-डॉ. अशोक कुमार मिश्र
ब्लाग के संदर्भ में इधर एक अच्छी बात हुई है कि इसके विकास में बेहतर योगदान देने वालों को पुरस्कृत भी किया जाने लगा है। इस बहाने लोगों को प्रोत्साहित करके ब्लाग की लोकप्रियता और महत्ता बढ़ाई जा सकती है। एक बार मशहूर साहित्यकार गिरिराज किशोर से मैने पूछा था पुरस्कारों की क्या महत्ता है? उन्होंने जवाब दिया जैसे लोग चले जा रहे हों और हम किसी पर टार्च से रोशनी डाल दें। पुरस्कृत करके ब्लागरों की रचनाधर्मिता को आलोकित करने के प्रयासों की निसंदेह प्रशंसा की जानी चाहिए और इसे किस तरह बेहतर बनाया जा सकता है, इस पर भी मंथन चलते रहना चाहिए। ब्लागरों के सम्मेलन हो रहे हैं, पुरस्कार वितरित किए जा रहे हैं, इससे कई नई संभवनाएं जागृत हो रही हैं।
कोई भी सृजनशीलता तब महत्वपूर्ण हो जाती है जब नई पीढ़ी उसके विषय में पढ़े और वह रोजगार से जुड़ जाए। इसीलिए विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में जो विषय शामिल हैं, वह सहजता से लोकप्रिय हो जाते हैं। कई नए क्षेत्रों में शोधकार्य भी चलते रहते हैं। ब्लाग पर भी पिछले वर्ष कई शोधपत्र लिखे गए जिनका प्रकाशन भी हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि जनसंचार के कुछ पाठ्यक्रमों में ब्लाग को जनसंचार के नए माध्यम के रूप में पढ़ाया जाने लगा। ब्लाग पर शोधकार्य होने से इसकी महत्ता में श्रीवृद्धि भी हुई है। इस कार्य और परंपरा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए लेकिन ब्लाग से जुड़े पुरस्कारों की सूची में शोधकार्य को पुरस्कृत करने की ओर ध्यान नहीं गया है।
इसी तरह ऐसे लोग जिन्होंने ब्लागरों को एकजुट किया, विचार मंथन के लिए मंच प्रदान किया और उसकी गरिमा बढ़ाई, उन्हें भी पुरस्कृत किया जाना चाहिए। यह अलग बात है कि उन्होंने यह कार्य किसी पुरस्कार के लिए नहीं किया। ब्लाग के प्रति समर्पण भाव ही उनके कार्य के पीछे था लेकिन उन्हें पुरस्कृत करकेउनके काम को रेखांकित किया जाना चाहिए।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
Monday, March 14, 2011
Sunday, March 6, 2011
पढऩे का घटता संस्कार, नई पीढ़ी का बड़ा संकट
- डॉ. अशोक कुमार मिश्र
मौजूदा दौर में नई पीढ़ी में पढऩे का संस्कार चिंताजनक स्थिति से घटता जा रहा है। पाठ्यक्रम से इतर किताबें पढऩे की प्रवृत्ति देश के भावी कर्णधारों में नहीं दिखाई देती। यही वजह है कि अब अभिभावक भी साहित्यिक पुस्तकों की खरीदारी को अपने महीने के बजट में शामिल नहीं करते। जो लोग बजट में किताबों को रखते भी हैं, वे कई बार आर्थिक दबाव बढऩे पर सबसे पहले पुस्तकों की खरीद में ही कटौती कर देते हैं। एक संकट यह भी है कि कई बार अच्छी पुस्तकें इतने महंगे दामों पर मिलती हैं कि उन्हें खरीदने में ही पसीने आने लगते हैं। पहले घरों में लोग पुस्तकालय बनाया करते थे जो अब घटते जा रहे हैं। इन सब बातों के चलते ही केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने पांचवीं से बारहवीं तक की कक्षाओं के लिए पाठ्यपुस्तकों से इतर पुस्तकों को भी पढ़ाने की सलाह दी है। इसके लिए सीबीएसई ने स्कूलों को पाठ्य सामग्री के रूप में पुरस्कार प्राप्त पुस्तकों की सूची भेजी है। बोर्ड की ओर से स्कूलों को फरमान दिया गया है कि फॉर्मेटिव मूल्यांकन करने के लिए रीडिंग प्रोजेक्ट्स का भी सहारा ले सकते हैं। बोर्ड का मानना है कि बच्चों को पाठ्यपुस्तकों के अलावा भी जानकारी दी जानी चाहिए जिससे कि उनका समग्र विकास हो सके। इसके लिए बोर्ड ने एसोसिएशन ऑफ राइटरस एंड इलिस्ट्रेटर के सहयोग से भारतीय लेखकों की ऐसी पुस्तकों की सूची तैयार की है। इस रीडिंग मैटीरियल में शामिल की गई पुस्तकों में साइंस फिक्शन, हिस्टोरिक्ल फिक्शन, मिस्ट्री, वास्तविक घटनाओं की कहानियां, प्ले, पर्यावरण आधारित पुस्तकों को शामिल किया गया है। प्रधानाचार्यों को दिए गए निर्देश में कहा गया है कि लाइब्रेरी में ही ऐसे संसाधन उपलब्ध कराएं जाएं जिससे बच्चे में स्वंय पढऩे की भावना जागृत हो। बच्चों को लाइब्रेरी जाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाए। पाठ्येत्तर पुस्तक पढऩे की रुचि जागृत करने केलिए जरूरी है कि दूसरे बोर्ड भी इस तरह की पहल करें और अभिभावक भी शब्दों के संसार से बालकों को रूबरू कराने की ओर ध्यान दें।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
मौजूदा दौर में नई पीढ़ी में पढऩे का संस्कार चिंताजनक स्थिति से घटता जा रहा है। पाठ्यक्रम से इतर किताबें पढऩे की प्रवृत्ति देश के भावी कर्णधारों में नहीं दिखाई देती। यही वजह है कि अब अभिभावक भी साहित्यिक पुस्तकों की खरीदारी को अपने महीने के बजट में शामिल नहीं करते। जो लोग बजट में किताबों को रखते भी हैं, वे कई बार आर्थिक दबाव बढऩे पर सबसे पहले पुस्तकों की खरीद में ही कटौती कर देते हैं। एक संकट यह भी है कि कई बार अच्छी पुस्तकें इतने महंगे दामों पर मिलती हैं कि उन्हें खरीदने में ही पसीने आने लगते हैं। पहले घरों में लोग पुस्तकालय बनाया करते थे जो अब घटते जा रहे हैं। इन सब बातों के चलते ही केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने पांचवीं से बारहवीं तक की कक्षाओं के लिए पाठ्यपुस्तकों से इतर पुस्तकों को भी पढ़ाने की सलाह दी है। इसके लिए सीबीएसई ने स्कूलों को पाठ्य सामग्री के रूप में पुरस्कार प्राप्त पुस्तकों की सूची भेजी है। बोर्ड की ओर से स्कूलों को फरमान दिया गया है कि फॉर्मेटिव मूल्यांकन करने के लिए रीडिंग प्रोजेक्ट्स का भी सहारा ले सकते हैं। बोर्ड का मानना है कि बच्चों को पाठ्यपुस्तकों के अलावा भी जानकारी दी जानी चाहिए जिससे कि उनका समग्र विकास हो सके। इसके लिए बोर्ड ने एसोसिएशन ऑफ राइटरस एंड इलिस्ट्रेटर के सहयोग से भारतीय लेखकों की ऐसी पुस्तकों की सूची तैयार की है। इस रीडिंग मैटीरियल में शामिल की गई पुस्तकों में साइंस फिक्शन, हिस्टोरिक्ल फिक्शन, मिस्ट्री, वास्तविक घटनाओं की कहानियां, प्ले, पर्यावरण आधारित पुस्तकों को शामिल किया गया है। प्रधानाचार्यों को दिए गए निर्देश में कहा गया है कि लाइब्रेरी में ही ऐसे संसाधन उपलब्ध कराएं जाएं जिससे बच्चे में स्वंय पढऩे की भावना जागृत हो। बच्चों को लाइब्रेरी जाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाए। पाठ्येत्तर पुस्तक पढऩे की रुचि जागृत करने केलिए जरूरी है कि दूसरे बोर्ड भी इस तरह की पहल करें और अभिभावक भी शब्दों के संसार से बालकों को रूबरू कराने की ओर ध्यान दें।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)
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