tag:blogger.com,1999:blog-7235302521005766819.post1300504169699886184..comments2023-10-28T08:26:45.492-07:00Comments on ashokvichar: शिक्षकों का दयिएतव बढाDr. Ashok Kumar Mishrahttp://www.blogger.com/profile/01184710406024316074noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-7235302521005766819.post-23940497684834893452008-09-17T03:03:00.000-07:002008-09-17T03:03:00.000-07:00सटीक लिखा है आपका हार्दिक स्वागत है समय निकाल कर...सटीक लिखा है आपका हार्दिक स्वागत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक देंप्रदीप मानोरियाhttps://www.blogger.com/profile/07696747698463381865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7235302521005766819.post-69855648804124832382008-09-11T04:53:00.000-07:002008-09-11T04:53:00.000-07:00बहुत खूब.बहुत खूब.Amit K Sagarhttps://www.blogger.com/profile/15327916625569849443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7235302521005766819.post-68639418915996938482008-09-09T08:49:00.000-07:002008-09-09T08:49:00.000-07:00बहुत सही कहना है आपका।बहुत सही कहना है आपका।संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7235302521005766819.post-65993273709286630002008-09-09T08:47:00.000-07:002008-09-09T08:47:00.000-07:00apne achcha likha haiapne achcha likha haimehakhttps://www.blogger.com/profile/03294015907616352292noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7235302521005766819.post-57257563740185433692008-09-08T17:08:00.000-07:002008-09-08T17:08:00.000-07:00अंतरजाल के संसार में हार्दिक अभिनन्दन.आपकी रचनात्म...अंतरजाल के संसार में हार्दिक अभिनन्दन.<BR/>आपकी रचनात्मक मेघा सराहनीय है.<BR/>हमारी शुभ कामनाएं.<BR/>कभी समय मिले तो इस तरफ भी आयें, और हमारी मुर्खता पर हंसें.<BR/>http://hamzabaan.blogspot.com/ <BR/>http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/ http://saajha-sarokaar.blogspot.com/<BR/><BR/>jaankar accha laga k aapp amar ujaala se jude huye hain kuch din main bhi dilli mein ravavi prisht dekha karta tha.lekin logon ki rajniti ka shikar bana.شہروزhttps://www.blogger.com/profile/02215125834694758270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7235302521005766819.post-46681795244641414572008-09-07T08:28:00.000-07:002008-09-07T08:28:00.000-07:00िशक्षक वर्ग के महान् पद की गरिमा उनके उत्कृष्ट चरि...िशक्षक वर्ग के महान् पद की गरिमा उनके उत्कृष्ट चरित्र सम्पन्न व्यक्तित्व में है। यह पद आम सरकारी नौकरी करने वाले सरकारी कर्मचारी से कहीं ऊंचा हैं। खासतोर पर व्यक्तित्व गढने वाली िशक्षा में तो इसकी विशेष गरिमा है। , क्योंकि चरित्र निर्माण करने वाली िशक्षा मात्र िशक्षक के व्यक्तिगत जीवन के आदशZ द्वारा ही प्रस्तुत की जा सकती है।। जहॉं तक जानकारियों को देने का सवाल हैं, वह तो कोई अधिक जानकारी वाला व्यक्ति कम जानकारी वाले को दे सकता है। किन्तु चरित्र गढने वाली िशक्षा में जानकारी देने भर से काम नहीं चल सकता । उसमें खाली उपदेश निरर्थक सिद्ध होते हैं। जब तक प्रतिपादित आदशZ िशक्षक के जीवन में झलकते नहीं दिखते, तब तक यह विश्वास नहीं हो पाता कि ये सिद्धान्त व्यावहारिक भी हैं अथवा नहीं। ध्यान रहे, जलते हुए दीपक ही अपने निकटवर्ती बुझे हुए दीपों को प्रकाशवान बनाने में सफल हो सकते है।राजेंद्र माहेश्वरीhttps://www.blogger.com/profile/08060348372029656678noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7235302521005766819.post-19180966437310734492008-09-06T17:29:00.000-07:002008-09-06T17:29:00.000-07:00चाहे जितना हम अपनी शैक्षिक प्रणाली को कोस् ले उसके...चाहे जितना हम अपनी शैक्षिक प्रणाली को कोस् ले उसके बावजूद हर क्षेत्र में सफल व्यक्ति के पीछे एक शिक्षक की भूमिका देखी जा सकती है । एक स्कूल में तमाम तरह के संसाधनों के बावजूद एक शिक्षक के न होने पर वह स्कूल नहीं चल सकता है । दुनिया में ऐसे हजारों उदाहरण हैं, और रोज ऐसे हजारों उदाहरण गढे जा रहे हैं ,जंहा बिना संसाधनों के शिक्षक आज भी अपने बच्चों को गढ़ने में लगे हैं । वास्तव में आज के प्रदूषित परिवेश में यह कार्य समाज में आई गिरावट के बावजूद हो रहा है ,इसे तो दुनिया का हर निराशावादी व्यक्ति को भी मानना पड़ेगा ।<BR/>आज शिक्षक दिवस को 5 सितम्बर के दिन हम सबको यह बातें ध्यान में रखनी चाहिए , इसके साथ हमारे मस्तिष्क में यह प्रश्न भी उठना ही चाहिए कि आख़िर अपने पुरातन संस्कृति में महत्व के बावजूद आज समाज में एक शिक्षक इतनी अवहेलना का निरीह पात्र क्यों बन जाता है? स्कूली शिक्षा का यह स्तम्भ जब तक मजबूत नहीं होगा ,तब तक अपनी शैक्षिक प्रणाली में कोई आमूल - चूल परिवर्तन फलदायी नहीं हो सकता है । हाँ सब को यह समझना होगा कि संस्कृति से अधूरे बच्चे केवल साक्षरों की संख्या ही बढ़ा सकते हैं, पर कोई मौलिक परिवर्तन उनके बूते कि बात नहीं?<BR/><BR/>http://primarykamaster.blogspot.com/प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7235302521005766819.post-25956779530975537322008-09-06T11:10:00.000-07:002008-09-06T11:10:00.000-07:00प्रिय,बधाई।उम्मीद करता हूं कि तुम्हारी कविताएं भी ...प्रिय,<BR/>बधाई।<BR/>उम्मीद करता हूं कि तुम्हारी कविताएं भी इस ब्लाग पर पढ़ने को मिलेंगी।Anonymousnoreply@blogger.com