-डॉ. अशोक प्रियरंजन
हिंदी के चर्चित हस्ताक्षर गिरिराज किशोर के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास 'ढाई घर'की शुरुआत कुछ इस तरह होती है-'मेरा नाम भास्कर राय है। मैं उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके के एक पुराने खाते-पीते राय खानदान का अंतिम राय हूं। अब मेरे बाद कोई राय नहीं होगा। मेरे बच्चे हैं पर जिस आधार पर हम लोग राय हुआ करते थे, वह एक बड़ी जमींदारी थी। वह कभी की खत्म हो गई।' दरअसल इस उपन्यास में जिस अंचल को केंद्रबिंदु बनाकर कथा का ताना-बाना बुना गया है, वह कोई और नहीं बल्कि मुजफ्फरनगर और मेरठ ही भूमि है। खड़ी बोली के लिए जाने जाना वाला मेरठ अंचल ही इस बहुचर्चित उपन्यास में जीवंत रूप में दिखाई देता है। मेरठ अंचल की परंपराएं, मान्यताएं और रीति रिवाज इस उपन्यास में हैं। प्रमुख पात्रों के संवाद खड़ी बोली में हैं और इसमें कौरवी के भी शब्दों का प्रयोग किया गया है। इस उपन्यास में मेरठ और यहां के कुछ प्रमुख स्थलों के विषय में भी जानकारी दी गई है। इस साहित्यिक कृति में मेरठ कालेज और बुढ़ाना गेट का जिक्र है। उपन्यास के मुख्य पात्र हरिराय के शब्दों में-'मेरठ कॉलेज में भी साथ ही साथ पढ़े थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उस समय दो ही बड़े कॉलेज थे। एक शायद आगरा कॉलेज आगरा और दूसरा मेरठ कॉलेज मेरठ। आगरा का सेंट जान्स भी पुराने कॉलेजों में में है। पूरी कमिश्नरी के लड़केमेरठ ही पढऩे जाते थे। तब मेरठ कॉलेज इंटर तक था। लेकिन था काफी बड़ा। ' इसी क्रम में वह आगे बताते हैं कि, 'बुढाने दरवाजे पर एक मशहूर पान लगाने वाला था। वह उस जमाने में सौ-सौ रुपये का कुश्ते वाले पान बनाता था। रईस लोग अपनी ऐय्याशी को सही सलामत रखने के लिए उसका पान खाते थे।Ó गिरिराज किशोर के उपन्यास 'लोग' और 'जुगलबंदी' में भी मेरठ अंचल धड़कता दिखाई देता है।
उर्दू के मशहूर कथाकार सआदत हसन मंटो ने अपनी कलम से अनेक बेहतरीन कालजयी चरित्रों की रचना की है। ऐसा ही एक चरित्र मंटो ने रचा और उसका नाम रखा-मेरठ की कैंची। मंटो के १० कहानियों का संग्रह मेरठ की कैंची नाम से प्रकाशित हुआ है। इसकी प्रमुख कहानी मेरठ की कैंची की नायिका के बारे में वह लिखते हैं, '---अब पारो रोज स्टूडियो आने लगी। बहुत हंसमुख और मीठी आवाज वाली तवायफ थी। मेरठ उसका वतन था जहां वह शहर के करीब-करीब हर रंगीन मिजाज रईस की मंजूरे नजर थी। उसको ये लोग मेरठ की कैंची कहते थे। इसलिए कि वह काटती थी और बड़ा महीन काटती थी।' आगे वह लिखते हैं, '---पारो में आम तवायफों जैसा भड़कीला छिछोरापन नहीं था। वो महफिलों में बैठकर बड़े सलीके से बातें कर सकती थी। इसकी वजह यही हो सकती है कि मेरठ में उसके यहां आने-जाने वाले ऐरे-गैरे नत्थू -खैरे नहीं होते थे। उनका संबंध सोसाइटी के उस तबके से था जो नाशाइस्तगी की तरफ सिर्फ तफरीह की खातिर मायल होता है।'
हिंदी के प्रमुख साहित्यकार अमृतलाल नागर का उपन्यास 'सात घूंघट वाला मुखड़ा' मेरठ केसरधना की बेगम समरू को केंद्र में रखकर लिखा गया है। कालजयी उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री के उपन्यास 'सोना और खूनÓ केदूसरे भाग में १८५७ की क्रांति के दौरान मेरठ अंचल में लोगों की शहादत का वर्णन किया गया है। यह भी बताया गया है कि कैसे पंजाब से आकर विस्थापितों ने मेरठ और उसके आसपास के इलाके में शरण ली। डॉ. सुधाकर आशावादी ने भी अपने उपन्यास 'काला चांद' में मेरठ का वर्णन किया है।
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4 comments:
nice
बहुत सुन्दर और सटीक लिखा है आपने!
प्रेम दिवस की हार्दिक बधाई!
बहुत सुंदर ओर विस्तार से लिखा उस जमाने मै १०० रुपये का पान....
धन्यवाद
गिरिराज जी का यह उपन्यास अवश्य पठनीय होगा
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