Sunday, October 4, 2009

संस्कृत को रोजगार से जोड़ें

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
सोमवार पांच अक्टूबर को संस्कृत दिवस है । वही संस्कृत जिसे देवभाषा माना गया । समस्त भाषाओं की जननी भी संस्कृत को ही कहा जाता है । इसी भाषा समस्त वेदों का ज्ञान समाहित है । संस्कृत भाषाओं के अनेक श्लोक जीवन का मार्गदर्शन करने में महती भूमिका निभाते हैं । 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताÓ श्लोक भारतीय समाज में नारी की उच्चता को स्थापित करता है । 'परित्राणाय साधुनाम् विनाशाय च दुष्कृतांÓ श्लोक में संपूर्ण जीवन जीने का तरीका समाहित है । वेदों की ऋचाएं युगों-युगों से संपूर्ण मानव जाति के जीवन को दिशाबोध कराती हैं । संस्कृत का मूषक: शब्द हिंदी में मूस और अंग्रेजी में माऊस हो गया । यह तो महज एक उदाहरण है । ऐसे अनेक शब्द हैं जो संस्कृत से दूसरी भाषाओं ने अंगीकार किए ।
इतनी अर्थवत्ता वाली भाषा कैसे पिछड़ती चली गई ? इस पर चिंतन करके इसके विकास के बारे में विचार करना ही संस्कृत दिवस की सार्थकता होगी । दरअसल, जो भाषा रोजगार न दे सके, वह समाज के लिए अधिक उपयोगी नहीं रह पाती । संस्कृत के साथ यही हुआ । संस्कृत सिर्फ विद्यालीय अथवा विश्वविद्यालीय पठन-पाठन का हिस्सा बनकर रह गई । उसकी पुस्तकें शोध का विषय तो बनी पर आम जनता में अपनी जगह नहीं बना पाई । इसकी वजह यह रही कि संस्कृत की उच्च स्तर तक की पढ़ाई करने पर रोजगार के व्यापक अवसर सुलभ नहीं है । सिर्फ शिक्षक के रूप में ही सर्वाधिक रोजगार संस्कृत पढऩे वालों को मिलता है । कंप्यूटर पर भी संस्कृत भाषा का काम नहीं हो पाता है । यही वजह रही कि संस्कृत दुर्दशा का शिकार होती गई । अधिकतर संस्कृत विद्यालय भी बदहाल हैं ।
ऐसी स्थिति में जरूरी है कि इस वैज्ञानिक युग में संस्कृत भाषा में विज्ञान, तकनीक, कंप्यूटर, वाणिज्य संबंधी पुस्तकें होनी चाहिए ताकि संस्कृत के विद्यार्थी उनका अध्ययन कर श्रेष्ठ वैज्ञानिक और व्यवसायी बन सकें । संस्कृत में रोजगार केअवसर बढ़ाने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए । इस तरह के प्रयास होंगे तो संस्कृत अपनी खोयी प्रतिष्ठा दोबारा हासिल कर लेगी ।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)