डॉ. अशोक प्रियरंजन
१२ अक्टूबर को इस ब्लाग पर िलखे अपने लेख-सुरक्षा ही नहीं होगी तो कैसे नौकरी करेंगी मिहलाएं- पर जो प्रितिक्रयाएं आईं उन्होने बहस को आगे बढाते हुए कई सवाल खडे कर िदए । इसके साथ ही वैचािरक मंथन से कुछ एेसे िनष्कषॆ भी िनकले िजन पर िवचार करना समय की जरूरत है । इसमें कोई दो राय नहीं िक पहले के मुकाबले लडिकयों और मिहलाओं की िस्थितयों में व्यापक सुधार हुआ है । समाज और सरकार दोनों स्तरों पर जो प्रयास हुए, उसी का नतीजा है िक आज लडिकयों का बहुत बडा वगॆ अपनी िजंदगी के सपनों में रंग भर सकता हैं और उन्हें दृढ संकल्पशिक्त के सहारे हकीकत में भी बदल सकता हैं । पहले की अपेक्षा लडिकयां अिधक िशिक्षत हुई हैं, उन्हें रोजगार के अवसर बढे हैं, स्वतंंत्र िनणॆय लेने के अवसर भी िमल रहे हैं । यह बदलाव बहुत सुखद संकेत है ।
इस सबके बावजूद अभी भी बहुत कुछ एेसा है जो उन्हें उनके कमजोर होने का अहसास करा देता है । यह अहसास ही एेसी पीडा है िजसको िमटाने के िलए अमृतमयी औषिध खोजनी होगी । यह औषिध समाज से ही हािसल होगी । समाज को पुरूषवादी सोच में बदलाव लाना होगा िजसके चलते संपूणॆ नारी जाित को कई तकलीफों का सामना करना पडता है ।
अब सवाल पैदा होता है िक पुृरुषवादी सोच क्या है ? इसका प्रभाव क्या है ? यह िवकास में िकस तरह से बाधक है और इसे कैसे दूर िकया जा सकता है ? दरअसल पुरुषवादी सोच ही है जो समाज और पिरवार के तमाम महत्वपूणॆ फैसलों में पुरुष की भूिमका को ही िनणाॆयक मानती है । मिहलाओं और लडिकयों के जीवन से जुडे फैसले भी पुरुष ही करते हैं । यह अलग बात है िक कई बार ये फैसले गलत हो जाते हैं पूरी उम्र वह लडकी इसका खािमयाजा भुगतती रहती है । पुरुषवादी सोच के चलते ही कोई नारी अपने जीवन के संबंध में स्वतंत्र िनणॆय नहीं ले पाती । उसकी प्रितभा का व्यापक फलक पर प्रदशॆन नहीं हो पाता । उसका आत्मिवश्वास घटता है । कदम कदम पर उसे समझौते करने के िलए िववश होना पडता है । पुरुषवादी सोच ही िकसी लडकी की पूरी िजंदगी की तस्वीर बदल देती है । अगर इस सोच में बदलाव आ पाए तो मिहलाओं की भूिमका, प्रितभा और आत्मिवश्वास व्यापक फलक पर चमककर देश और समाज के िलए और महत्वपूणॆ योगदान देने में समथॆ हो जाएगी ।
इस संबंध में रंजना की राय है िक शिक्षा अपने आप बहुत कुछ बदल देगी ।और इसके लिए जितना पुरुषों को आगे आना है उस से अधिक महिलाओं को आगे आना होगा। क्योंकि अभी जो शिक्षित स्त्रियाँ हैं और धनार्जन कर रही हैं वे अपने स्त्री समुदाय के लिए कुछ करने के बजाय अपने भौतिक सुख सुविधाओं के लिए ही धन व्यय करती हैं,अपने समाज के उत्थान की तरफ़ उनका ध्यान शायद ही जाता है स्त्रियों की दशा सुधरने में जितना कुछ पुरुषों को करना है उससे बहुत अधिक स्त्रियों को करना है । शोभा का मानना है िक नारी को स्वयं को बलवान बनाना होगा। अपनी लड़ाई वेह किसी की मदद के बिना भी जीत सकती है। उसमें अपार शक्ति है। कमी केवल उसके भीतर छिपे आतम विश्वास की है ।
स्वाित भी सोच में बदलाव की पक्षधर हैं । वह िलखती हैं िक यहाँ सिर्फ़ नारी की हिम्मत बढ़ाने की बात मत कीजिये । पुरूष-मानसिकता बदलाव की भी चर्चा कीजिये, जो इसका मूल कारन है । िववेक गुप्ता, हिर जोशी (इदॆ-िगदॆ), रचना िसंह, प्रीित वथॆवाल मानते हैं िक नारी को अभी और संघषॆ करना होगा । पलिअकारा का विचार है की लडाई तो लंबी चलेगी और महिलाओं को मजबूत होना ही होगा । मानसिकता में परिवर्तन भी धीरे धीरे ही आएगा ।
लडिकयों की सुरक्षा के संदभॆ में श्रुति की राय बडी महत्वपूणॆ है । उनका कहना है िक क्या लडकी की इज्जत और गौरवभान सिर्फ उसके शरीर से जुडा है । आत्मा की सच्चाई और दिमाग की शक्ति कोई मायने नहीं रखती । इसलिए अपनी सुरक्षा खुद कीजिए । बहार निकलिए आसमां को एक बार निहारिए अपने पंख फैलाइए और उड़जाइए । इस आसमां को फतह करने के लिए । कविताप्रयास कहती हैं आज की कामकाजी महिला को भी स्वयम रक्षा के लिए शारीरिक एवं मानसिक रूप से तैयार होना होगा | सचिन मिश्रा और रंजन राजन के मुताबिक रात में काम करने वाले सभी को सुरक्षा मिलनी चाहिए। ।
शमा की राय में लडिकयों को यह समझ लेना चािहए िक शरीर के मुकाबले उनकी रूह ज्यादा कीमती है । मिहलाओं को अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी, समाज से उन्हें सुरक्षा की अपेक्षा छोडनी होगी । घरों में मिहलाओं की आत्मा को पल-पल घायल िकया जाता है, वहां कैसे सुरक्षा होगी ? सरीता लिखती हैं महिलाओं के लिए स्वतंत्रता की नहीं बल्कि स्वाव्लंबन की ज़रुरत है । बेहतर होगा कि आत्म निर्भर बनने के लिए महिलाएं स्वयं प्रयास करें । मुझे लगता है कि महिलाओं ्को सरकारी टेके की कोई दरकार नहीं । अपने अस्तित्व को समझते ही स्त्री संभावनाओं के आकाश में उडान भर सकेंगी ।
निर्मल गुप्त की राइ में बदलाव के लिए महिलाओं को ही पहल करनी होगी । डा कुमारेंद्र िसंह सेंगर और शैली खत्री का कहना है िक छेडछाड का मुंहतोड जवाब देकर ही असामािजक तत्वों के हौसले पस्त िकए जा सकते हैं । उनमें अगर यह भय पैदा हो गया िक लडकी थप्पड मार देगी तो वह छेडछाड का साहस नहीं कर पाएंगे । जमोस झल्ला का कहना है िक सभी लड़कियों को सुरक्षा देना सम्भव नही है, इसलिए उन्हे ख़ुद आत्मविश्वास से यह लडाई लड़नी होगी ।
राधिका बुधकर, अनिल पुसदकर, फिरदौस खान, डॉ अनुराग, प्रदीप मनोरिया, श्याम कोरी उदा, ममता, रेनू शर्मा, पारुल, लवली और डॉ विश ने भी महिलाओं के संघर्ष को रेखांकित किया
(फोटो गूगल सर्च से साभार )
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
13 comments:
han kuch had tack jarur badal sakti hai mahilao ki jindgi.
हमारे समाज का ढाँचा बदलेगा तो यह सोच बदलेगी।
पुरुषवादी सोच भी, महिलाये चाहे तो महिलाये बदल सकती हैं क्योंकि वही बच्चे का लालन पालन करती हैं |
थोड़ा-थोड़ा बदलाव सबको अपनी सोच और अपनी कार्यशैली मे लाना चाहिए। नारी समुदाय अपने को शोषित और अन्याय का शिकार पा रहा है तो इस स्थिति से बाहर निकलने का प्रयास भी उन्हें ही अधिक करना होगा। अन्य व्यक्ति तो इसमें सहयोग ही कर सकता है।
wajib sawal uthaya hai aapne.
mujhe apne saath samajhiye.
ज़रूर पढिये,इक अपील!
मुसलमान जज्बाती होना छोडें
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2008/10/blog-post_18.html
अपनी राय भी दें.
aapka blog parha...mai aapki baat se sahmat hoo ki mahilayo par julm sirf iss purushvadi soch ke karan hi hote hai.yeh purushvadi soch hi hai jo mahilayo ko ek seemit ajadi deti hai aur unki sthithi ko ek had se aage sudharne nahi deti...aaj bhi safal aur aarthik roop se swatantra mahila adhikansh purusho ko akharti hai.we use dil se kabhi bardast nahi karte.isiliye aaj bhi mahilayo ko ek doosari najar se dekha jata hai aur unke upar madhyaugin julm dhaye jaate hai...mahilayo ko na sirf iss soch ke khilaf sangathit hona hoga balki har star par sangharsh bhi karna hoga...
aap achha likh rahe hai.likhate rahiye. asar hoga.
मुझे बहस में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने पर आपको सबसे पहले बहुत-बहुत धन्यवाद/मेरे विचार से यह केवल बहस करने का एक विषय ना होकर समूचे प्रजातांत्रिक व्यवस्था का प्रश्न है? मेरठ में लड़कियो की सुरक्षा पे उठा प्रश्न है?पर देखा जाय तो यह एक क्षेत्र विशेष या केवल लड़कियो की सुरक्षा का सवाल नही है,बल्कि पूरे समाज में होने वाली विसंगतियो की बात है/सवाल केवल पुरषवादी सोच या महिलावादी सोच तक सीमित नही है/सवाल समय के अनुसार चलते हुए उचित शुरूवात करने की है/और सही समय पर उचित पहल की है,जैसा कि आपने मेरठ में लड़कियो की सुरक्षा पर उठे प्रश्न को लोगो के सामने रखकर एक सार्थक पहल की /बदलाव लाने के लिए खुद को ही आगे आना होगा/समय के अनुसार नये सिरे से सोचना होगा/ संगीता
शिक्षा और संस्कार ही इसका तोड है । शिक्षा पुरुष और स्त्रियाँ दोनो की तोकि सोच बदले, और माँओं के ऊपर बडी जिम्मेवारी है कि वे अपने बेटों को स्त्री का आदर सम्मान सिखाये और पिता के ऊपर भी कि वह अपनी पत्नी, बेटी, बहू तथा बहन का आदर करे यहाँ से शुरवात हो तो परिस्थितियाँ अवश्य बदलेंगी । तब तक स्त्रियों को अपनी सुरक्षा के उपाय स्वयं ही करने होंगे । मसलन जूडो कराटे की ट्रेनिंग लेना पर्स में pepper spray रखना आदि ।
बदलाव की जरूरत पुरुष और महिलाओं दोनों की सोच में है। आज अगर पुरुष महिला को उपभोग की वस्तु समझता है तो महिलाएं भी इसमें कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं। आज अगर महिला का घर के अंदर उत्पीड़न हो रहा है तो उसके लिए भी कुछ महिलाएं ही जिम्मेदार हैं। दरअसल जब तक कार्य को कार्य की तरह से नहीं देखा जाएगा तब तक यही होगा। जब हम काम करने से पहले ही लिंग भेद की बात करते हैं तो यह स्वाभाविक है। मैंने कई ऐसी महिलाओं को देखा है जिनकी ओर देखना और टिप्पणी करने की हिम्मत बड़े से बड़े बदतमीजों में नहीं होती।
asokjee,
as i have written earlier that
initiataive is in the hands of women.Mahilon par sarvadhik atyachar khud mahilaon nay kiye hain.They are more responsible for their plight.
बहुत बढि़या भाई। जमाए रहिए।
ashok ji badlaav to dehleej par hai dekhte rahye
ashok ji badlaav to dehleej par hai dekhte rahye
Post a Comment