Tuesday, June 8, 2010

अपमान झेलती प्रतिमाएं

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
ज्ञानपुर के गांधी उद्यान में स्थापित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा पर ३० मई की रात कुछ शरारती तत्वों ने शराब की बोतल फोड़कर एक फटा-पुराना कंबल लपेट दिया। राष्ट्रपिता के अपमान से जब स्थानीय कांग्रेसी भड़क उठे और धरना-प्रदर्शन करने लगे, तब प्रशासन ने जांच का आश्वासन देकर मामला रफा-दफा किया। इस घटना के एक दिन पहले ही मेरठ में चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा के पास गंदगी का अंबार देखकर भाजपाई भड़क गए थे। इसकी वजह यह थी कि जब पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की २३वीं पुण्यतिथि पर सांसद राजेंद्र अग्रवाल की अगुवाई में लोग श्रद्धांजलि देने कमिश्नरी पार्क पहुंचे, तो वहां प्रतिमा के आसपास काफी गंदगी पसरी हुई थी।
इसी तरह, २३ सितंबर, २००८ को जम्मू के मुबारक मंडी कांप्लेक्स में राष्ट्रपिता की मूर्ति के गले में रस्सी बांधकर रोशनी के लिए लाइट लटका दी गई थी। एक समारोह की तैयारियों में जुटे टेंट हाउस के कर्मचारी बापू की प्रतिमा पर चढ़ गए। पूरे देश में महापुरुषों की प्रतिमाओं की यही दशा है। समझ में नहीं आता कि जब हम प्रतिमाओं का सम्मान ही नहीं कर सकते, तो उन्हें स्थापित क्यों करते हैं? क्या महज राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति के लिए?
पूरी दुनिया में महापुरुषों की प्रतिमाएं लगाई जाती हैं। भारत में भी बड़ी संख्या में महापुरुषों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। कोई शहर ऐसा नहीं, जहां प्रतिमाएं न हों। प्रतिमा स्थापित करने के पीछे दरअसल मंशा यही होती है कि लोग संबंधित महापुरुष के आदर्शों से प्रेरणा लें और उनके बताए मार्ग पर चलकर समाज और देश के विकास में योगदान दें। इसके लिए जरूरी है कि प्रतिमा स्थापना के बाद उसके रखरखाव, सफाई और सुरक्षा पर भी पूरा ध्यान दिया जाए। प्रतिमाएं खुद बदहाल स्थिति में रहेंगी, तो कोई उनसे प्रेरित कैसे होगा? ज्यादातर प्रतिमाएं खुले में लगी हैं, जाहिर है, मौसम भी उनके रंग-रूप को बदरंग करता है। ऐसे मे, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कैसे महापुरुषों की प्रतिमाओं के सम्मान की रक्षा की जाए। यह प्रतिमा लगाते समय ही सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
महापुरुषों के जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर पूरे देश में समारोह आयोजित होते हैं। कुछ महापुरुषों के जन्मदिवस या निर्वाण दिवस को सरकारी अवकाश भी दिया जाता है, ताकि हम उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचार कर सकें। लेकिन इन अवकाशों के मायने अब पूरी तरह बदल गए हैं। उस दिन लोग महापुरुष को याद करने के बजाय अपने दूसरे कामों में व्यस्त रहते हैं।
महापुरुषों के जीवन के विविध पक्ष नई पीढ़ी के लिए हमेशा से प्रेरणादायक रहे हैं। इसीलिए पहले बुजुर्ग बच्चों को महापुरुषों के संस्मरण सुनाया करते थे। एकल परिवारों के युग में इसकी गुंजाइश ही नहीं बची। महापुरुषों की जीवनियां सिर्फ पाठ्यक्रमों में ही बच्चों को पढऩे को मिल पाती हैं, क्योंकि पुस्तक खरीदने की प्रवृत्ति भी परिवारों में घट रही है। अत: हमें विचार करना होगा कि बच्चे कैसे महापुरुषों के जीवन से जुड़े विविध प्रसंगों से अवगत हो पाएंगे?
समाज में जिस तरह से नैतिकता का पतन हो रहा है, जीवन मूल्यों का अवमूल्यन हो रहा है, नई पीढ़ी में दिशाहीनता और भटकाव की स्थितियां दिखाई दे रही हैं, सांस्कृतिक मान्यताओं व परंपराओं के साथ खिलवाड़ हो रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए महापुरुषों के विचारों एवं आदर्शों का प्रचार-प्रसार करना होगा, तभी समाज सही दिशा में आगे बढ़ पाएगा।
(इस लेख को अमर उजाला के ८ जून २०१० के अंक में संपादकीय पृष्ठ पर भी पढा जा सकता है । फोटो गूगल सर्च से साभार)

8 comments:

शारदा अरोरा said...

आज सुबह अमरउजाला में आपका लेख पढ़ लिया था , इस विचारणीय विषय पर अच्छा लिखा है आपने , बधाई हो ।

आशीष मिश्रा said...

यही तो भारत की दुर्दशा पर रोना है

Riku Sirvya said...

मुझे यह समझ नहीं आता है कि आखिरकार इन महापुरूषों की प्रतिमाओं का औचित्‍य क्‍या है। क्‍यो इन्‍हें हम चौराहों पर खड़ा कर रहें है। आज बच्‍चे जिस तरह की शिक्षा ग्रहण कर रहें है और जो वे देख रहें है उनके लिए तो ये प्रतिमाएं जब चौराहों पर दिखती है तो वे इन्‍हें केवल इस लिए गौर से देखते है क्‍योकि उन्‍हें इन्‍हें देखकर मजा आता है एक अजीब सा एहसास होता है कि जिसने में ये बनायी अच्‍छी है। वह किसकी है इससे उन्‍हें कोई मतलब नहीं। नेताओं को जन्‍म दिन और पुण्‍यतिथि के दिन याद आ जाती है। इसके बीच यदि इन नेताओं के पास कोई काम नहीं होता तो वे इन प्रतिमाओं को मुद्दा बनाते है सबसे बड़ा अपमान का मुद्दा जो ये स्‍वयं हजार बार करते है पर किसी ने ओर कर दिया तो धरना पर बैठ गए। फोटो खीचवायी और काम खत्‍म।

संगीता पुरी said...

आज के युवाओं का लक्ष्‍य पैसे कमाना रह गया है .. ऐसी स्थिति में नैतिक मूल्‍यों का विकास कैसे हो सकता है ??

kavita verma said...

ashokji bahut achchha prashan uthaya aapne.vakai sthithi kharab hai logo ke man se samman ki bhavna kam ho rahi hai.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चित्र-पूजा की बजाय चरित्र पूजा होनी चाहिए!

PREETI BARTHWAL said...

अच्छा लेख है। और विचारणिय भी है।

स्वाति said...

विचारणीय लेख...