Monday, January 17, 2011

विश्वविद्यालयों में बहने लगी ब्लाग की बयार

डॉ. अशोक कुमार मिश्र
पिछले दो वर्षों के दौरान ब्लाग को अकादमिक क्षेत्रों में जिस गंभीरता से लिया जा रहा है, वह हिंदी ब्लागिंग के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोलने में समर्थ है। पहले इलाहाबाद में ब्लागर सम्मेलन, वर्धा में ब्लागिंग की आचार संहिता पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, दिल्ली ब्लागर मीट, खटीमा में ब्लागर संगोष्ठी, इंदौर की गायत्री शर्मा और धर्मशाला के केवलराम का हिंदी ब्लाग पर पीएचडी की उपाधि केलिए शोध करना इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि हिंदी ब्लाग अब इस स्थिति में पहुंच चुका है कि उस पर शोध कर निष्कर्ष निकाले जाएं ताकि भविष्य की दिशा और संभावनाएं रेखांकित की जा सकें। खुद मैने महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र में ०९-१० अक्टूबर को आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में ब्लागरी में नैतिकता का प्रश्न और आचार संहिता की परिकल्पना, हरियाणा के पलवल स्थित गोस्वामी गणेशदत्त सनातन धर्म स्नातकोत्तर महाविद्यालय, में २२-२३ अक्टूबर को आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में ब्लाग का विधायी स्वरूप और उसकी भाषा संरचना, मुरादादाबाद स्थित महाराजा हरिश्चंद्र कॉलेज में १४-१५ नवंबर को आयोजित राष्टï्रीय हिंदी संगोष्ठी में सूचना तकनीक और हिंदी पत्रकारिता विषय पर शोधपत्र प्रस्तुत किया जिसमें ब्लाग पर वैचारिक मंथन किया गया। इसके साथ ही ब्लाग पर दो अन्य शोधपत्र मैने लिखे जो यमुनानगर और दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुत किए जाने हैं। इसी हफ्ते मुझे सूचना मिली कि कल्याण में अगले माह ब्लाग पर राष्ट्रीय संगोष्ठी होने जा रही है। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में बह रही ब्लाग की बयार उम्मीदों के नए झोंके लेकर आएगी, ऐसा विश्वास है। रोजाना हिंदी चिट्ठे बढ़ रहे हैं, यह भी सुखद संकेत हैं। ब्लाग पर प्रस्तुत लेखन में गुणवत्ता का समावेश करना समय की सबसे बड़ी चुनौती है।
इस बीच ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत जैसे एग्रीगेटरों का बंद होना कुछ चिंतित करता है। एग्रीगेटर ब्लाग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और वजह चाहे कुछ भी हो लेकिन इनका बंद होना तकलीफदेह है। ब्लाग को बेहतर और बहुआयामी बनाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए तभी इसकी सार्थकता है।

9 comments:

Sushil Bakliwal said...

निरन्तर बढती हुई यह ब्लाग बयार टेक्नोलाजी के विकास के साथ उसी गति से बढ रही है जिसके ब्लागवाणी या चिट्टाजगत जैसे एग्रीगेटरों के बन्द हो जाने से थमने जैसी कोई आशंकाएं नहीं दिखती । आज यदि ये दो एग्रीगेटर बन्द दिख रहे हैं तो दूसरे दसियों एग्रीगेटर नये भी खडे हो गये हैं ।

ZEAL said...

हिंदी ब्लाग अब इस स्थिति में पहुंच चुका है कि उस पर शोध कर निष्कर्ष निकाले जाएं ताकि भविष्य की दिशा और संभावनाएं रेखांकित की जा सकें...

बिलकुल सही कह रहे हैं आप।

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नुक्‍कड़ said...

ऐसा लग रहा है जैसे आप भी खटीमा ब्‍लॉगर संगोष्‍ठी में उपस्थित रहे हैं। अच्‍छा लगा यह जानकर।

निर्मला कपिला said...

ापने इस परिवार को तेजी से बढते हुये देख कर अच्छा लग रहा है। धन्यवाद इस जानकारी के लिये।

S.M.Masoom said...

समझदार और पढ़े लिखे ब्लोगर का आना एक स्वस्थ ब्लोगिंग को जन्म देगा..
.
इसे भी पढ़ें   जी हाँ यह है मेरा परिवार

रवीन्द्र प्रभात said...

बिलकुल सही कह रहे हैं आप, धन्यवाद इस जानकारी के लिये।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Skaratmak hai yah vistar.... Jankari ke liye abhar.....

डॉ० डंडा लखनवी said...

जानदार और शानदार प्रस्तुति हेतु आभार।
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कृपया पर्यावरण संबंधी इस दोहे का रसास्वादन कीजिए।
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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केवल राम said...

आपका आभार श्रीमान जी .....यह सब आप जैसे कर्मठ व्यक्तियों के सहयोग से ही संभव है ....!