Wednesday, October 8, 2008

रावण तेरे िकतने रूप

-डॉ अशोक प्रियरंजन
हर साल िवजयदशमी पर रावण का पुतला जलाया जाता है । पूरे देश में कागज के पुतले तो जला िदए जाते हैं लेिकन समाज में मौजूद अनेक रावण अभी भी िजंदा हैं । कागज के पुतलों से अिधक जरूरी उन रावणों को जलाना है जो पूरे देश की जनता को परेशान िकए हैं और उनके िलए िचंता का सबब बने हुए हैं । तमाम कोिशशों के बाद भी इन रावणों को अभी तक नहीं जलाया जा सका है । देश और समाज में ये रावण िविवध रूपों में मौजूद हैं और अक्सर सामने आते रहते हैं । रामराज में भोली-भाली जनता और साधु संत राक्षसरूपी रावण से भयभीत थे । आज भी आतंकवाद रूपी रावण िसर उठाये पूरे देश के सामने खडा है । यह रावण कभी मुंबई, कभी हैदराबाद, कभी िदल्ली, कभी अहमदाबाद में तबाही मचाता है । न जाने िकतने लोगों की जानें इस रावण ने ले ली हैं । िकतने घरों को आतंकवाद ने तबाह कर िदया है । इसे खत्म करना जरूरी है ।
रावण ने सीता का अपहरण िकया और बाद में यही बात उसके संहार का कारण बनी । आज िस्थित गंभीर है । न जाने देश में िकतनी मिहलाओं और लड़कियों के अपहरण होते हैं लेिकन अपहरण करने वाले बेखौफ घूमते हैं अलबत्ता कई बार अपहरण की त्रासदी के कारण नारकीज िजंदगी की आशंका से पीिडत़मिहला जरूर अपनी िजंदगी से मुंह मोड़लेती है । आज के अपहरणकतार्ता रूपी रावण को िकसी राम का भय नहीं है ।
रावण अनाचार का प्रतीक था लेिकन आज तो पूरे देश में ही भ्रष्टाचार व्याप्त है । भ्रष्टाचार में भारत ने िवश्व पटल पर अपनी पहचान बनाई है । मनुष्य का आचरण हो या सरकारी गैरसरकारी कामकाज सभी पर भ्रष्टाचार की छाया है । हर आदमी भ्रष्टाचार से त्रस्त है, इसके बावजूद पूरा देश भ्रष्टाचार से ग्रसत है । इस भ्राष्चार रूपी रावण का जब तक अंत नहीं होगा तब तक लोगों को सुकून नहीं िमल पाएगा ।
अत्याचारके िलए भी रावण का नाम िलया जाता है । आज भी देश में पग पग पर अत्याचार व्याप्त है । कहीं गरीब सताए जा रहे हैं तो कहीं मजदूरों पर अत्याचार हो रहे हैं । अत्याचार रूपी रावण अपराधी की शक्ल में आकर हत्या, चोरी, डकैती जैसी घटनाओं का कारण बनता है । यहां तक की अब मरीजों के गुर्दे् और आंखें और अन्य अंग िनकालने का भी व्यवसाय िकया जा रहा है जो शायद रावण राज में भी नही होता था । सीधे शबद्ों में कहें तो अत्याचार के मामले में तो आधुिनक युग ने रावण राज को भी पीछे छोड़ िदया है ।
रावण अनैितकता का भी प्तीक था लेिकन आज के युग में तो अनैितकता पहले से अिधक है । आज सामािजक, राजनीितक समेत अनेक क्षेत्रों में नैितक मूल्यों का पतन हुआ है । यही वजह है िक आज भी अनैितकता का बोलबाला है । इसी कारण अनेक पिवत्र संबंध भी कलुिषत होने लगे हैं । कहीं अवैध संबंध पनपे हुए हैं तो कहीं िनजी स्वाथर् के िलए आत्मीय िरश्तों को ही ितलांजिल दे दी गई है । धन के सामने सारी नैितकता गौण होने लगी है ।
तमाम तरह की कुप्रथाएं भी रावण का ही एक रूप हैं । ं दहेज प्रथा रूपी रावण तो नारी जाित का सबसे बडा दुश्मन बना हुआ है । इसी के साथ महंगाई रूपी रावण जनता का सुख चैन छीने हुए है । कहीं संपरदायवाद तो कहीं जाितवाद के रूप में जो िदखाई देता है वह भी तो रावण ही है । इन तमाम रावणों का वध जब तक नहीं होगा तब तक जनता कैसे चैन से सोएगी । सच तो यह है िक इन रावणों का वध करने के िलए जनता को ही िमलजुलकर प्रयास करने होेगे । इसके िलए हर आदमी को संकल्प लेना होगा िक वह ििवध रूपों में जो रावण मौजूद हैं, उनके िखलाफ लडाई लडेगा । तभी िस्थितयां सुधरेंगी ।
( फोटो गूगल सर्च से साभार )

20 comments:

Anonymous said...

अगर आज रावण होता तो उसे कितनी प्रतिद्वंदिता से दो-चार होना पड़ता। आज देखिए! हमारा पुलिस महकमा कितना परेशान है, रोज एक मास्‍टर माइंड सामने आ जाता है।

Anil Pusadkar said...

रावण कभी जीत नही सकता बशर्ते लडने वाला राम हो। आज दिक्कत यही है की रावण का पुतला दहन नेता या चंदा देने वाले करते है।वे खुद रावण से कम नही है,ऐसे मे क्या खाक मरेगा रावण। अच्छा लिखा आपने,आपको दशहरे की बधाई।

फ़िरदौस ख़ान said...

बेहतरीन तहरीर है...बधाई...
साथ ही... विजयदशमी की हार्दिक मंगलकामनाएं...

art said...

ravan vartmaan me prakat roop me nahi dikhta,itna sa hi yugaantar hai .....

निर्मल गुप्त said...

ravan ka naam ab obsolete sa hi gaya lgta hai.ab ravan anaik roopon may hain. ravan RAM ka roop dhar kar bhi aa sakta hai.sankaitik ravan dhain baikar hai.
nice and thought provoking writeup.

Vivek Gupta said...

विजय दशमी पर्व की बहुत बहुत शुभ कामनाऍ | बेहतरीन िलखा है आपने | हर समय काल की अपनी परेशानियाँ हैं, अपने राम और रावन हैं :)

प्रमोद said...

Sach me Ravan ke ye sare rup amanviya mulyon ke rup me samaj me vyapt hain. Asli Ravan dahan to un nakaratmak mulyo ka dahan hoga. Apne samaj ko ek jivan sandesh diya hai badhai. padharen- http://hindikechirag.blogspot.com

विवेक सिंह said...

बेहतरीन . दशहरे की बधाई .

betuki@bloger.com said...

इन रावणों को हम सभी जानते हैं। हजारों रावण हम लोगों के आस-पास रहते हैं लेकिन समाज की मजबूरी कहें या हमारी लाचारी। हम इन रावणों का वध करने में सर्वधा असमर्थ हैं। आपके लेख बहुत अच्छा लगा।

36solutions said...

Bahut sundar dhang se prastut kiya Hai aapane, Aabhar.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

माहौल बदल रहा है। आपने भी महसूस किया होगा। हलांकि बदलाव की गति धीमी है। युवा जागरुक हो रहे हैं। उतना आसान नहीं रह गया रावणों के लिए कि गये और सीता (सत्ता) उठा लाए।

Renu said...

ham bhi sehmat ha Alag SAA se, ki ab maahaul badal raha ha, aj ka yuvak jagrit ho raha ha ha,ab samay ki bajaay samsyaaon ke baare me likhne ke ham unka hal bataaye, aur marg darshan karen ki kaise in se nibta ja sakta ha, bahut ho gaya rotey hue, ab hame ladna seekhna chahiye sab buraiyon se.
yeh sab raavan bhi koi aur nahi, hami logo me se aante ha to kyon aate hain aur kaise inhe roka jaaye, agar is par vichar karen to bahut accha hoga>

मंतोष सिंह said...

सच्चाई को आपने बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया है

BrijmohanShrivastava said...

पहली बात डाक्टर साहेब =कि ब्लॉग पर आकर आपकी तस्बीर देखी -बस देखता रहा =अब में आपको देखू कि पढूं /""वो सामने भी हैं और मुखातिब भी -उनको देखूं के उनसे बात करू ""/अब में आपकी सुन्दरता की तारीफ क्या करुँ क्योंकि कोई बता रहा था कि आदमी के सुंदर नहीं स्मार्ट कहते है /खैर =अब रावण मारें =रामलीला का रावण मर ही नही रहा था सब परेशान दूसरा द्रश्य यानी रोने बगैरा का प्रस्तुत करना था =राम ने क्रोधित हो कर कहा ''हे रावण यह शक्तिबाण है इससे तू अबश्य मारा जाएगा """"मुझे कोई नहीं मार सकता राम पहले मेरे किराए के पैसे निकालो ""रावण किराए से आया था /आरती करवाई गई =आरती के पैसे रावन को दिए और”” डोली भूमि गिरत दसकंधर /छुभित सिन्धु सरी दिग्गज भूधर “”

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ ओर समय के साथ हम रावण के ओर बड़े पुतले बना रहे है ....ओर कई बार रावन भी महान था जैसी सो कॉल्ड बुद्धिजीवी बहसों में उलझने लगे है.....राम पर भी अब लोग एक्स रे रखने लगे है .....
अपने भीतर के रावण को हमें मारना होगा सही मायने में ये संदेश देता है ये दशहेरा ......

प्रदीप मानोरिया said...

सम सामयिक दशहरा के अवसर पर सार्थक आलेख के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपके मेरे ब्लॉग पर पधारने का धन्यबाद कृपया पुन: पधारे मेरी नई रचना मुंबई उनके बाप की पढने हेतु सादर आमंत्रण

jamos jhalla said...

aaj etne Ravan ho gaye hain ki bechare Ram minority main hain .aaj baap apne bachon ko Ram nahin kitabi keera banate hain iisi liye visangatian bar rahin hain . aap ka prayas sarahaniye hain badhai.

अविनाश वाचस्पति said...

जिस देश में हर ईमानदारी राम
और बेईमानी रावण हो जाती है
वो देश है मेरा।

जिस देश में महंगाई का और
भ्रष्टाचार का लगता नित है डेरा
वो देश है मेरा।

रावण जलाने जाते दिल से
तो खुद जल जाते तन से
वो देश है मेरा।

आपका लेख पूरी पोल खोलता है
कि वो भारत देश है मेरा
पोल खोलक लेखन और
रोचक एवं सोचक अभिव्‍यक्ति
के लिए आप साधुवाद के पात्र हैं।

आपको पढ़कर जानकर बहुत अच्‍छा लगा।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

इस बात पर बहुत पहले एक कविता की कुछ पंक्तियाँ पढी थीं,
"जन-जन रावण,
घर-घर लंका.
इतने राम कहाँ से लाऊँ? "
आपकी लेखनी को नमन

jamos jhalla said...

doctor saheb aapke latest vichaar nahin dikhe.Ravaana ko to aapne dussehra par RaamdhaamPAHUNCHA diya .Ab jaroorat Raam ki hai.kayoonki Raamaaj minoritymain hain isi liye Raam ke liye bhi kutch reservation ho jaye.