डा. अशोक कुमार मिश्र
महिलाओं की सुरक्षा संबंधी कानून के विधेयक के मसौदे पर गहन मंथन के बाद भी
कैबिनेट की बैठक में सहमति न बन पाने की स्थिति कई सवाल खड़े करती है। मसौदे के
कड़े प्रावधानों को लेकर मंजूरी से पहले ही इसके दुरुपयोग की आशंका पैदा हो रही है
जिसके चलते मंत्रियों तक को पसीने छूट रहे हैं। सवाल पैदा होता है कि दुरूपयोग की
आशंका के चलते क्या सख्त कानून ही न बनाए जाएं। फिर कैसे अपराधों पर रोक लगेगी।
बलात्कार की घटनाएं जिस तेजी से बढ़ रही हैं, उसके चलते जरूरी है कि इसकी रोकथाम
के लिए कड़े कानून हों और उनका सही तरीके अनुपालन होना चाहिए। कानून का अगर
दुरुपयोग होता है तो इसके लिए भी हमारी पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था ही दोषी होती है।
पहली इस तरह के जघन्य अपराध को लेकर जो सामाजिक जागरूकता पैदा हुई है, सरकार ने
जिस तरह से गंभीर मंथन किया है, उसका सम्मान करते हुए बिना किसी राजनीति के विधेयक
को अंतिम रूप दे दिया जाना चाहिए। कई मायनों में दुष्कर्म विरोधी अध्यादेश महत्वपूर्ण
है।
इस अध्यादेश से महिलाओं के खिलाफ
यौन अपराधों पर लगाम लगाना संभव होगा। प्रस्तावित आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक
-2013 में बलात्कार की परिभाषा में ही बदलाव लाने का प्रस्ताव है। इसके लागू होने
पर अंतरंग अंगों का किसी भी प्रकार से स्पर्श बलात्कार के दायरे में आएगा। इसका
असर यह होगा कि अभी तक अंतरंग अंगों के स्पर्श के जो मामले छेड़छाड़ में दर्ज होते
थे, यौन हमलों के दायरे में आते थे, वे अब बलात्कार के दायरे में आएंगे और दोषियों
को इसी कानून के तहत सजा मिलेगी। गौरतलब है कि छेड़छाड़ की सर्वाधिक घटनाएं होती
हैं जिनमें से संकोचवश अनेक मामले तो पुलिस में दर्ज भी नहीं कराए जाते हैं। यहां
पर यह बहस का मुद्दा रहा कि यौन उत्पीड़न शब्द को ही बरकरार रखा जाए अथवा इसके लिए
बलात्कार शब्द रखा जाना चाहिए। अब बलात्कार शब्द पर ही सहमति बन रही है।
दुष्कर्म रोधी विधेयक में यह भी प्रावधान है कि कोई डाक्टर यदि बलात्कार
पीडित के इलाज से मना करता है तो उसके लिए पांच से सात साल तक की सजा हो सकती है।
यह बहुत जरूरी है। इलाज के अभाव में महिलाओं की स्थिति बिगड़ जाती थी और डाक्टर
कानूनी पचडे में पड़ने से बचने के लिए उसके इलाज से कतराते थे। पुलिस पर भी
अध्यादेश के मार्फत लगाम कसी गई है। अगर कोई पुलिस अफसर बलात्कार के मामले की जांच
करने में नाकाम रहता है तो उसे भी इस स्थिति में छह माह की सजा हो सकती है।
गैंगरेप के मामलों में भी आरोपियों को पीड़त के इलाज और पुनर्वास का खर्च उठाना
होगा। अध्यादेश के इस प्रावधान से पीड़ित महिला को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी। यह
अच्छी पहल है और न्याय संगत भी। सरकार ने सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र भी
18 वर्ष से घटाकर 16 साल कर दी है। इसके भी दूरगामी परिणाम अच्छे ही होंगे। अदालती
आदेश पर अलग हो चुकी पत्नी के साथ भी शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार के दायरे में
आएगा। इसके लिए दो से सात साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
अध्यादेश लागू होता है तो इसके प्रावधान निश्चित रूप से महिलाओं को सुरक्षा
प्रदान करने में समर्थ होंगे। इसलिए जरूरी है कि सरकार आम राय बनाकर इसे पारित कर
दे। यह वक्त की जरूरत है। दुरुपयोग न हो, इसके लिए व्यवस्था की जानी चाहिए। सरकारी
तंत्र सतर्क रहेगा तो कोई वजह नहीं कि दुरुपयोग हो पाए।