Sunday, November 30, 2008

उर्दू की जमीन से फूटी हिंदी गजल की काव्य धारा

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
मेरठ

प्रिय नितिन,
कल एक साप्ताहिक पत्र में तुम्हारा एक गीत और एक गजल पढऩे को मिली । गीत मुझे बेहद अच्छा लगा लेकिन गजल नाम से जो पंक्तियां तुमने लिखी हैं, वे गजल के मिजाज से कोसों दूर लगीं । मुझे तुम्हारी रचनात्मक यात्रा से खासा लगाव रहा है इसलिए चाहता हूं कि अब गजल लिखने से पहले तुम इसके संपूर्ण विधात्मक स्वरूप को अध्ययन और मनन से दिमाग में पूरी तरह जज्ब कर लो । मैने गजल के बारे में जो कुछ पढा और बुजुर्ग शायरों से जो कुछ सुना है, उसे तुम्हारी सहूलियत के लिए यहां लिख रहा हूं । दरअसल हिंदी में गजल की काव्यधारा उर्दू की जमीन से फूटी । गजल भाषाई एकता की ऐसी मिसाल है जिसने हिंदी-उर्दू दोनों भाषा भाषी लोगों के दिलों में अपनी अलग जगह बनाई । गंगा जमुनी तहजीब के काव्यमंचों पर गजल ने खासी लोकप्रियता हासिल की ।
मुगल बादशाह शाहजहां के राज्यकाल में पंडित चंद्रभानु बरहमन नामक कवि हुए हैं जिन्हें उर्दू का प्रथम कवि होने का श्रेय प्राप्त है लेकिन उनमें काव्य मर्मज्ञता से अधिक वियोगी होगा पहला कवि वाली बात ही अधिक मुखर है । औरंगजेब के काल में वली ने उर्दू कविता को नपे तुले मार्ग पर चलाने में बडा योगदान दिया । आबरू, नाजी, हातिम तथा मजहर जाने-जाना आदि कवियों ने उर्दू कविता कुनबेे को स्थायी रूप प्रदान किया । इन्होने वाक्यों में फारसी की चाशनी प्रदान की और फारसी में प्रचलित लगभग सभी काव्यरूपों का उर्दू में प्रयोग किया ।
गजल उर्दू कविता का वह विशिष्ट रूप है जिसमें प्रेमिका से वार्तालाप, उसके रूप-सौंदर्य तथा यौवन का वर्णन और मुहब्बत संबंधी दुखों की चर्चा की जाती है । मौजूदा दौर में तो गजल के कथ्य का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है । आधुनिक जीवन की विसंगतियों और विडंबनाओं को गजल में बड़े यथार्थपरक ढंग से अभिव्यक्त किया जा रहा है । गजल की विशेषता इसकी भावोत्पादकता होती है । गजल का कलेवर अत्यधिक कोमल और सरस होता है । इसका प्रत्येक शेर स्वयं में पूर्ण होता है । शेर के दो बराबर टुकड़े होते हैं जिन्हें मिसरा कहा जाता है । हर शेर के अंत में जितने शब्द बार-बार आते हैं उन्हें रदीफ और रदीफ से पूर्व एक ही स्वर वाले शब्दों को काफिया कहा जाता है । गजल के पहले शेर के दोनो मिसरे एक ही काफिया और रदीफ में होते हैं । ऐसे शेर को मतला कहा जाता है । गजल के अंतिम शेर को मक्ता कहते हैं । इसमें प्राय शायर का उपनाम अर्थात तखल्लुस होता है ।
फारसी और भारतीय भाषाओं में गजल कहने वाले पहले शायर ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती माने जाते है ं। १८वीं शताब्दी में गजल को नया रूप देने वालों में दर्द, मीर तथा सौदा के नाम प्रमुख हैं । नजीर अकबराबादी, इंशा, मुसहफी, नासिख, शाह नसीर तथा आतिश आदि की गजलें भी बड़ी मशहूर हुईं । इनके बाद गजल को माधुर्य, चमत्कार और वैचारिक प्रौढता प्रदान करने वाले शायरों में मोमिन, जौक और गालिब का नाम लिया जाता है । यह लोग उर्दू के उस्ताद शायर थे । बीसवीं शताब्दी में हसरत, फानी बदायूंनी, इकबाल, अकबर, जिगर मुरादाबादी, फिराक गोरखपुरी, असर लखनवी, फैज अहमद फैज, सरदार जाफरी कतील शिफाई, नूर, शकील बदायूंनी साहिर, कैफी आजमी, मजरूह, जोश मलीहाबादी और बशीर बद्र जैसे अनेक नाम उल्लेखनीय हैं ।
हिंदी में भी गजल कहने वालों की सुदीर्घ परंपरा रहा है । आजादी के बाद हिंदी काव्य मंचों पर बलवीर सिंह रंग की गजलों ने लोगों की खूब वाहवाही लूटी । इसीलिए उन्हें गजल सम्राट कहा गया । दुष्यंत ने हिंदी गजल में आम आदमी की पीडा को अभिव्यक्त करके इसे एक नई पहचान दी । उनके शेर-कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए-ने हिंदुस्तान के हालात को बखूबी बयान किया । यह दुष्यंत ही थे जिनकी दी जमीन पर बाद में अनेक शायरों ने गजल कही । उन्होंने गजल में समकालीन विसंगतियों को रेखांकित किया । गजल को हिंदी में गीतिका जैसे कुछ दूसरे नाम भी दिए गए । डॉ. उर्मिलेश, कुंवर बेचैन, अदम गोंडवी, चंद्रसेन विराट जैसे अनेक कवियों ने हिंदी गजल को समृद्ध किया ।
उम्मीद है गजल के विषय में यह जानकारी तुम्हारे लिए उपयोगी साबित होगी । कथ्य और शिल्प के बेहतरीन सम्मिलन से तुम और बेहतर गजल लिख पाओगे हालांकि उस्ताद शायरों का कहना है कि गजल कही जाती है लिखी नहीं जाती । इसके पीछे मंशा यह है कि गजल को इतना गुनगुनाओ कि उसका हर शेर मुकम्मल बन जाए ।
तुम्हारा
-डॉ. अशोक प्रियरंजन
(फोटो गूगल सर्च से साभार )

Sunday, November 16, 2008

महिलाओं के सपनों की सच्चाई बयान करती तस्वीर

-डॉ अशोक प्रियरंजन
मेरा शहर मेरठ - मेयर मधु गुजॆर । मेरा प्रदेश उत्तर प्रदेश - मुख्यमंत्री मायावती । मेरा देश भारत-सत्तारूढ यूपीए की चेयरमैन सोिनया गांधी । ये सब प्रतीक हैं उस सत्ता के जिसके शीषॆ पर िवराजमान हैं महिलाएं । एक शहर से लेकर देश की उच्च सत्ता पर महिलाओं का विराजमान होना सुखद संकेत हो सकता है । अपेक्षा की जानी चाहि िक इस िस्थित में महिलाओं की जिंदगी बेहद खुशहाल, उम्मीदें जगाने वाली और सतरंगी सपनों से लबरेज हो । पहले जमाने में उनके लि जो मुिश्कलें रहीं वह अब खत्म हो जानी चाहि । पुरूषों के स्थान पर शीषॆ पदों पर महिलाओं के प्रतिष्ठित होने से संपूणॆ महिला समाज के तरक्की की उम्मीद जगना स्वभावि है । एेसा लगता है िक इस स्तिथि में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही रोजगार, कामकाज, अधिकार और आथिॆक आत्मनिभॆरतािलनी चािहए लेकि हकीकत कुछ और है ।
भारत की महिलाओं की सि्थति की असलियत को सामने लाती है यूएनओ की लैंगि समानता संबंधी रिपोटॆ । इस रिपोटॆ के मुताबि लैंगि समानता के मामले में भारत विश्व में ११३वे स्थान पर है । तस्वीर और साफ हो जाएगी अगर सीधे लफ्जों में कहा जाए िक लैंगि समानता के मामले में ११२ देशों में में महिलाओं की सि्थति भारत से बेहतर है । यह एेसा सच है जो महिलाओं की तरक्की के तमाम दावों की पोल खोलता है । अपने आसपास रोजाना घट रही घटनाओं पर नजर डालें तो लगता है िक महिला पुरुष समानता का नारा अभी खोखला ही है ।
नेशनल क्राइम रेका‍र्ड ब्यूरो के आंकडों के मुतािबक वषॆ २००६ में देश में बलात्कार के १९३४८, दहेज के लि हत्या के ७६१८, महिलाओं लडकियों के अपहरण के १७४१४, छेडछाड के ३६६१७, यौन उत्पीडन के ९९६० और पति-परिजनों की कूरूर्ता के ६३१२८ मामले दजॆ िकए गए । महिला संबंधी अपराधों की इस सि्थति के बीच कैसे तरक्की के सपने देखे जा सकते हैं । अपराधों की यह डरावनी तस्वीर आधी आबादी को हर समय आशंकि और भयभीत कि रहती है । घर की दहलीज हो या िफर खुली सडक कहीं भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं । जब तक मिहलाओं को सुरक्षा का भरोसा नहीं होगा तब तक वह कैसे पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर सकती हैं । इसके लि जरूरी है िक महिलाओं के प्रति सामाजि द्रिषटिकोण में भी बदलाव हो । यह बदलाव न होने के कारण ही कन्या भूर्ण हत्या एक बडी बुराई के रूप में उभर रही है । एक कडवा सच यह भी है िक बुराई को आगे बढाने में पढा िलखा तबका सबसे ज्यादा है । लैंगि समानता का आधार तो जन्म से ही शुरू होना चाहि । जब कन्या को जन्म देने पर दुख के बजाय सुख की अनुभूति होने लगेगी तो यह लैंगि समानता की शुरूआत होगी ।
िना भेदभाव के कन्या शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे, उन्हें अपनी मजीॆ से कैरियर चुनने की आजादी मिलेगी तो इस दिशा में अगले कदम होंगे । जब विवाह में उन्हें लडके के समान निणॆय लेने की स्वतंत्रता मिलेगी तब यह समानता का विस्तार होगा । जब वह ससुराल, रोजगार, सत्ता और आथिॆक स्वाबलंबन में उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा तब यह वास्तिवक लैंगि समानता होगी । एेसी सि्थति में वह निभीॆक होकर जीवन यापन कर पाएंगी, देश के विकास में भरपूर योगदान दे पाएंगी और उन सपनों में इंद्रधनुषी रंग भर पाएंगी जो उनकी आंखों में आकार लेते रहते हैं । इन सपनों को पूरा करने के िलए परिवार, समाज और सरकार का योगदान जरूरी है । सभी का सहयोग होगा तो सपने जरूर पूरे होंगे ।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)

Tuesday, November 4, 2008

आतंकवाद, मंदी और क्षेत्रवाद से उपजा संकट

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
आतंकवाद, मंदी और क्षेत्रवाद की समस्या ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है । पूरी दुनिया सिर्फ मंदी को झेल रही है जबकि भारत के समक्ष इसके साथ ही दो और संकट आतंकवाद और क्षेत्रवाद लोगों की परेशानी का सबब बने हुए हैं । आर्थिक संकट के साथ ही जान-माल की हिफाजत का भरोसा भी शिथिल पड रहा है । कब नौकरी पर छंटनी की तलवार लटक जाए, कब कहीं बम विस्फोट हो जाए, कब क्षेत्रवाद का दानव मौत के घाट उतार दे, किसी को पता नहीं । यह हालात अस्थिरता और तनाव की स्थितियां पैदा कर रहे हैं । हर आदमी इन समस्याओं से व्यथित है । पूरे देश में एक अजीब किस्म का खौफ का माहौल बन रहा है जो लोगों को बेचैन किए है । मौजूदा दौर में उपजी समस्याओं पर गंभीर वैचारिक मंथन की जरूरत है ताकि इनका हल निकाला जा सके ।
आतंकवाद की समस्या देश में गंभीर होती जा रही है । दहशतगर्दों ने न जाने कितने घरों के चिराग बुझा दिए हैं और अनेक लोगों को ऐसे जख्म दिए जिनकी टीस वह जिंदगीभर सहने के लिए मजबूर हैं । बीते छह महीने में देश में ६४ सीरियल ब्लास्ट हुए हैं जिनमें २१५ लोग मारे गए और ९०० घायल हो गए । जयपुर, अहमदाबाद, बंगलूरू और दिल्ली के बाद आतंकवादियों ने ३० अक्तूबर को असम को निशाना बनाया । दहशतगर्दों ने गुवाहाटी, कोकराझार, बोंगाइगांव और बरपेटा में भीडभाड़वाले बाजारों में १३ सिलसिलेवार धमाके कर ६१ लोगों को मौत की नींद सुला दिया । विस्फोट में ४७० लोग घायल हुए हैं । वर्चस्व जाहिर करने के लिए अंजाम दी गई इस सनसनीखेज वारदात में शक की सुई हूजी आतंकियों की ओर है।
इस समय पूरी दुनिया एक गंभीर संकट से गुजर रही है । मंदी की मार ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है । मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों के उद्यमी भी अपने यहां नौकरियों में कटौती करने के मजबूर हैं । अमेरिका में मंदी की सुनामी ने जो तबाही मचाई है उससे भारत भी अछूता नहीं है । एसोचेम की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक सात प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में आगामी १० दिन में २५ फीसदी कर्मचारियों की छंटनी की आशंका है हालांकि बाद में यह रिपोर्ट वापस ले ली गई । बेरोजगारी की समस्या झेल रहे इस देश में मंदी से उपजी बेरोजगारी नई पीढी में हताशा और मायूसी ही लाएगी । कैरियर को लेकर जो सपने उन्होंने देखे हैं, उन पर ग्रहण लगता प्रतीत हो रहा है । ऐसे में उनके समक्ष चुनौतियां और बढ़जाएंगी । जटिल परिस्थितियों में कैरियर को आकार देना और अपने सुखद भविष्य की जमीन तैयार करना निसंदेह आसान काम नहीं है । नई पीढ़ी को एक नए उत्साह और दृढ संकल्पशक्ति के साथ शिक्षा और कैरियर से जुडे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए मेहनत करनी होगी । अभिभावकों और शिक्षकों को उनका मार्गदर्शन करना होगा ।
मंदी के संकट के संग ही देश में क्षेत्रवाद ने गंभीर स्थिति पैदा कर दी है । पिछले कुछ अरसे से मराठी क्षेत्रवाद के नाम पर मुंबई में जिस तरह उत्तर भारतीयों की हत्या की जा रही है, वह बहुत खतरनाक संकेत हैं । सपनों की नगरी मुंबई में जाने का ख्वाब पूरे देश के लोग देखते हैं । अभिनय, नाटक और विविध क्षेत्रों में अपनी प्रतिभाओं से लोगों को आकर्षित कर रहे लोग मुंबई जाकर नाम और पैसा कमाना चाहते हैं । देश की आर्थिक राजधानी होने के नाते मुंबई में रोजगार के व्यापक अवसर उपलब्ध हैं । रोजगार की तलाश में बडी संख्या में लोग मुंबई जाते हैं । मुंबई के भी लोग नौकरी अथवा अन्य व्यवसायों को करने के लिए देश के विविध भागों में जाकर अपनी किस्मत चमकाते है ं। देश में रोजगार के लिए अगर क्षेत्रवाद की दीवारें खींच दी जाएंगीं तो लोगों को आजीविका जुटाने में बडी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा । इसलिए क्षेत्रवाद पर अंकुश लगाना जरूरी है।
(इस लेख को अमर उजाला कॉम्पैक्ट मेरठ के ३१ अक्तूबर २००८ के अंक में संपादकीय पृष्ठ पर भी पढा जा सकता है)
(फोटो गूगल सर्च से साभार)