Wednesday, August 11, 2010

गधों का अंतरराष्ट्रीय बाजार

डॉ. अशोक प्रियरंजन
चीन का सामान यूज करते करते लपूझन्ना चीन का मुरीद हो गया था। उसका मन चीन जाने को हिलोरें मार रहा था और चीन से डिमांड आई है भारत के गधों की। वह अब कभी गधों को देखता है और कभी खुद को। उसका मन अभी तक खुद को गधों से कमतर मानने को राजी नहीं हो रहा। गधों का निर्यात करने वाली कंपनी देश में गधे की कीमत १० हजार मान रही है। विदेशी मुद्रा में एक गधा लाखों का बैठेगा। लपूझन्ना यहां केबाजार में ही अपनी कीमत तलाशने में विफल रहा तो फिर विदेशी बाजार में अपनी कीमत आंकने की हिमाकत कैसे कर सकता है। जब से उसे गधों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग बढऩे की खबर मिली है, तब से उसे गधों से रश्क होने लगा है।
उसे इस बात का भी मलाल हो रहा है उसे किसी महिला ने कभी प्यार से नहीं देखा जबकि चीन में गधों की मांग महिलाओं की वजह से ही पैदा हुई है। चीन की महिलाओं को गधे के चमड़े से बने पर्स और जैकेट लुभा रहे हैं। लपूझन्ना का दिल दहाड़े मार-मारकर रोने को हो आता है जब वह सोचता है कि वह किसी महिला को गले नहीं लगा सका जबकि मरने के बाद भी गधे की खास का साजो सामान महिलाओं की गले की रौनक बनेगा। चीन की महिलाओं में गधे के चमड़े से बने पर्स और जैकेट अत्यधिक लोकप्रिय हैं।
लपूझन्ना को अपने बालों पर बड़ा गुरुर था लेकिन आज तक किसी ने उसके बालों की तारीफ नहीं की। चीन की निगाह इंडियन गधों के बालों पर लगी है। वहां के लोगों को गधों के बालों से बना खास किस्म का ब्रश खूब पसंद आ रहा है। लपूझन्ना का दिल कर रहा कि अपने बालों को मुंडाकर गंजा हो जाए, अपने इन नासपीटे बालों का तो कोई फायदा ही अब तक नजर नहीं आया। कभी उसने अपनी फोटो तक इसलिए नहीं खिंचाई कि भला फिजूलखर्ची से क्या फायदा लेकिन गधों ने उससे इसमें भी बाजी मार ली। चीन से जो आर्डर आया है उसमें इंडियन गधों की तस्वीरें भी भेजी गई हैं। लपूझन्ना सोच रहा है काश वह तस्वीर खिंचवा लेता तो उसकी भी कुछ मार्केट वैल्यू बन जाती लेकिन अब पछताए होत का जब चिडिय़ा चुग गई खेत।
कॉलेज के दिनोंं उसके दोस्त गधों की बड़ी तारीफ करते थे। कहते थे कि गधा सबसे बड़ा चिंतक होता है इसीलिए वह चुपचाप घंटों एक ही स्थान पर खड़े रहकर सोचता रहता है। वह अक्सर गधों की सहनशीलता से प्रेरणा लेने की बात कहते थे क्योंकि मारपीट, लानत मलामत और तमाम टीका टिप्पणियों को बड़े धैर्य से सहते थे और कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते थे। अब तो वह गधों की महानता का पूरी तरह कायल हो गया है। फिलहाल गुणवान गधों को देख-देखकर मलाल करने के अलावा लपूझन्ना पर कोई चारा नहीं बचा था।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)

7 comments:

Anonymous said...

wah wah
ab to gadho ki bhi chandi hai

Anonymous said...

wah wah
ab to gadho ki bhi chandi hai

डॉ० डंडा लखनवी said...

लपूझन्ना गदाहियत की..... बेबाक जानकारी के लिए हृर्दिक आभार।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

राज भाटिय़ा said...

लपूझन्ना को भी गधो की खाल पहना कर जल्दी से चीन भेज दो

निर्मल गुप्त said...

एक सज्जन की टिप्पडी है -वाह-वाह अब तो गधों की चांदी है .ठीक कहा अब गधों की ही चांदी है .
करारा व्यंग्य .

रानीविशाल said...

Bahut satik aur sarthak vyang kiya hai aapne..Aabhar!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया!
इसकी चर्चा चर्चा मंच पर भी है!
--
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/244.html