Monday, May 31, 2010

घटता आत्मविश्वास, बढ़ती आत्महत्याएं

डॉ. अशोक प्रियरंजन
आजकल जिस तरह से विद्यार्थियों में आत्महत्याएं करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, उससे तो यही लगता है कि कहीं न कहीं आत्मविश्वास की कमी के चलते ही यह घटनाएं होती रहती हैं। सीबीएसई की १२वीं की परीक्षा में फेल होने पर रुड़की की आवास विकास कॉलोनी के प्रदीप चौधरी के बेटे १७ वर्षीय सुमित ने गोली मारकर आत्महत्या कर ली। ऐसा पहली बार नहीं हुआ, हर बार जब भी परीक्षा परिणामों की घोषणा होती है, तभी देश के हर हिस्सों से कुछ ऐसी ही खबरें आती हैं।
दरअसल, आज अभिभावक बच्चों से पढ़ाई और करियर को लेकर बहुत अधिक उम्मीदें रखने लगे हैं। माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए वे जी-तोड़ मेहनत भी करते हैं, लेकिन कई बार वे अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं, तो निराशा में आत्महत्या कर लेते हैं। देश में हर साल करीब २४०० छात्र परीक्षा के तनाव या फिर फेल होने पर खुदकुशी करने जैसा कदम उठाते हैं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थी की मेधा का निर्धारण करने का मानक अर्जित अंकों का प्रतिशत बन गया है। विद्यार्थी मेधावी है, लेकिन यदि उसके परीक्षाफल में अच्छे अंक नहीं आते तो कोई भी उसकी मेधा को स्वीकार नहीं करता है। यह अलग बात है कि कई बार दूसरे कारणों के चलते एक सामान्य विद्यार्थी अधिक अंक ले आता है, जबकि मेधावी विद्यार्थी इस मामले में पिछड़ जाता है। इसी सत्य को पहचान करके अंकों के बजाय ग्रेडिंग सिस्टम को अब तरजीह दी जा रही है। यह वक्त की जरूरत है और विद्यार्थियों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने के लिए बेहद जरूरी भी है।
वस्तुत: मौजूदा भौतिकवादी परिवेश में विविध प्रकार के दबाव कई बार कुछ युवाओं का आत्मविश्वास घटा देते हैं। अलबत्ता देश में बड़ी संख्या में हो रही आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं समाज केसभी तबके के लोगों के जीवन में बढ़ रही निराशा, संघर्ष करने की घटती क्षमता और जीने की इच्छाशक्ति की कमी की ओर संकेत करती हैं।
आजकल हर आदमी के अंदर अच्छा घर, कार और आधुनिक जीवन की सभी सुख-सुविधाएं हासिल करने कीलालसा बढ़ती जा रही है। इसके लिए वह जद्दोजहद भी करते हैं। वह अपने सपनों को जल्द पूरा करना चाहता है। सपने टूटते हैं और अपेक्षाएं पूरी नहीं होती हैं, तो आत्मविश्वास की कमी के चलते लोग जिंदगी से मायूस हो जाते हैं। कभी प्रेम में निराशा मिलने पर, तो कभी आर्थिक तंगी या गृहकलह आत्महत्या की वजह बन जाती है। दरअसल, जीवन में सफलता प्राप्त करने केलिए आत्मविश्वास की शक्ति सर्वाधिक आवश्यक है। आत्मविश्वास के अभाव में किसी कामयाबी की कल्पना नहीं की जा सकती है। आत्मविश्वास के सहारे कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। विद्यार्थी आत्मविश्वास को जागृत करके और मजबूत बनाकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता अर्जित कर सकते हंै। वास्तव में आत्मविश्वास की शक्ति अद्भुत होती है।
परीक्षाफल और जिंदगी से मायूस हुए लोगों को सांत्वना देने का काम आस-पास के लोगों या परिजनों को करना चाहिए। बातचीत केमाध्यम से निराशाजनक स्थितियों से गुजर रहे मनुष्य के अंदर जीने की इच्छाशक्ति को मजबूत किया जाना चाहिए। उन्हें जीवन के संघर्ष से घबराने केबजाय मुकाबला करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। उनकेमन से निराशा का अंधेरा छंट गया तो निश्चित रूप से उनमें जीवन के प्रति ललक जागृत होगी। उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न होगा, तो वे वह भविष्य में जिम्मेदार नागरिक बनकर देश केविकास में अपना योगदान दे पाएंगे।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)

5 comments:

राज भाटिय़ा said...

मां बाप बहुत हद तक जिम्मे दार होते है ऎसे केसो मै, जरुरी नही अगर बच्चा ९० % से कम लाये तो वो नालायक ही है, शायद यही बच्चा किसी को दिशा मै ना० वन हो

पंकज मिश्रा said...

बात तो सही है। आपके तर्क भी सही हैं। पर शिक्षा प्रणाली भी कहीं न कहीं जिम्मेदार है। इसमें बदलाव किया जाना चाहिए। वरना हर साल खबरें आती रहेंगी। हम खबरें छापते रहेंगे और फिर किसी न किसी माध्यम से दुख भी व्यक्त करते रहेंगे। होगा कुछ नहीं। जड़ में सुधार किया जाना चाहिए।

http://udbhavna.blogspot.com/

श्यामल सुमन said...

आपकी चिन्ता जायज है अशोक भाई। अपने जमाने में माता पिता जो बन्दूक नहीं चला पाते - अपनी संतानों के कंधों पर रख कर चलाना चाहते हैं। परिणाम सामने है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

विचारणीय पोस्ट!

The Unadorned said...

हर कोई नब्बे प्रतिशत धारक नहीं हो सकता. हम कम स्वीकार नहीं कर सकते? वास्तव में, यह चिंता की बात है.

धन्यवाद.
ए एन नंद