-डॉ अशोक प्रियरंजन
मेरा शहर मेरठ - मेयर मधु गुजॆर । मेरा प्रदेश उत्तर प्रदेश - मुख्यमंत्री मायावती । मेरा देश भारत-सत्तारूढ यूपीए की चेयरमैन सोिनया गांधी । ये सब प्रतीक हैं उस सत्ता के जिसके शीषॆ पर िवराजमान हैं महिलाएं । एक शहर से लेकर देश की उच्च सत्ता पर महिलाओं का विराजमान होना सुखद संकेत हो सकता है । अपेक्षा की जानी चाहिए िक इस िस्थित में महिलाओं की जिंदगी बेहद खुशहाल, उम्मीदें जगाने वाली और सतरंगी सपनों से लबरेज हो । पहले जमाने में उनके लिए जो मुिश्कलें रहीं वह अब खत्म हो जानी चाहिए । पुरूषों के स्थान पर शीषॆ पदों पर महिलाओं के प्रतिष्ठित होने से संपूणॆ महिला समाज के तरक्की की उम्मीद जगना स्वभाविक है । एेसा लगता है िक इस स्तिथि में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही रोजगार, कामकाज, अधिकार और आथिॆक आत्मनिभॆरता मिलनी चािहए लेकिन हकीकत कुछ और है ।
भारत की महिलाओं की सि्थति की असलियत को सामने लाती है यूएनओ की लैंगिक समानता संबंधी रिपोटॆ । इस रिपोटॆ के मुताबिक लैंगिक समानता के मामले में भारत विश्व में ११३वे स्थान पर है । तस्वीर और साफ हो जाएगी अगर सीधे लफ्जों में कहा जाए िक लैंगिक समानता के मामले में ११२ देशों में में महिलाओं की सि्थति भारत से बेहतर है । यह एेसा सच है जो महिलाओं की तरक्की के तमाम दावों की पोल खोलता है । अपने आसपास रोजाना घट रही घटनाओं पर नजर डालें तो लगता है िक महिला पुरुष समानता का नारा अभी खोखला ही है ।
नेशनल क्राइम रेकार्ड ब्यूरो के आंकडों के मुतािबक वषॆ २००६ में देश में बलात्कार के १९३४८, दहेज के लिए हत्या के ७६१८, महिलाओं लडकियों के अपहरण के १७४१४, छेडछाड के ३६६१७, यौन उत्पीडन के ९९६० और पति-परिजनों की कूरूर्ता के ६३१२८ मामले दजॆ िकए गए । महिला संबंधी अपराधों की इस सि्थति के बीच कैसे तरक्की के सपने देखे जा सकते हैं । अपराधों की यह डरावनी तस्वीर आधी आबादी को हर समय आशंकित और भयभीत किए रहती है । घर की दहलीज हो या िफर खुली सडक कहीं भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं । जब तक मिहलाओं को सुरक्षा का भरोसा नहीं होगा तब तक वह कैसे पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर सकती हैं । इसके लिए जरूरी है िक महिलाओं के प्रति सामाजिक द्रिषटिकोण में भी बदलाव हो । यह बदलाव न होने के कारण ही कन्या भूर्ण हत्या एक बडी बुराई के रूप में उभर रही है । एक कडवा सच यह भी है िक बुराई को आगे बढाने में पढा िलखा तबका सबसे ज्यादा है । लैंगिक समानता का आधार तो जन्म से ही शुरू होना चाहिए । जब कन्या को जन्म देने पर दुख के बजाय सुख की अनुभूति होने लगेगी तो यह लैंगिक समानता की शुरूआत होगी ।
बिना भेदभाव के कन्या शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे, उन्हें अपनी मजीॆ से कैरियर चुनने की आजादी मिलेगी तो इस दिशा में अगले कदम होंगे । जब विवाह में उन्हें लडके के समान निणॆय लेने की स्वतंत्रता मिलेगी तब यह समानता का विस्तार होगा । जब वह ससुराल, रोजगार, सत्ता और आथिॆक स्वाबलंबन में उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा तब यह वास्तिवक लैंगिक समानता होगी । एेसी सि्थति में वह निभीॆक होकर जीवन यापन कर पाएंगी, देश के विकास में भरपूर योगदान दे पाएंगी और उन सपनों में इंद्रधनुषी रंग भर पाएंगी जो उनकी आंखों में आकार लेते रहते हैं । इन सपनों को पूरा करने के िलए परिवार, समाज और सरकार का योगदान जरूरी है । सभी का सहयोग होगा तो सपने जरूर पूरे होंगे ।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
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29 comments:
Bahut badiya.
किसी भी सुधार के लिए जनमानस में बदलाव आना ज़रूरी है.
sahi likha hai--bahut badlaav aa gaya hai--aur aagey bhi positive umeed hai .
सही लिखा है।
जब वह ससुराल, रोजगार, सत्ता और आिथॆक स्वाबलंबन में उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा तब यह वास्तिवक लैंिगक समानता होगी ।
" very well said, hatts off to you for your thought and these wonderful expression"
Regards
कुछ भी हो आपका लेख अच्छा है छोटी इ की मात्रा को छोड कर :)
बेहतरीन प्रस्तुति
आपको बधाई
छोटी इ के लिये आपको मेल दी थी
मेलबाक्स देखें
धन्यवाद......अब मिलते रहेंगे,
बढ़िया है.....
अच्छा बहुत बढिया महिलाओं के महत्व को उजागर करती तस्वीर आपने खूब उकेरी है
सही कहा आपने। ये विचारों की क्रान्ति जल्द ही आएगी।
jhallevichaaraanusaar Haq mangne se nahin milte isi liye smaantaa ke liye doosron ki taraf taaknaa uchit nahin hogaa .world war ke paschaat paschim ki adhikansh war widows ne suhaagno ke suhaag par dakaa maarne ke sthaan par akelaa rehnaa pasand kiyaa aur samaaz main sammaan payaa .yeh ek udhaaran hai marg darshan nahin .Inhe saamne rakh kar uchi dishaa main karya kiyaa jaa saktaa hai .Aapne mahilaaon ke kalyaan,baraabari ka parcham uthayaa hai to ise lagaataar oonchaa karte rahiye
ashokji, aap ka blog padha, abhi mai india ke bahr hone ki vajah se aapko javab samay par nahi de pai.aap ke blog par samajik,rajkiy tatha aarthik tinon samasyaon ke bare mai padhaneko milta hai.
bahot hi badhiya vichar hai aapke, sanman karti hun mai aapke vicharon ka.
isi tarha likhte rahiye hame bhi haqqikat ka samna aapke madhyam se ho jata hai,
sir keep it up.
thank-u
Bahut sahi likha ha aapne vicharon ko badlne ki jarurat ha ...par kaya ye asha ka suraj ugega kabhi..?
bahut achcha likha hai
बहुत विचारणीय प्रश्न और ज्वलंत समस्या .
कहते तो सब हैं कि वही देश तरक्की करता है जहाँ पर नारी तरक्की करती हैं .
पहले से कुछ बेहतर हुआ भी है लेकिन अभी और बहुत की ज़रूरत है .
आपको बधाई इन प्रयासों के लिए
अशोक जी बहुत अच्छा लिखा है आपने।
ये लेख एक साथ बहुत से सवाल उठाता है ,ये सच है भारतीय महिलाओं की स्थतिअभी ज्यादा ठीक नही आंकडे कुछ भी कहें रोजमर्रा की जिन्दगी अभी भी कठिन है,दो साल पहले लेंगिक समानता पर एक शेक्षिक १५ दिवसीय सेमीनार जर्मनी और यु के का हम कुछ महिला पत्रकारों ने किया था वहां भी कोई बेहतर नही है ,हाँ भारत से अलग परिस्थितियाँ जरूर है ,,,आपकी कुछ पिछली पोस्ट भी देखी,समय कम ही होता है फिर भी ...शुक्रिया
स्थितियां बदल रही हैं और बदलेंगी। मेरे विचार में इसका सबसे बढिया रास्ता शिक्षा है।
बिल्कुल ठीक कहा है आपने। महिलाओं के जीवन का एक पक्ष और-
महिला मुक्ति आन्दोलन का समाज पे इतना प्रभाव है।
कि जन्म से पहले ही मुक्त का प्रस्ताव है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
आपकी नयी आलेख का इंतज़ार है
आपने बहुत सही लिखा है!वास्तव में अभी हर स्तर पर काफ़ी बदलाव की जरुरत है!विचारों की क्रान्ति के साथ ही साथ जनमानस में जागरुकता होना बहुत जरुरी है!
आंकडें कुछ भी कहें
हमें मालूम है
दिल के टुकड़े हैं
बेटा है या बेटी है
खुशबू से गुलशन
सराबोर होता है
आपने तो आईना दिखाया है , हम दुआ कर रहें हैं |
पुरुष प्रधान समाज में आप जैसे खुले विचारों के पुरुष , जो महिलाओं के हितों के प्रति संजीदा हैं , इसी बेबाकी से ऎसे मुद्दे उठाते रहें ।
Aaj mai keval aapko apne blogpe nimantrit karne aayee hun...mumbaike bam dhamakonse behad vyathit ho lekh likha hai," Meree Aawaz Suno"...chahtee hun, adhikse adhik log ise padhen..." Pyarki Raah Dikha Duniyako" ki tarah ye archives daba na rahe...intezaar hai...
my internet connection was out of order.bahut dinon baad aapka blog padha.nice blog.keep it up.nirmal
Aankde rongte khare karte hain.
डा.रमा द्विवेदी said...
बहुत सुन्दर विचार एवं बढ़ियां प्रस्तुति...बधाई..
अपनी लिखी हुई कविता की कुछ पंक्तियां प्रेषित कर रही हूं....
जब अपने दम-खम से,
कोइ नारी बन जाती है महान,
तब करता है गौरव उस पर,
यह सारा का सारा जहान।
हमें समाज की इस धारणा को,
प्रयास करके बदलना होगा,
बेटियों के आगे बढ़ने में,
हमें उनका संबल बनना होगा।
ताकि उनकी राह भी,
कुछ आसान हो जाए,
संघर्षों की राह में वो,
खुद को अकेला न पाए।
sir, bahut achcha likha hai.
par kahin na kahin mahilaon ki iss dayniy awastha ke liye kafi hadd tak mahilayein hi zimmedar hain.. sabse zayada maine unhe hi ek ladki ke janam par matam manate huye dekha hai.. mahila surksha ki baat karein to mujhe ek cheez samjh mein nahi aati ki mumbai mein jo bhi kanoon vayvastha hai uske chalte mahilayein yahan UP,Punjab, Delhi etc. cities se zayada surakshit hain.. iska karan yahan ki kanoon vayavstha hai yaa logon ka dimagi khulapun ye keh pana mushkil hai.. par jo bhi ankde apne yahan dikhaye wo sach mein mann mein darr paida karte hain..
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