Sunday, October 12, 2008

सुरक्षा ही नहीं होगी तो कैसे नौकरी करेंगी मिहलाएं

-डॉ अशोक प्रियरंजन
छह अक्टूबर को इस ब्लाग में िलखे अपने- लेख िकतनी लडाइयां लडंेगी लडिकयां -पर जो कमेंट्स आए, उन्होंने मेरे सामने कई सवाल खडे कर िदए । इन सवालों पर वैचािरक मंथन करने पर लगा िक यह िवषय अभी और िवस्तार की संभावना िलए हुए है । इस पर सार्थक बहस की गुंजाइश है । एक सवाल यह भी आया की क्या कामकाजी परिवेश महिलाओं के लिए अनुकूल है ? आज महिलाओं का शैक्षिक स्तर और रोजगार के अवसर बढे हैं, लेकिन कामकाजी परिवेश सुरक्षित नहीं है घर की चारदीवारी से बाहर निकलते ही महिलाओं को सुरक्षा की चिंता सताने लगती है । एसोचैम के ताजा सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश की ५३ फीसदी नौकरीपेशा महिलाएं खुद को असुरक्षित मानती हैं । ८६ प्रतिशत नाइट शिफ्ट में आते-जाते समय परेशानी महसूस करती हैं । बीपीओ, आईटी, होटल इंडस्ट्री, नागरिक उड्डयन, नर्सिंग होम, गारमेंट इंडस्ट्री में लगभग ५३ प्रतिशत कामकाजी महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं । देश की राजधानी दिल्ली तक में ६५ फीसदी महिलाएं खुद को महफूज नहीं मानतीं हैं । बीपीओ तथा आईटी सेक्टर की महिलाओं को इसका सबसे ज्यादा खतरा सताता है । नर्सिंग होम और अस्पतालों में रात में काम करने वाली ५३ प्रतिशत महिलाओं को भी हर वक्त यही चिंता रहती है । ऐसी हालत में महिलाओं का पुरुषों के समान काम करने का सपना कैसे पूरा होगा । सच यह है की जब तक कर्येस्थालों पर सुरक्षा नहीं होगी, महिलाएं पूरे आत्मविश्वास के साथ नौकरी नौकरी नहीं कर पायेंगी ।
वास्तव में भारतीय समाज में महिलाओं का संघर्ष बहुत व्यापक है । इसकी अभिव्यक्ति ब्लॉगर के कमेंट्स से भी होती है । निर्मल गुप्त ने लिखा की इस लेख से सार्थक बहस की शुरुआत हो सकती है । इस बारे ें राधिका बुधकर का मानना है की यह समस्या समाज की हैं । स्त्री जो भी भुगत रही हैं वह संपूर्ण समाज की दुर्बल मानसिकता का परिचायक हैं । कुछ प्रबुद्ध पुरूष वर्ग स्त्री के विकास के लिए प्रयत्न कर रहा हैं ,किंतु यह नाकाफी हैं । स्त्री का जीवन तभी बदलेगा ,जब वह खुद इस दिशा में प्रयत्न करेगी । आखिर मुसीबते उसकी ही मंजिलो में रोड़ा बनकर खड़ी हैं । कुछ स्त्रियाँ ऐसा कर भी रही हैं ,किंतु कुछ के प्रयत्न करने से बहुत कुछ स्त्री विकास की आशा नही की जा सकती । सर्वप्रथम स्त्री को ही यह समझना होगा की उसे किस दिशा में व कैसे प्रयत्न करने हैं । उसे सामाजिक व आर्थिक दोनों क्षेत्रो में मजबूत होने के साथ ही ऐसे छेडछाड़ करने वाले लडको को दो थप्पड़खींच के देने हिम्मत भी करनी पड़ेगी । अगर लडकियों ने ऐसा करना शुरू किया तो इस तरह के लडको की हिम्मत भी नही रहेगी ऐसा करने की ।
समीर लाल (उड़न तश्तरी ) की राय में निश्चित ही इस दिशा में बदलाव आया है और अनेक बदलावों की आशा है । रचना ने तो ब्लागरों को ही आलोचना की । उनका कहना है की हिन्दी ब्लोगिंग मे कुछ गिने चुने ब्लॉगर ही हैं जो महिला आधारित विषयों पर महिला के दृष्टिकोण को रखते हैं । यहाँ ज्यादातर ब्लॉगर केवल और केवल एक रुढिवादी सोच से बंधे हैं जो महिला को केवल और केवल घर मे रहने वाली वास्तु समझते हैं । फिरदौस खान कहती हैं की हैरत की बात तो यह है कि पढ़े-लिखे लोग भी यह समझते हैं कि लड़किया कुछ नहीं कर सकतीं... हमारे ही ब्लॉग को कुछ ब्लोगर किसी पुरूष का ब्लॉग मानते हैं... क्या किसी लडकी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार नहीं है...? अनिल पुसादकर के अनुसार लडकियों को वाकई हर मोर्चे पर लडना पड रहा है । घर के बाहर भी और भीतर भी । वंश बढाने वाली बात भी अब गले नही उतरती । आश्रमों मे जाकर बुजूर्गों को देखो तो लगता है की एक नही चार पुत्र होने के बाद ये यंहा रहने पर मज़बूर हैं तो ऐसे पुत्रों का क्या फ़ायदा । उनसे तो बेटियां हज़ार गुना अच्छी हैं । जाकिर अली रजनीश कहते हैं की यह लडाई सिर्फ लडकियों की नहीं, मानसिकता की है । और ऐसी लडाइयों के लिए कभी कभी सदिया भी नाकाफी होती हैं । लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि लडाई छोड दी जाए । ध्‍यान रखें कि लडाई जितनी कठिन हो, मंजिल उतनी आनंददायक होती है ।
रक्षंदा का मत है की ये लड़ाई सदियों से चलती आरही है और अभी जाने कब तक चलती रहेगी क्योंकि मंजिल अभी काफी दूर है..लेकिन हौसले हैं की बढ़ते जारहे हैं...और जब साथ इतने मज़बूत हौसले हों तो मंजिल देर में सही, मिलती जरूर है... डॉ अनुराग मानते हैं की हौसलों के लिए कोई बंधन नही ......ऐसी कितनी लडकिया अनसंग हीरो की तरह रोजमर्रा के जीवन में अपनी लड़ाई लड़रही है । ज्ञान का कहना है की समस्यायें तो सभी जगह और सभी को है, लड़कियाँ उनसे अलग नहीं हैं । हाँ उनकी श्रेणी ज़रूर अलग है ।
प्रीती बर्थवाल के मुताबिक कि 'कदम कदम पर एक नई लङाई का सामना करना पङता है लङकीयों को । बदलाव की उम्मीद करते ही रहते है लेकिन कब तक होगा? कुछ बदलाव हुए है लेकिन वहां भी ऐसों की कमी नही होती जो राह में रोङे न अटकाते हों । सरीता का कहना है की संचार क्रांति के इस युग में मोबाइल जैसे उपकरणों ने समाज को बहुआयामी साधन मुहैया कराए हैं , लेकिन गैर ज़िम्मेदार तौर - तरीकों ने इस बेहतरीन संपर्क साधन को घातक बना दिया है । महिलाओं की तरक्की को रोकने की ये बेहूदा हरकतें कामयाब नहीं होंगी ।
रेनू शमा का मानना है िक इस तरह के लेख पढकर लगता है िक नारी की आवाज भी कोई सुन सकता है । तरूण का कहना है िक न जाने िकतनी लडिकयां हर रोज लडाइयां लडती हैं । शैली खत्री के मुतािबक लडिकयों के लडिकयों के मामले में बहुत कुछ सुधरा है पर अभी कई मोरचे जीतने बाकी हैं । इसमें समय लगेगा। क्योंिक कुछ बदलाव हर जगह समान रूप से नहीं हुआ है। ज्योित सराफ की राय में आज तो आलम यह है िक मिहला मुसीबतों की परवाह िकए िबना अपने लक्षय को पाने के िलए आगे बढ़ रही है । वहीं पुरुष अपनी झूठी शान बचाने के िलए प्रयत्नशील है । शोभा, सीमा गुप्ता, हिर जोशी, प्रदीप मनोिरया और सिचन िमश्रा ने भी लडिकयों के संघर्ष को रेखांिकत िकया ।
वास्तव में इसमे कोई दो राय नहीं िक िस्थितयां सुधरी हैं लेिकन अभी काफी कुछ सुधार की गुंजाइश है । मिहलाओं के संघर्ष को सार्थक बनाने के िलए केवल सरकार ही नहीं बिल्क समाज के िविवध वर्गों को भी प्यास करने होंगे । तभी वह पूरे सम्मान, िनभीॆकता और आत्मिवश्वास के साथ देश के िवकास में अपना योगदान दे पाएंगी
बहस के मुद्दे- इस मुद्दे पर बहस के िलए कई सवाल उभरकर सामने आए हैं िजन पर वैचािरक मंथन िकया जाना जरूरी है । इन सवालों पर बुिद्धजीिवयों की राय अपेिक्षत है-
१-छेडछाड से लडिकयां और मिहलाएं कैसे िनबटें ।
इसकी रोकथाम के िलए क्या उपाय और िकए जाने चािहए ।
२-काजकाम का पिरवेश अनुकूल बनाने के िलए क्या प्रयास िकए जाने चािहए ।
३-मिहलाओं की िस्थित सुधारने के िलए सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं ।
४-समाज के दृिष्टकोण में िकस तरह के बदलाव की उम्मीद की जानी चािहए ।
(फोटो गूगल सर्च से साभार )

33 comments:

रंजन राजन said...

अशोक जी बढ़िया है। इस पर सार्थक बहस की गुंजाइश है।
आवाज बुलंद करते रहिए। आधी आबादी आपको दुआ देगी।
वैसे रात में काम करने वाले सभी को सुर&ा मिलनी चाहिए। वरना काम के १२ घंटे यूं ही व्यर्थ जाएंगे और देश काफी पीछे चला जाएगा।

सचिन मिश्रा said...

kamkaju mahilaoin ki suracha to bahut jaruri hai.

Vivek Gupta said...

अशोक जी आप का लेख पड़ कर प्रसन्नता हुई । मुझे लगता है सभी नारियों को अपनी लडाई विभिन्न मंचों से लड़नी चाहिए । सब चलता है का आदर्श वाक्य छोड़ना चाहिए । जो भी मंच शिकायत के लिए उपलब्ध हैं उन पर शिकायत करनी चाहिए । अपने समान विचारों के और संगठन बनाने चाहिए ।

Anonymous said...

प्रिय इस पर सार्थक बहस शुरू हो सकती है और तुम्‍हारा ब्‍लाग इसके लिए आदर्श मंच हो सकता है क्‍योंकि महिलाओं की लड़ाई किसी पुरूष के मंच से ही शुरू होनी चाहिए और आपमें सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता नजर आ रही है।

Anil Pusadkar said...

अच्छी् और सार्थक पहल है,इसे जारी रहना चाहिये।महिलाओं से पुरूष का भी नाता है,सबसे पहले वो उसकी मां है और उसके बाद बहुत से रिश्ते हैं। इस पहल के लिये आपको बधाई।

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत अच्छा विषय है...

Rachna Singh said...

@ irdgird
महिलाओं की लड़ाई किसी पुरूष के मंच से ही शुरू होनी चाहिए

shyaad nahin haan mahila ki ladaaii ki charcha koi bhi manch kar saktaa haen
jis ki ladaaii haen ladna bhi usko hi hoga

डॉ .अनुराग said...

खरी बात !

art said...

यह तर्क थोड़ा अलग तो है...किंतु इस पर एक बार चिंतन करें.....रात ग्यारह बजे अगर कोई लड़की काम से लौट रही है,सुनसान बस स्टाप पर उसे कोई लड़कों का झुंड छेड़े और वह खीच के उसे २ थप्पड़ मार दे....आप को क्या लगता है , वो लड़का डर कर अपने साथियों के साथ वहां से भाग जाएगा या कुकर्म करने की उसकी हिम्मत बदला लेने की भावना के साथ और प्रबल हो जायेगी ? .....ऐसी स्तिथि में कोई पुलिसवाला दिख भी जायें....तो वह क्या करेगा ? ज्यादातर वो भी उसी लड़के की तरह गरिमा को भुला देगा...ऐसी स्तिथि में वह लड़की अकेली क्या नारी गौरव-गाथा गायेगी या मोर्चा निकालने की धमकी देगी.....यहाँ सिर्फ़ नारी की हिम्मत बढ़ाने की बात मत कीजिये.....थोडी पुरूष-मानसिकता बदलाव की भी चर्चा कीजिये..... जो इसका मूल कारन है.....

PREETI BARTHWAL said...

अशोक जी आप ने जो बहस छेङी है वह है तो अच्छी लेकिन ये ऐसी बहस है जिनका खत्म होना मुश्किल है।
ब्लॉग जगत में भी ऐसे कई ब्लॉगर है जिनका मानना ये है कि महिला ब्लॉगरस की पोस्ट सिर्फ इसलिए पढ़ी जाती है क्योंकि वो महिला हैं,इसका क्या अर्थ है? क्या ऐसे लोगों को दिमागीतौर पर संकुचित कहा जा सकता है?

sarita argarey said...

महिलाओं के लिए स्वतंत्रता की नहीं बल्कि स्वाव्लंबन की ज़रुरत है ।बेहतर होगा कि आत्म निर्भर बनने के लिए महिलाएं स्वयं प्रयास करें ।मुझे लगता है कि महिलाओं ्को सरकारी टेके की कोई दरकार नहीं । अपने अस्तित्व को समझते ही स्त्री संभावनाओं के आकाश में उडान भर सकेंगी ।
- सरिता अरगरे http://sareetha.blogspot.com

शोभा said...

मेरे विचार से नारी को स्वयं को बलवान बनाना होगा. अपनी लड़ाई वेह किसी की मदद के बिना भी जीत सकती है. उसमें अपार शक्ति है. कमी केवल उसके भीतर छिपे आतम विश्वास की है.

रंजना said...

१-छेडछाड से लडिकयां और मिहलाएं कैसे िनबटें । इसकी रोकथाम के िलए क्या उपाय और िकए जाने चािहए ।

-- लड़कियां,महिलाएं अपने पहनावे पर पूरा ध्यान दें.ऐसे वस्त्र बिल्कुल न पहने जिससे अंग प्रदर्शन की गुंजाईश हो या लड़कों/पुरुषों में बर्बर प्रवृत्ति पुष्ट हो.निर्जन स्थानों पर कुसमय में आने जाने से बचें.कार्यस्थल पर छेड़ छाड़ मनोवृत्तियों वाले से सख्ती से निपटें.स्त्रियाँ आपस में एकजुट होकर रहें और किसी एक के साथ किए दुर्व्यवहार के लिए संगठित हो प्रतिरोध करें. साथ ही उन महिला सहकर्मी का भी विरोध करें जो अपने तरक्की और फायदे के लिए उच्च पदासीन पुरुषों के समक्ष ख़ुद को परोसती हैं.रात की शिफ्ट के बाद यदि घर आना जाना हो तो अपनी कंपनी से पर्याप्त सुरक्षा की मांग करें और अस्वस्त होने पर ही इस तरह की सेवाओ के लिए प्रस्तुत हों.अपरिचितों के द्वारा किए गए दुर्व्यवहारों या दुर्घटनाओं से बचना कठिन है,परन्तु यदि अपना इमेज ऐसा बना कर रखा जाए कि परिचितों में सामने वाले को आभास रहे कि उक्त महिला किसी भी किस्म के उल जूलूल हरकतों को बर्दास्त करने वाली नही तो इससे बहुत हद तक बचाव हो सकता है.

२-काजकाम का पिरवेश अनुकूल बनाने के िलए क्या प्रयास िकए जाने चािहए ।

---- उक्त जो बातें कही गई हैं,उसके साथ साथ संस्थाओं में यदि छेड़ छाड़ सम्बंधित कठोर दंड विधान स्पष्ट रहे तथा उन दंड विधानों पर अमल भी हो तो महिलाओं के लिए सुरक्षा और पुख्ता होगी.

३-मिहलाओं की िस्थित सुधारने के िलए सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं ।

---- महिलाओं की रक्षा और सुरक्षा के लिए वर्तमान में सहूलियतों की कमी नही पर व्यवहारिक रूप में वे पूर्णतः उतर इसलिए नही पाते क्योंकि पुलिस,समाज और विशेषकर बहुत हद तक स्त्रियों में ही वह इच्छा शक्ति नही कि उन्हें व्यावहारिक रूप में अमल में लाया जाए.इसलिए इसमे सरकार भर के चाहने से बहुत कुछ नही हो सकता.

४-समाज के दृिष्टकोण में िकस तरह के बदलाव की उम्मीद की जानी चािहए ।

---- समाज का दृष्टिकोण बहुत तेजी से बदल रहा है और उम्मीद रखनी चाहिए कि सकारत्मक नजरिये से कुछ ही वर्षों में इसमे आमूल बदलाव होंगे.उदाहर के लिए हम देख सकते हैं कि बहुत पुराणी बात नही जब पिछडी जाति वालों को अस्पृश्य,अयोग्य और घृणित मन जाता था,पर आज बहुत हद तक सत्ता की बागडोर इन्ही पिछडी जाति के हाथों है. जिस तरह से स्त्रियाँ हर कदम पर अपनी योग्यता सिद्ध करती जा रही हैं,बहुत दिन नही लगेंगे उनकी महत्ता स्थापित होने में.फ़िर भी अभी गावों में,पिछडी जातियों में ,मुसलमानों में तथा निम्न वर्गीय समाज में स्त्रियों को शिक्षित करने की दिशा में बहुत कुछ करना है.शिक्षा अपने आप बहुत कुछ बदल देगी.और इसके लिए जितना पुरुषों को आगे आना है उस से अधिक महिलाओं को आगे आना होगा.क्योंकि अभी जो शिक्षित स्त्रियाँ हैं और धनार्जन कर रही हैं वे अपने स्त्री समुदाय के लिए कुछ करने के बजाय अपने भौतिक सुख सुविधाओं के लिए ही धन व्यय करती हैं,अपने समाज के उत्थान की तरफ़ उनका ध्यान शायद ही जाता है.

मेरा मानना है कि स्त्रियों की दशा सुधरने में जितना कुछ पुरुषों को करना है उससे बहुत अधिक स्त्रियों को करना है.

रंजना said...

स्वाति जी के बातों से मैं पूर्ण सहमत हूँ.

प्रदीप मानोरिया said...

सार्थक आलेख बहुत बहुत बधाई मेरे ब्लॉग पर पधारने का धन्यबाद अपना आगमन नियमित बनाए रखे और मेरी नई रचना कैलेंडर पढने पधारें

shelley said...

ladkio ko sabse pahle majbut banna hoga. abla ki jo upadhi use di gai hai, use jhatakna hi hoga. tavi mahilao ka samman surkshit rah sakega. chhed chhad ki ghatna aaye din hoti hai. isse bachne k liye mahilao ko pratikar karne oe palat kar muhtor jawab dene ki aadat dalni hogi. chhed chhad ko sadharn ghatna ki tarh chhodne ki aadat hatani hogi. or ek aham baat yah hai ki mahilao ko yah maan kar apne man ko taiyar rakhna hoga ki unki sahayata karne koi nahi aayega.apni madad or raksha khud karni hogi bas itna than lene k baad to koi unka baal v baanka nahi kar payega. yetay hai.aapna har hak lena v mahilao ko aana chahiye bhale hi chhin kar lena pade.

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

sarkaar se apeksha na hii karen to behtar hoga. ladkiyon ko is baat par ki unke sath kisii bhii chhedchhad par we apne pita-bhai aadi ka sahara lengii ko chhod kar ek TAMACHA, THAPPAD manchalon par raseed karaa jaaye to bas sab samasyaa ka samadhan.........
Jab tak ladkon men ye dar paida nahin hoga ki ye LADKII apne pita-bhai ko nahin laayegii varan khud hi niptaa degii tab tak ye sab chaltaa rahega......

कडुवासच said...

सार्थक प्रयास है।

kavitaprayas said...

जब तक कानून सही तरीके से लागू नहीं किया जाएगा , इस "विषय" पर काबू पाना मुश्किल होगा | आज की काम काजी महिला को भी स्वयम रक्षा के लिए शारीरिक एवं मानसिक रूप से तैयार होना होगा | बहनों...डरने के दिन गए ... जो होगा अब देखा जाएगा ... सबका रब राखा |
आपकी,
अर्चना

श्रुति अग्रवाल said...

बहुत पहले चोखेर बाली में भी कुछ ऐसी ही बहस चली थी. तब भी मेरा यही मानना था अब भी मेरा यही मानना है कि हम लड़कियाँ स्वयं ही अपनी सुरक्षा कर सकती हैं। पहले पिता, फिर भाई उसके बाद पति के संरक्षण में ही महिलाएँ सुरक्षित रहती हैं अब यह अवधारणा बदलने का वक्त आ गया है। मैं कई बार देर रात तक काम करती हूँ। अकसर अकेली घर जाती हूँ। लेकिन बचपन से ही मेरे माता-पिता ने मुझे अपने बल पर जीना सिखाया...मुसीबत से लड़ना सिखाया है। चौकस रहो, यह बताया है कि हादसे हो ऐसी परिस्थिति उत्पन्न ही नहीं होने दो। साथ ही यह भी समझाया है कि जीवन चलने का नाम है । यदि कोई गलत हादसा हो तो उसे भूल आगे बढ़ते जाओ। यह जज्बा दिया है कि न तो लड़किया काठ की हांडी है और न ही किसी के हाथ की कठपुतली। यह जज्बा मुझे ही नहीं बल्कि मेरी कम्प्यूटर प्रोफेशनलिस्ट बड़ी और डाक्टरी कर रही छोटी बहन को दिया गया है। मुझे लगता है अब हमारे समाज को भी यही सोचना होगा। हम मानते हैं कि यदि कुछ गलत हो गया तो लड़की की इज्जत का क्या होगा। क्यों भई क्या लड़की की इज्जत और गौरवभान सिर्फ उसके शरीर से जुड़ा है। आत्मा की सच्चाई और दिमाग की शक्ति कोई मायने नहीं रखती। इसलिए अपनी सुरक्षा खुद कीजिए ....बाहर निकलिए आसमां को एक बार निहारिए अपने पंख फैलाइए और उड़ जाइए..इस आसमां को फतह करने के लिए।

mamta said...

saarthak prayaas .

RADHIKA said...

maf kijiyega swati ji aapne meri bat puri tarah se samjhi nahi,sunsan bus stop par raat ko ladki thppd mare esa main nahi kah rahi hun har bat ko karne ke tarike hote hain ,un badmash ladko ke khilaf subah polic me darkhast ki jaa sakti hain ,ya kisi apne bhai ya mitr se unhe pitvaya bhi ja sakta hain .shabdsh: arth samjhne se puri bat nahi samajh aati ,Aap pls meri bat ka bhavarth samjhe .

Renu Sharma said...

ranjn ji , bahut shukriya .

P.N. Subramanian said...

लड़ाई तो लंबी चलेगी और महिलाओं को मजबूत होना ही होगा. मानसिकता में परिवर्तन भी धीरे धीरे ही आएगा.

प्रदीप मानोरिया said...

आपको फ़िर से एक बार आमंत्रण मेरी नई रचना हैण्ड वाश दे पढने हेतु
कृपया पधारें

shama said...

Aapke nimantranpe aayee hun. Baaqee comments bhee padhe. Han, ye sach hai ki aurtonko khaskar jo raatme kaam kartee hain, mushkilonse saamna karnaahee padta hai.Par yaad karo us Surybalako( Mumbai kee durghatna,jo local trainme ghatee thee...kuchh 4 saal pahle),din dahade tranme uskaa purse khhenchnekee koshish kee gayee. Usne pratikaar kiya aur localke darwazemese use us kambakhne trackspe dhakel diya.Wo ghanton wahan padee rahee...aaspaas colonies thee...log/aurtebheen dekh rahe the..koyee aage nahee badha...balik kuchh aurton ne uspe baltee bhar bhar paanee fenka! Gar use samay rehte koyi madat karta to uske pai katnese bachtee. Jab dibbeme wo sangharsh kar rahee thee, tamam mahilayen aur purush sirf dekhte rahe...wo gir gayee, phirbhee kiseene chain nahee kheenchee...khud Surybalane baadme kaha,"Mai aajbhee achambhit hun ki mujhpe paanee kyon fenka un aurtone?"Ek guzarte police karmeene use madat kee aur hospital pahuchaya.Kamse kam uskee jaan bachee...Yahan to mujhe dibbeki aurtonse gilaa hai..
Kya sab musafir itne nirbal the??
Ham kis surakshit taake baat kar rahen hain, jab aksar napunsak log saamne aate hain!!Mahilaayonka rakshan kaun karega...aise darpok, napunsak log?
Ye to maine sirf ek pehloo rakha hai.

shama said...

Abhi, abhi ek comment kiya...mai yabhee kahungee ki ham sirf maholaake sharirik surakshakee baat karte hain...agar use balatkaarkaa samna karna padtaa hai to use ek apghat na manke, uske shareerko apavitr man lenepe majboor ho jaate hain...uskee atmaa to shuddh hai...aisa vichar karke phir dosheeko pakdnekee koshish kee janee chahiye.
Gharonme rehtee aurtonkee rhiday aur atmaako pal, pal ghayal kiya jaataa hai, us surakhakee kya baat karen...yahan to koyi suraksha nahee...!Mahila swawlambit ho jaye aur samaj is drushtikon ko badal de ki, uske shareeke saath chhedchhad ho jaye to uspe bahishkar na dalen...naahee awaz uthanme hichkichayen....Samaj na badle to ladkiyon ne khud ye sonch lena chahiye ki unki ruh zyada qeematee hai, shareerke banisbat...

parul said...

nice sir

निर्मल गुप्त said...

bahas ki shuruvat theek thaak hai. kripya smasya ka itna sarlikaran na karean.sexual charm ka baiza istaimal ko to roknay kay litay
pahal khud mahilon ko hi karni hogi.

L.Goswami said...

स्वाति जी की टिप्पणी को यहाँ हु -ब -हु टिप लें ..जो मुझे कहना था उन्होंने कह दिया है

jamos jhalla said...

Ashok ji mahilaon ki suraksha ke liye aapne jo yeh ashok chakrachalaya hai veh sarahniya hai.Mere vichar main desh ki aadhi aabaadi ko suraksha pradaan karna kisi bhi soorat main practical nahin hoga.Isi liyeinhen self confident,Reliable And self defending banane ke liye charcha prarambh karni hogi.
Imay please be allowed to INVITE you and like minded to go through my views AT http://jhallevichar.blogspot.com/

Unknown said...

aati sundar ........

shama said...

Khoob achha warta laap chal raha hai...!
Main phir ekbaar dohran dun ki hame ek aisa watawaran chahiye jahan, mahilayonke manbhee surakshit hon...shareer ke ghav to dikhaye jaa sakte han...manke nahee...!Ye kaam stree aur purush donoko milke karna hai.
Sansaar roopee rathke do pahiye...ek chhota,ek bada kaise ho sakta hai? Ek aage wk peechhe kaise ho sakta hai?