Friday, October 24, 2008

लडिकयों को खुद ही लडनी होगी अपनी लडाई

-डॉ अशोक प्रियरंजन
इस ब्लाग पर नारी िवमशॆ से जुडे िविभन्न मुद्दों को लेकर हुई िवचारोत्तेजक बहस में शािमल िटप्पिणयों के आधार पर यह िनष्कषॆ िनकलता है िक लडिकयों को अपनी लडाई खुद ही लडनी होगी । िजन्दगी को खुशनुमा बनाने के िलए तमाम कोिशशों की पहल उन्हीं को करनी होगी । उनकी इस लडाई में समाज और सरकार सहयोग दे तो उन्हें जल्दी मंिजल िमल जाएगी । मंिजल तक पहुंचने के िलए उन्हें समाज और सरकार की ओर देखने की अपेक्षा खुद को अिधक मजबूत करना होगा । इसके िलए सबसे जरूरी है िशक्षा । लडिकयों को इतनी िशक्षा हािसल करनी होगी जो उन्हें आत्मिनभॆर बना सके । दूसरे के सहारे िजंदगी बसर करने की िस्थित नारी को काफी कमजोर कर देती है । िशक्षा और किरयर के प्रित उन्हें बहुत सजग होने की जरूरत है । यह सजगता उन्हें आत्मिनभॆर बनाने में बहुत कारगर िसद्ध होगी । आत्मिनभॆर होने पर वह पूरे सम्मान, स्वािभमान और मनोवांिछत तरीके से िजंदगी को जी पाएंगी । िशक्षा की रोशनी उनकी पूरी िजंदगी में उजाला भर सकती है । इसमें कोई दोराय नहीं िक लडिकयों को िशक्षा हािसल करने के िलए भी एक पूरी लडाई लडनी होगी । घरवालों को अच्छी िशक्षा हािसल करने के िलए तैयार करना, स्कूल आते जाते समय मनचलों से िनपटना और िफर घर की िजम्मेदािरयों को िनभाते हुए पढाई में अच्छे नतीजे हािसल करना कोई आसान काम नहीं है । इससे भी मुिश्कल है नौकरी हािसल करना । नौकरी पा लेने के बाद पुरुषों के बीच कामयाबी हािसल करना भी जिटल चुनौती होती है । इन चुनौितयों को स्वीकार करके ही अपने अिस्तत्व को व्यापक फलक पर चमकाया जा सकता है ।
जीवनसाथी के चयन में भी जागरूकता जरूरी है । मां-बाप सही फैसला करते हैं लेिकन अगर कभी जीवनसाथी के चयन को लेकर फैसले में दोष िदखाई दे तो उस पर आपित्त करना, अपनी इच्छाओं को अिभव्यक्त करना और सही चयन के िलए तकॆ िवतकॆ करने में कोई बुराई नहीं है । एक बार की न अगर िजंदगीभर की खुिशयों के िलए हां बन सकती है तो एेसा कर लेना चािहए । जीवनसाथी से तालमेल बना रहेगा तो िजंदगी खुशगवार हो जाएगी ।
छेडछाड, दहेज उत्पीडन और पित-ससुराल वालों की ज्यादितयों से िनपटने के िलए अपने मनोबल को मजबूत करना होगा । मानवािधकारों और अपने अिधकारों के प्रित सचेत होना होगा । खुद को जूडो-कराटे जैसे प्रिशक्षण लेकर स्वयं छेडछाड से िनपटने का साहस जुटाना होगा । अन्य ज्यादितयों से कानूनी तरीके से लडाई लडी जा सकती है । इन सब लडाइयों को लडने के िलए साहस, आत्मिवश्वास और स्वाबलंबन की सबसे ज्यादा जरूरत होगी । इन सबके सहारे ही िजंदगी का मकसद हािसल िकया जा सकता है । नारी शिक्त की अथॆवत्ता और महत्ता को रेखांिकत करते हुए देश और समाज में योगदान िदया जा सकता है । िजंदगी को एेसा बनाया जा सकता है िजसमें उम्मीद की रोशनी हो, आत्मिवश्वास की मजबूती और स्वािभमान से सजे इंद्रधनुषी सपने हों और उन्हे पूरे करने की ललक आकार लेती िदखाई दे ।
(फोटो गूगल सचॆ से साभार)ं

10 comments:

सचिन मिश्रा said...

sahi kaha aapne.

संगीता-जीवन सफ़र said...

सार्थक निष्कषॆ /

दिनेशराय द्विवेदी said...

अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है। वह लड़की हो या लड़का। हाँ दूसरे उस में मदद कर सकते हैं. पर निर्णायक स्वयं उसका साहस ही होगा।

Vivek Gupta said...

हाँ लडाई भी कह सकतें हैं | अगर लड़कियां आगे बड़ती हैं तो वो भी आगे बढेगी, देश और घर परिवार भी आगे बढेगा |

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

unche unche pad par chali gai magar ladna nahi aaya, ya sikhaya nahi

Dr. Nazar Mahmood said...

खूबसूरत रचना
दीपावली की हार्दिक शुबकामनाएं

डॉ .अनुराग said...

हौसलों की न कोई जात होती है ,न वे लिंग-भेद मानते है.....इसलिए बस उन्हें उड़ान भरने को आकाश चाहिए ....वो दे दो

sunil kumar sagar said...

good morning sir you are good blogger

sunil kumar sagar said...

good morning sir you are good blogger

Unknown said...

sahi kaha aapne ...
aaj kal ladkiyon ko kisi ka mohtaz nahi hona chahiye