रतिपादित की। उद्घाटन करते हुए कुलपति व प्रसिद्ध साहित्यकार विभूति नारायण राय ने सामयिक संदर्भों का उल्लेख करते हुए कहा कि ब्लाग को बहुत गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। ब्लाग के माध्यम से उपलब्ध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहीं स्वच्छंदता में न परिवर्तित हो जाए, इसकेप्रति सचेत रहना होगा। उन्होंने कहा कि ब्लागर अपनी लक्ष्मण रेखा का स्वयं निर्धारण करें।
वस्तुत: अधिकतर ब्लागर इसी बात केपक्ष में दिखाई दिए। उनकी मान्यता थी कि ब्लाग पर यदि आचार संहिता का शिकंजा कस दिया जाएगा तो उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्ष समाप्त हो जाएगा जो कि उसकी सबसे बड़ी विशेषता है। कुछ चिट्ठाकारों की मान्यता थी कि ब्लाग पर प्रकाशित रचनाओं का यदि नियमन किया जाएगा तो इससे इसके सामाजिक सरोकारों और सार्थकता में वृद्धि हो जाएगी। बाद में, साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने ब्लागर केनिरंकुश होने से उत्पन्न खतरों से सचेत किया और संगोष्ठी के विषय की सार्थकता को स्थापित करते हुए स्पष्ट किया कि ब्लागरों के लिए भी निश्चित रूप से कुछ नियम कायदे होने चाहिए।
प्रतिष्ठित कवि आलोक धन्वा ने कहा कि ब्लाग विस्मयकारी करने वाला है। उनके लिए शब्दों का यह अद्भुत संसार है। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर बहुत कठिनाइयों भरा है जहां लोकतांत्रिक मूल्यों का निरंतर लोप होता जा रहा है। ऐसे में ब्लाग पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सदुपयोग करते हुए विचार तत्वों को विस्तार दिया जा सकता है। उन्होंने कहा ब्लाग जगत में पाखंड नहीं है, जो बहुत अच्छी बात है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे हैदराबाद से आए प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि ब्लाग पर प्रस्तुत शब्द संसार को आभासी नहीं वास्तविकता से जोड़कर ही देखा जाना चाहिए। इसलिए इसमें नैतिकता के प्रश्न पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने ब्लाग पर पनप रही दुष्प्रवृत्तियों को आड़े हाथ लेते हुए आचार संहिता की वकालत की।
लंदन से आई कविता वाचक्नवी ने ब्लागिंग की आचार संहिता का समर्थन करते हुए लेखन में संयम बरतने की बात कही। उन्होंने कहा लेखन के माध्यम से सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए निरंकुश आचरण नहीं किया जाना चाहिए। कथाकार डॉ. अजित गुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि ब्लागर एक पंचायत बनाकर लेखकीय नियमन का निर्धारण करें।
कानपुर से आए अनूप शुक्ल, दिल्ली के यशवंत सिंह और हर्षवर्धन ने ब्लाग में आचार संहिता की बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि इससे ब्लाग की मौलिक प्रवृत्ति ही नष्ट हो जाएगी। इसकेबाद अहमदाबाद के संजय बेगाणी और दिल्ली के शैलेश भारतवासी ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को ब्लाग बनाने का प्रशिक्षण दिया। जनसंचार विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार राय अंकित ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
संगोष्ठी का दूसरा दिन कई चिंतनपरक आयामों से गुजरा। सभी ब्लागरों के चार समूह बनाकर विविध विषयों पर विचार मंथन किया गया और उसके निष्कर्षों को समूह प्रतिनिधि ने मंच से प्रस्तुत किया। ब्लागिंग में नैतिकता व सभ्याचरण, हिंदी ब्लाग और उद्यमिता, आचार संहिता क्यों और किसके लिए, हिंदी ब्लाग और सामाजिक सरोकार विषयों पर गहन मंथन किया गया। चार ब्लागरों के अध्ययन पत्रों का भी प्रस्तुतीकरण किया गया। डॉ. अशोक कुमार मिश्र ने ब्लागरी में नैतिकता का प्रश्न और आचार संहिता की परिकल्पना विषय पर प्रस्तुत अपने अध्ययन पत्र में उल्लेख किया कि ब्लाग में स्वअनुशासन का होना बहुत जरूरी है। अनुशासन के दायरे में रहकर ही श्रेष्ठ लेखन संभव है। ब्लाग में नैतिकता के प्रश्न का वैचारिक विश्लेषण करते हुए कहा जा सकता है कि ब्लाग में आचार संहिता की परिकल्पना के पीछे चिट्ठाकारों में स्वअनुशासन की भावना को ही विकसित करना है। लखनऊ के रवींद्र प्रभात, ब्लाग पर पीएचडी कर रही इंदौर से आई गायत्री शर्मा, दिल्ली के अविनाश वाचस्पति ने भी अध्ययनपत्र प्रस्तुत किए। उज्जैन से आए सुरेश चिपलूनकर, लखनऊ के जाकिर अली रजनीश और बंगलौर से आए प्रवीण पांडे ने ब्लाग लेखन में शाब्दिक शालीनता बरतने, सार्थक टिप्पणियां करने, ब्लाग के माध्यम से समसामयिक प्रश्नों पर विचार करने और सामाजिक सरोकारों से जोडऩे पर जोर दिया। साहित्यकार राजकिशोर, प्रियंकर पालीवाल, महेश सिन्हा, जयराम झा, विवेक सिंह, संजीत त्रिपाठी, श्रीमती अनीता कुमार, रचना त्रिपाठी, विनोद शुक्ला की उपस्थिति ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की।