Sunday, September 13, 2009

रोजगार और बाजार से जुड़ी हिंदी, जगा रही अपार संभावनाएं

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
हिंदी के प्रति अब नजरिया बदल रहा है । अब तक अंग्रेजी इसलिए ज्यादा पढ़ी जाती थी क्योंकि उसे रोजगार दिलाने में सहायक माना जाता था । अब हिंदी भी रोजगार और बाजार से जुड़ रही है। ऐसे में हिंदी के विस्तार की अपार संभावनाएं पैदा हो रही हैं । इसलिए समय आ गया है कि अब हम हिंदी दिवस पर इस गौरवशाली भाषा की दुर्दशा को रेखांकित करने की बजाय इसके प्रयोग में शुद्धिकरण और मानकीकरण पर विचार करें । मौजूदा दौर में सर्वाधिक अखबार हिंदी के बिक रहे हैं । हिंदी चैनल देखने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है । रेडियो सुदूर अंचलों में हिंदी माध्यम से ही अपनी बात जनमानस तक पहुंचाता है । इन तीनों माध्यमों में बड़ी संख्या में हिंदी वाले रोजगार हासिल कर रहे हैं । पहले की तरह वे अल्पवेतनभोगी नहीं हैं बल्कि अच्छा वेतन प्राप्त कर रहे हैं । सरकारी विभागों में हिंदी अधिकारी और अनुवादक जैसे पद सृजित हुए हैं । प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी के माध्यम से कामयाबी की कहानी लिखी जा रही है । भारतीय प्रशासनिक सेवा में हिंदी विषय ने अनेक प्रतियोगियों का बेड़ा पार किया। विदेशों में हिंदी के प्रति रुझान बढ़ रहा है। अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है ।
हिंदी भाषी बाजार भी संभावनाएं जगा रहा है । विदेशी कंपनियों को अपने उत्पाद भारत में बेचने केलिए हिंदी में विज्ञापन बनाना मजबूरी है । हिंदीभाषियों तक उत्पाद की गुणवत्ता बताने के लिए उन्हें वही अधिकारी तैनात करने पड़ रहे हैं जो हिंदी जानते हैं । कई टेलीविजन चैनलों ने इसी बाजार के दबाव में अंग्रेजी का चोला बदलकर हिंदी को अपनाया। सरकारी कामकाज में भी हिंदी का बोलबाला बढ़ रहा है ।
ऐसे में हिंदी को और विस्तार देने के लिए प्रयास करने होंगे । उसे सिर्फ साहित्य की भाषा के दायरे से बाहर निकालकर विज्ञान, तकनीक, वाणिज्य आदि विषयों से जोडऩा होगा । ऐसे तमाम विषयों का पठन-पाठन हिंदी में होने लगे तो हिंदी का परचम पूरे देश में लहराने लगेगा। हिंदी की पुस्तकें पढऩे और खरीदने की प्रवृत्ति भी विकसित करनी होगी । हिंदी पुस्तकें पढऩे का संस्कार विकसित हो गया तो भाषा का पक्ष काफी मजबूत होने लगेगा ।
अव वक्त है कि हिंदी भाषा को शुद्ध लिखने, पढऩे और बोलने की ओर ध्यान केंद्रित किया जाए । ईमेल, एसएमएस और इंटरनेट पर हिंदी लेखन में बढ़ रही अशुद्धियों को रोकने पर विचार किया जाए । हिंदी को रोमन लिपि में लिखने की बढ़ती प्रवृत्ति नहीं रोकी गई तो देवनागरी लिपि को खतरा पैदा हो जाएगा । हिंदी को राष्ट्रीय भाषा मानकर इसके प्रति समर्पण भाव जागृत करने की दिशा में काम किया जाए । ऐसा होने पर हिंदी पढऩा लिखना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सम्मान का विषय होगा । हिंदी जनमानस के जीवन और कर्म से जुड़ेगी,तभी हिंदी अपना वास्तविक गौरव हासिल कर पाएगी ।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

7 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा सार्थक एवं विचारणीय आलेख.

हिन्दी दिवस पर शुभकामनाऐं.

नारायण प्रसाद said...

डॉ॰ अशोक प्रियरंजन जी,
हिन्दी की हो रही प्रगति के बारे में आपने बहुत कुछ कही है, परन्तु अपना परिचय अंग्रेजी में दिया है । कृ्पया अपना परिचय हिन्दी में लिखें ।

Meenu Khare said...

अच्छा लेख. बधाई.

संगीता पुरी said...

हिन्‍दी में भी अपार संभावनाएं बनती जा रही है .. फिर भी हमें कुछ दिन इसपर अधिक ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है .. तभी यह फल फूल सकेगा .. ब्‍लाग जगत में आज हिन्‍दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्‍छा लग रहा है .. हिन्‍दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!

राज भाटिय़ा said...

आप के लेख ने फ़िर से हिम्मत जगा दी, बहुत अच्छा लिखा, लेकिन आप नारायण प्रसाद जी की टिपण्णी पर भी गोर करे.
धन्यवाद

nitu pandey said...

आपके इस लेख ने मेरे मन की बात कह दि है। मेरा भी मानना है कि हमारी मातृभाषा हिंदी है तो हम इस बोलने-लिखने से क्यों शर्माते है। आज के अधिकतर युवा वर्ग हिंदी बोलने-लिखने में शर्म महसूस करता है। अगर चीन अपनी भाषा को इतना विकसीत कर सकता है तो हम क्यों नहीं। इसके लिए सिर्फ जरूरत है जागरूकता फैलाने की, और इसकी शुरूआत हमें अपने घर से ही करने होगे।

अच्छा लेख है।

लता 'हया' said...

bahut bahut shukria aur hindi ke liye itni sakaratmak soch rakhne ke liye badhai.