Friday, May 21, 2010

मेरठ अंचल ने दिए हिंदी को अनमोल रतन

डॉ. अशोक प्रियरंजन
मेरठ क्षेत्र की सुदीर्घ साहित्यिक परंपरा रही है। यहां के साहित्यकारों ने हिंदी साहित्य में न केवल इस क्षेत्र के जनजीवन के सांस्कृतिक पक्ष को अभिव्यक्त किया, बल्कि इस अंचल की भाषिक संवेदना को भी पहचान दी। इन साहित्यकारों के बिना हिंदी साहित्य का इतिहास पूरा नहीं हो सकता।
२६ अगस्त, १८९१ को बुलंदशहर के चंदोक में जन्मे आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने ३२ उपन्यास, ४५० कहानियां और अनेक नाटकों का सृजन कर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। ऐतिहासिक उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने कई अविस्मरणीय चरित्र हिंदी साहित्य को प्रदान किए। सोमनाथ, वयं रक्षाम:, वैशाली की नगरवधू, अपराजिता, केसरी सिंह की रिहाई, धर्मपुत्र, खग्रास, पत्थर युग के दो बुत, बगुला के पंख उनके महत्वपूर्ण उपन्यास हैं। चार खंडों में लिखे गए सोना और खून के दूसरे भाग में १८५७ की क्रांति के दौरान मेरठ अंचल में लोगों की शहादत का मार्मिक वर्णन किया गया है। गोली उपन्यास में राजस्थान के राजा-महाराजाओं और दासियों के संबंधों को उकेरते हुए समकालीन समाज को रेखांकित किया गया है। अपनी समर्थ भाषा शैली के चलते शास्त्रीजी ने अद्भुत लोकप्रियता हासिल की और वह जन साहित्यकार बने।
मुजफ्फरनगर के ही एलम गांव में १३ जनवरी, १९११ को एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में पैदा हुए प्रगतिशील रचनाकार शमशेर बहादुर सिंह कवियों के कवि कहे गए। हिंदी के साथ-साथ उर्दू के विद्वान शमशेर को वर्ष १९७७ में चुका भी हूं मैं नहीं काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादेमी सम्मान से विभूषित किया गया। शमशेर की कविताओं में रोमानियत, जनतांत्रिकता, प्रेम, सौंदर्य, मानवीय करुणा, संवेदना की गहरी अभिव्यक्ति हुई है। हालांकि बिंबों और प्रतीकों को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने वाले शमशेर की कविताएं कई बार इतनी जटिल हो जाती हैं कि उन्हें समझना सामान्य पाठक के लिए मुश्किल हो जाता है। लेकिन उनकी कविता गहरे बोध की रचनाएं हैं।
मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर में २१ जून, १९१२ को जन्मे मसीजीवी लेखक विष्णु प्रभाकर ने अद्र्धनारीश्वर और आवारा मसीहा जैसी कृतियों से जबर्दस्त ख्याति अर्जित की। साहित्य अकादेमी और पद्म विभूषण से सम्मानित विष्णु प्रभाकर ने उपन्यास, कहानी, निबंध विधाओं को अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। आवारा मसीहा तो हिंदी साहित्य में मील का पत्थर माना जाता है।
पंडित नरेंद्र शर्मा मेरठ अंचल के ऐसे साहित्यकार रहे, जिन्होंने हिंदी साहित्य और फिल्मों में समान रूप से योगदान दिया। वर्ष १९१३ में बुलंदशहर जिले के जहांगीरपुर में जन्मे नरेंद्र शर्मा ने करीब डेढ़ दर्जन किताबें लिखीं। उनके काव्य संग्रहों में प्रवासी और पलाशवन सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। फिल्म भाभी की चूडिय़ां के गीत ज्योति कलश छलके ने उन्हें अमर कर दिया। नरेंद्र शर्मा देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निजी सचिव भी रहे।
सहारनपुर जिले के देवबंद कस्बे में २९ मई, १९०६ को जन्मे कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की सृजनशीलता ने भी हिंदी साहित्य को व्यापक आभा प्रदान की। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकरÓ ने उन्हें शैलियों का शैलीकार कहा था। कन्हैयालाल जी ने हिंदी साहित्य के साथ पत्रकारिता को भी व्यापक रूप से समृद्ध किया। उनके संस्मरणात्मक निबंध संग्रह दीप जले शंख बजे, जिंदगी मुस्कराई, बाजे पायलिया के घुंघरू, जिंदगी लहलहाई, क्षण बोले कण मुस्काए, कारवां आगे बढ़े, माटी हो गई सोना गहन मानवतावादी दृष्टिकोण और जीवन दर्शन के परिचायक हैं। नाटककार जगदीश चंद्र माथुर भी इसी अंचल के हैं। उनका जन्म बुलंदशहर के खुर्जा में हुआ था। ऐतिहासिक-सामाजिक नाटकों के साथ ही उन्होंने एकांकी की रचना की। कोणार्क, दशरथ नंदन, शारदीया, पहला राजा नाटक तथा भोर का तारा, ओ मेरे सपने एकांकी संग्रह हैं।
आठ जुलाई, १९३६ को मुजफ्फरनगर के जमींदार परिवार में जन्मे गिरिराज किशोर अद्भुत प्रतिभा संपन्न साहित्यकार हैं। ढाई घर उपन्यास के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। पहला गिरमिटिया, लोग, जुगलबंदी, यथाप्रस्तावित, असलाह, तीसरी सत्ता, चिडिय़ाघर और दावेदार आदि उपन्यासों में उन्होंने समकालीन समाज में पनपते अंतर्विरोधों और सूक्ष्मतर संवेदनाओं को प्रखर रूप से अभिव्यक्त किया है। उनकी कहानियों में गहन राजनीतिक चेतना व सामाजिक विसंगतियों के चित्र मिलते हैं।
मुजफ्फरनगर के ही भीमसेन त्यागी ने भी अपनी औपन्यासिक कृतियों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की संस्कृति व लोकजीवन को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया है। उनके उपन्यास जमीन, वर्जित फल और कटे हुए हाथ सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। जमीन में उन्होंने आजादी के बाद ग्राम्य जीवन में आए बदलावों को रेखांकित किया है। इस उपन्यास में भूमिहीन किसानों की यातनापूर्ण स्थितियों का मर्मभेदी चित्रण किया गया है।
ऐतिहासिक उपन्यास कठपुतली के धागे, कुणाल की आंखें के लेखक आनंद प्रकाश जैन भी इसी जनपद के कस्बा शाहपुर के निवासी हैं। यहीं के निवासी पंडित सीताराम चतुर्वेदी का बेचारा केशव नाटक हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण कृति है। कथा साहित्य के दमदार हस्ताक्षर से.रा. यात्री भी यहीं के हैं। कवि भोपाल सिंह पौलस्य और कलीराम शर्मा मधुकर भी मुजफ्फरनगर के ही हैं।
मेरठ में जन्मे पद्मश्री रघुवीर शरण मित्र का उपन्यास आग और पानी हिंदी साहित्य में अलग पहचान रखता है। कवि बसंत सिंह भंृग, चौधरी मुल्कीराम, पंडित मुखराम शर्मा व हाइकूकार शैल रस्तोगी और ताराचंद हरित मेरठ के ही निवासी हैं। गाजियाबाद के क्षेमचंद्र सुमन, गीतकार देवेंद्र शर्मा इंद्र आदि ने भी हिंदी साहित्य को गौरवान्वित किया है।

3 comments:

अनुनाद सिंह said...

चतुरसेन शास्त्री जी के विषय में इतनी विस्तृत जानकारी के लिये साधुवाद।

मैं इस लेख का लिंक हिन्दी विकि पर दिये देता हूँ।

राज भाटिय़ा said...

आप ने बहुत सुंदर ओर विसतूत जानकारी दी धन्यवाद

tarun_kanchan said...

एक साथ मेरठ क्षेत्र की साहित्यिक धारा को आपने पिरोया है। धन्यवाद।