Friday, November 13, 2009

घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन


-डॉ. अशोक प्रियरंजन
बेहतर जिंदगी और श्रेष्ठ समाज के लिए सबसे जरूरी चीज है संवेदना । संवेदना यानी दूसरे की वेदना को खुद भी महसूस कर पाना । संवेदना ही मनुष्यता को विस्तार देती है । पारिवारिक सदस्यों में परस्पर संवेदनशीलता जितनी ज्यादा होगी, रिश्ते उतने ही गहरे और मजबूत होंगे । मनुष्य संवेदनशील हो, परिवार संवेदनशील हो और समाज संवेदनशील हो, तो काफी कुछ परेशानियां और दुख खुदबखुद खत्म हो जाएंगे । लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है । घरेलू हिंसा को लेकर जो ताजा सर्वेक्षण हुआ है, उसने परिवारों खास तौर से पति-पत्नी के रिश्तों में पैदा हो रही संवेदनशीलता की बड़ी खौफनाक तस्वीर पेश की है ।
वर्ष २००५ में बने घरेलू हिंसा निवारण अधिनियम को लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग और लॉयर्स कलेक्टिव नामक संस्था ने एक सर्वे कराया । इस सर्वे के मुताबिक कोई भी राज्य ऐसा नहीं है, जहां घरेलू हिंसा से संबंधित मामले सामने नहीं आए हों । घरेलू हिंसा के उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक ३,८९२ मामले दर्ज किए गए, जबकि दिल्ली में ३,४६३ और केरल में ३,१९० मामले सामने आए। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी घरेलू हिंसा से संबंधित काफी मामले दर्ज हुए हैं ।
घरेलू हिंसा कोई नई नहीं है । सदियों से यह भारतीय समाज में प्रचलित है । घर की चाहरदीवारी में कैद महिलाएं तमाम जुल्म और ज्यादतियों को चुपचाप सह जाती हैं । वह इसे अपने जीवन की नियति मान लेती हैं । मारपीट करने वाला पति उनके लिए देवता बना रहता है । इन स्थितियों के बीच क्यों घरेलू हिंसा निवारण अधिनियम की जरूरत पड़ी ? दरअसल वक्त बदल रहा है । पहले महिलाएं इसलिए जुल्म सहती थीं क्योंकि उनका आर्थिक आधार होता ही नहीं था । पति की उनकी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का माध्यम था । अब महिलाएं स्वाबलंबी हो रही हैं । खुद अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं तो फिर क्यों पति का जुल्म बरदाश्त करें ? पहले शिक्षित लड़कियों और महिलाओं की संख्या कम थी ? लड़कियों को बाहर जाकर पढऩे लिखने की आजादी बहुत कम थी । अशिक्षा उनके आत्मविश्वास को इतना कमजोर कर देती थी कि वह कोई आवाज ही नहीं उठा पाती थीं । पति का जुल्म भी इसीलिए चुपचाप बरदाश्त करती थीं ।
अब लड़कियों और महिलाओं की जिंदगी में व्यापक बदलाव आ रहा है । वह पढ़ाई के लिए मनपसंद स्कूल-कालेजों में जा रही हैं । घर की दहलीज लांघकर नौकरी करने के लिए बाहर निकल रही हैं । आर्थिक रूप से भी मजबूत हो रही हैं। ऐसे में वह घरेलू हिंसा को क्यों सहन करें ?
गहराई से विचार करें तो पता चलेगा कि घरेलू हिंसा के मामलों का दर्ज होना अच्छा भी है और खराब भी । अच्छा इसलिए क्योंकि यह महिलाओं के साहस का भी प्रतीक है कि वह पति की ज्यादतियों का प्रतिकार कर रही हैं । अपने हक की लड़ाई के लिए आवाज बुलंद कर रही हैं । खराब इसलिए कि तमाम सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के बाद भी घरों के अंदर ही अच्छा माहौल नहीं बन पा रहा। महिलाओं को यथोचित सम्मान नहीं मिल पा रहा । इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं। वह हिंसा जो महिला के तन को ही नहीं मन को भी घायल कर देती है । सभ्य समाज के लिए घरेलू हिंसा कलंक की ही तरह है। इसे रोकने के लिए गंभीरता से प्रयास होने चाहिए ।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)