Tuesday, June 25, 2013

जब हर शाम होने लगी काव्य गोष्ठी

डा. अशोक कुमार मिश्र
बात उन दिनों की है जब मैं बदायूं में था। हिंदी में सबसे पहले गजल कहने का श्रेय जाता है कवि-सम्मेलनों के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि बलवीर सिंह रंग को। इसीलिए उनको गीत-गजल सम्राट भी कहा जाता था। उम्र के आखिरी दौर में रंगजी बदायूं आ गए थे। सरकारी अस्पताल का प्राइवेट वार्ड उनका आशियाना बना था। उन दिनों मैं भी अशोक प्रियरंजन नाम से कविताएं लिख रहा था। रंग जी का व्यक्तित्व बड़ा प्रेरणादायक था। अक्सर मैं रंग जी के पास चला जाता। बातचीत के दौरान वह अपने गीत-गजल सुनाते और मुझसे भी आग्रह करते कि कुछ लिखो और सुनाओ। जब मैं उन्हें अपनी रचना उन्हें सुनाता तो वह बड़े ध्यान से सुनते, सुधार करते और अपने सुझाव भी देते थे। कविता के प्रति उनका लगाव अद्भुत था। धीरे-धीरे लोगों को रंग जी के आने का पता चलता गया और उनसे मिलने वालों की संख्या बढ़ने लगी। उन दिनों बदायूं में कवि-सम्मेलनों के दिग्गज हस्ताक्षर मौजूद थे जिनकी वाणी पूरे देश में गूंजती थी। वीर रस के मशहूर कवि श्रद्धेय ब्रजेंद्र अवस्थी, ओज के हस्ताक्षर डा. उर्मिलेश शंखधार, मोहदत्त साथी, सुभाष बशिष्ठ, शमशेर बहादुर आंचल, काका देवेश, अवधेश पाठक और नई पीढ़ी के अनेक काव्य सर्जकों के लिए रंग जी का बदायूं आना बहुत उत्साहजनक था। ये लोग और आसपास के जिलों से लोग रंगजी का हालचाल पूछने अक्सर आते रहते थे। शाम को रोजाना दो-चार कवि और कुछ काव्य प्रेमी रंग जी के पास पहुंच जाते थे और फिर बिना किसी पूर्व योजना के अपने आप हो जाती थी काव्य गोष्ठी। सी काव्य गोष्ठी जिसमें रंग जी के साथ ही कोई न कोई दिग्गज कवि भी मौजूद होता था। जब तक रंग जी बदायूं में रहे, ये सिलसिला अनवरत चलता रहा और काव्य गंगा प्रवाहित होती रही। आज भी उनकी गजल की पंक्तियां कानों में गूंजती हैं-
कुछ से प्रश्न हैं जो कि सुलझाए नहीं जाते,
और उत्तर भी से हैं कि बतलाए नहीं जाते।
बनाना चाहता हूं स्वर्ग तक सोपान सपनों का,

मगर चादर से बाहर पांव फैलाए नहीं जाते।