Sunday, October 31, 2010

पलवल में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में ब्लाग पर शोधपत्र

-डॉ. अशोक कुमार मिश्र
हिंदी नवलेखन की विधाओं को विस्तार देने में ब्लाग एक महत्वपूर्ण मंच की भूमिका निभा रहा है। इसीलिए अकादमिक क्षेत्र में ब्लाग को गंभीरता से लिया जा रहा है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में ०९-१० अक्टूबर को ब्लागिंग की आचार संहिता विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें ब्लाग के विविध पक्षों पर गंभीरता से मंथन किया गया। इसके बाद २२-२३ अक्टूबर को हरियाणा के पलवल स्थित गोस्वामी गणेश दत्त सनातन धर्म महाविद्यालय में बाजारवाद और आधुनिक हिंदी साहित्य विषय पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से संपोषित राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी में हिंदी में नवलेखन के संदर्भ में ब्लाग पर भी वैचारिक विश्लेषण किया गया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में मेरठ के डॉ. अशोक कुमार मिश्र ने ब्लाग का विधायी स्वरूप और उसकी भाषा संरचना विषय पर शोधपत्र प्रस्तुत किया। शोधपत्र में ब्लाग की प्रविधि केसंदर्भ में ब्लाग बनाने की सुविधा देने वाली वेबसाइट, एग्रीगेटर, यूनीकोड आदि के विषय में जानकारी देते हुए तथ्यपरक ढंग से स्थापित किया कि विगत कुछ वर्षों के मध्य ही विकसित हुई अंतर्जाल की इस आभासी दुनिया में आज नित नई साहित्यिक कृतियों का सृजन हो रहा है। ब्लाग पर रोजना समसामयिक विषयों पर आधारित विचारपूर्ण आलेख, कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, सूचनापरक रिपोर्ट, यात्रावृतांत, संस्मरण आदि लिखे जा रहे हैं। साहित्य की कोई विधा ऐसी नहीं है, जो ब्लाग के माध्यम से समृद्ध नहीं हो रही है। ब्लाग की भाषा संरचना के विषय में शोधपत्र में बताया गया कि परंपरागत साहित्यिक भाषा के स्थान पर जनभाषा की प्रकृति को धारण किए हुए चिट्ठों में दूसरी भाषाओं केशब्दों को आत्मसात करने की अद्भुत क्षमता दिखाई देती है। यही कारण है कि ब्लाग की भाषा में प्रयुक्त हो रही नित नवीन शब्दावली हिंदी भाषा और साहित्य को समृद्ध कर रही है। संयोजक डॉ. केशवदेव शर्मा ने संगोष्ठी का संचालन किया।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)

Sunday, October 24, 2010

ब्लाग में आचार संहिता नहीं, स्वअनुशासन होना चाहिए



-डॉ. अशोक कुमार मिश्र
महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ०९-१० अक्टूबर को ब्लागिंग की आचार संहिता विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी कई मायनों में बड़ी महत्वपूर्ण रही। आज जब पूरी दुनिया में साहित्यिक और पत्रकारिता संबंधी विधाओं के उन्नयन में ब्लाग एक महत्वपूर्ण मंच की भूमिका निभा रहा है, तो यह जरूरी हो जाता है कि उस पर प्रकाशित सामग्री का विविधि दृष्टिकोण से विश्लेषण किया जाए। संगोष्ठी के संयोजक विश्वविद्यालय केआंतरिक सम्परीक्षा अधिकारी सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने इस महत्वपूर्ण पक्ष को समझकर वर्धा में ब्लागरों को एकजुट किया। इस सम्मेलन के माध्यम से कई सवाल उठे और उनके जवाब तलाशे गए। संगोष्ठी का प्रारंभ करते हुए श्री त्रिपाठी ने ब्लाग की महत्ता को रेखांकित करते हुए इसकी संभावनाओं पर प्रकाश डाला और आचार संहिता के प्रश्न को उठाया। प्रति कुलपति प्रो. अरविंदाक्षन ने भी संगोष्ठी की उपादेयता प्रतिपादित की। उद्घाटन करते हुए कुलपति व प्रसिद्ध साहित्यकार विभूति नारायण राय ने सामयिक संदर्भों का उल्लेख करते हुए कहा कि ब्लाग को बहुत गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। ब्लाग के माध्यम से उपलब्ध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहीं स्वच्छंदता में न परिवर्तित हो जाए, इसकेप्रति सचेत रहना होगा। उन्होंने कहा कि ब्लागर अपनी लक्ष्मण रेखा का स्वयं निर्धारण करें।
वस्तुत: अधिकतर ब्लागर इसी बात केपक्ष में दिखाई दिए। उनकी मान्यता थी कि ब्लाग पर यदि आचार संहिता का शिकंजा कस दिया जाएगा तो उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्ष समाप्त हो जाएगा जो कि उसकी सबसे बड़ी विशेषता है। कुछ चिट्ठाकारों की मान्यता थी कि ब्लाग पर प्रकाशित रचनाओं का यदि नियमन किया जाएगा तो इससे इसके सामाजिक सरोकारों और सार्थकता में वृद्धि हो जाएगी। बाद में, साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने ब्लागर केनिरंकुश होने से उत्पन्न खतरों से सचेत किया और संगोष्ठी के विषय की सार्थकता को स्थापित करते हुए स्पष्ट किया कि ब्लागरों के लिए भी निश्चित रूप से कुछ नियम कायदे होने चाहिए।
प्रतिष्ठित कवि आलोक धन्वा ने कहा कि ब्लाग विस्मयकारी करने वाला है। उनके लिए शब्दों का यह अद्भुत संसार है। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर बहुत कठिनाइयों भरा है जहां लोकतांत्रिक मूल्यों का निरंतर लोप होता जा रहा है। ऐसे में ब्लाग पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सदुपयोग करते हुए विचार तत्वों को विस्तार दिया जा सकता है। उन्होंने कहा ब्लाग जगत में पाखंड नहीं है, जो बहुत अच्छी बात है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे हैदराबाद से आए प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि ब्लाग पर प्रस्तुत शब्द संसार को आभासी नहीं वास्तविकता से जोड़कर ही देखा जाना चाहिए। इसलिए इसमें नैतिकता के प्रश्न पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने ब्लाग पर पनप रही दुष्प्रवृत्तियों को आड़े हाथ लेते हुए आचार संहिता की वकालत की।
लंदन से आई कविता वाचक्नवी ने ब्लागिंग की आचार संहिता का समर्थन करते हुए लेखन में संयम बरतने की बात कही। उन्होंने कहा लेखन के माध्यम से सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए निरंकुश आचरण नहीं किया जाना चाहिए। कथाकार डॉ. अजित गुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि ब्लागर एक पंचायत बनाकर लेखकीय नियमन का निर्धारण करें।
कानपुर से आए अनूप शुक्ल, दिल्ली के यशवंत सिंह और हर्षवर्धन ने ब्लाग में आचार संहिता की बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि इससे ब्लाग की मौलिक प्रवृत्ति ही नष्ट हो जाएगी। इसकेबाद अहमदाबाद के संजय बेगाणी और दिल्ली के शैलेश भारतवासी ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को ब्लाग बनाने का प्रशिक्षण दिया। जनसंचार विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार राय अंकित ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।

संगोष्ठी
का दूसरा दिन कई चिंतनपरक आयामों से गुजरा। सभी ब्लागरों के चार समूह बनाकर विविध विषयों पर विचार मंथन किया गया और उसके निष्कर्षों को समूह प्रतिनिधि ने मंच से प्रस्तुत किया। ब्लागिंग में नैतिकता व सभ्याचरण, हिंदी ब्लाग और उद्यमिता, आचार संहिता क्यों और किसके लिए, हिंदी ब्लाग और सामाजिक सरोकार विषयों पर गहन मंथन किया गया। चार ब्लागरों के अध्ययन पत्रों का भी प्रस्तुतीकरण किया गया। डॉ. अशोक कुमार मिश्र ने ब्लागरी में नैतिकता का प्रश्न और आचार संहिता की परिकल्पना विषय पर प्रस्तुत अपने अध्ययन पत्र में उल्लेख किया कि ब्लाग में स्वअनुशासन का होना बहुत जरूरी है। अनुशासन के दायरे में रहकर ही श्रेष्ठ लेखन संभव है। ब्लाग में नैतिकता के प्रश्न का वैचारिक विश्लेषण करते हुए कहा जा सकता है कि ब्लाग में आचार संहिता की परिकल्पना के पीछे चिट्ठाकारों में स्वअनुशासन की भावना को ही विकसित करना है। लखनऊ के रवींद्र प्रभात, ब्लाग पर पीएचडी कर रही इंदौर से आई गायत्री शर्मा, दिल्ली के अविनाश वाचस्पति ने भी अध्ययनपत्र प्रस्तुत किए। उज्जैन से आए सुरेश चिपलूनकर, लखनऊ के जाकिर अली रजनीश और बंगलौर से आए प्रवीण पांडे ने ब्लाग लेखन में शाब्दिक शालीनता बरतने, सार्थक टिप्पणियां करने, ब्लाग के माध्यम से समसामयिक प्रश्नों पर विचार करने और सामाजिक सरोकारों से जोडऩे पर जोर दिया। साहित्यकार राजकिशोर, प्रियंकर पालीवाल, महेश सिन्हा, जयराम झा, विवेक सिंह, संजीत त्रिपाठी, श्रीमती अनीता कुमार, रचना त्रिपाठी, विनोद शुक्ला की उपस्थिति ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की।

Monday, October 4, 2010

प्राइमरी स्कूलों की संख्या संग गुणवत्ता भी बढ़ाएं

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
लखनऊ में १८ सितंबर को हुई बैठक में उत्तर प्रदेश सरकार ने तय किया कि अब ३०० लोगों की आबादी पर एक प्राइमरी स्कूल खोला जाएगा। शिक्षा का अधिकार अधिनियम में १४ वर्ष के तक बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था की गई है। इसकेअनुरूप बुनियादी शिक्षण संस्थान खोलने के लिए सूबे में कवायद की जा रही है। पहले सरकार ने तय किया था कि प्रदेश में स्कूल खोलने का मानक आबादी के बजाय क्षेत्रफल रहेगा। इसके मुताबिक एक किलोमीटर के दायरे में एक स्कूल खोला जाएगा लेकिन प्रदेश प्राइमरी स्कूलों की जो हालत है, उसके मुताबिक नीति में परिवर्तन किया गया है।
प्रदेश में मौजूदा समय में १ लाख ५ हजार ५०५ प्राइमरी और ४२ हजार ७४८ उच्च प्राइमरी स्कूल हैं। प्रदेश में मौजूदा समय में जितने स्कूल हैं, उनमें नए मानक के अनुसार ३.२५ लाख सहायक अध्यापकों की जरूरत होगी।
प्राइमरी शिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ाने से इससे सूबे में शिक्षा का बुनियादी ढांचा निश्चित रूप से बहुत मजबूत हो जाएगा लेकिन इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि इन स्कूलों में पर्याप्त संसाधन मुहैया कराए जाएं। सूबे में चाहे शहरी इलाके के स्कूल हों, या सुदूर ग्रामीण अंचलों के, सभी में बुनियादी संसाधनों का निहायत अभाव दिखाई देता है।
बड़ी संख्या में स्कूल खस्ताहाल भवनों में चल रहे हैं। अनेक स्कूल किराए की ऐसी इमारतों में चल रहे हैं जिनमें पढ़ाई करना किसी खतरे को मोल लेने से कम नहीं हैं। जिन स्कूलों के अपने भवन भी हैं वहां भी ऐसी इमारतों की संख्या ज्यादा है, जो पुराने हो चुके हैं और मरम्मत न होने के कारण गिराऊ हालत में पहुंच चुके हैं। मेरठ में तो स्कूल की हालत इतनी जर्जर थी कि पड़ोस के एक व्याक्ति ने उसे खुद ही ध्वस्त करा दिया ताकि कोई हादसा न हो जाए। गाहे-बगाहे प्राइमरी स्कूल के जर्जर भवनों की छत आदि गिरने की खबरें अखबारों में छपती भी रहती हैं। कॉम्पैक्ट ने भी सूबे में पड़ताल की तो प्राइमरी स्कूलों की खस्ताहाल तस्वीर को उजागर हुई जहां मौत के साये में मासूम पढ़ाई कर रहे हैं। खतरों की पाठशाला बने ऐसे स्कूलों में बच्चे और शिक्षक दोनों ही दुर्घटना की आशंका से सहमे रहते हैं।
संसाधनों की भी भारी कमी प्राइमरी स्कूलों में दिखाई देती हैं। कहीं टाट-पट्टी फटी हुई हैं तो कहीं ब्लैक बोर्ड की खस्ताहालत है। शिक्षकों के बैठने के लिए कुर्सियां कहीं कम हैं तो कहीं पुरानी और जर्जर हैं। अनेक स्कूलों में टायलेट की व्यवस्था न होना भी विद्यार्थियों शिक्षकों केलिए परेशानी का सबब बन जाता है। स्कूलों में नियमित सफाई का भी इंतजाम नहीं हो पाता है। बिजनौर में १८ सितंबर को उच्च प्राइमरी स्कूल कुरी बंगर में गंदगी पर पाए जाने पर जिला बेसिक शिक्षाधिकारी वरूण कुमार सिंह हेड मास्टर को निलंबित कर दिया तथा अन्य स्टाफ को हटा दिया। बीएसए के मुताबिक निरीक्षण में बहुउददेशीय कक्ष की छत पर घास पाई गई तथा छत पर पानी भरा है दीवारों में सीलन एवं दरार आ गई है। शौचालय एवं मूत्रालय में भूसा एवं टूटी हुई कुर्सियां भरी पाई गर्इं।
शिक्षकों की भारी कमी प्राइमरी स्कूलों में है। ऐसे अनेक स्कूल हैं जो एक या दो शिक्षकों के सहारे चल रहे हैं। मौजूदा समय में सूबे में शिक्षकों की कमी के चलते १४ हजार २७४ एकल और १३८७ स्कूल बंद हो चुके हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि बीच में कई वर्ष ऐसे रहे जब शिक्षक सेवानिवृत तो होते रहे लेकिन भर्ती नहीं की गई।
इन कारणों से प्राइमरी शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई। शिक्षकों की कमी का असर स्कूलों की विद्यार्थी संख्या पर पड़ा। स्कूलों में छात्र के प्रवेश घटे और जिन्होंने दाखिले लिए वे कक्षा में कम दिन उपस्थित रहते। इसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा।
ऐसी स्थिति में जरूरी है कि स्कूलों की संख्या बढ़ाने के साथ ही संसाधनों को भी विकसित करने की ओर ध्यान दिया जाए। साथ ही स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। अच्छे भवनों में विद्यार्थियों की पढ़ाई की व्यवस्था की जाए। शिक्षकों की संख्या भी छात्रों केअनुपात में हो। यह सब होगा तो विद्यालय में पढ़ाई में विद्यार्थियों का मन लगेगा और वह अच्छे शैक्षिक परिणाम देने में समर्थ होंगे। तभी शिक्षा की सार्थकता सिद्ध हो पाएगी और विद्यालय श्रेष्ठ नागरिक तैयार करने में समर्थ हो सकेंगे।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)