Monday, October 6, 2008

कितनी लडाइयां लडेंगी लडकियां

-डॉ. अशोक़प्रियरंजन
मेरठ के सरधना क्षेत्र के वपारसी केे ग्रामीणों ने पंचायत के बाद जो फैसला लिया वह यह सवाल खडे करता है कि लडकियों को अपनी जिंदगी की राह में तरक्की के फूल खिलाने के लिए कितनी लडाइयां लडऩी होंगी । कॉलेज पढऩे जाते समय वपारसी की एक लडकी के कुछ छात्रों ने मोबाइल से फोटो खींच लिए थे । इसी बात से आहत होकर वपारसी के लोगों ने गांव में पंचायत की और साफ कहा कि माहौल सुधरने पर ही छात्राओं को कॉलेज भेजेंगे । छेडछाड की समस्या वास्तव में इतनी गंभीर हो गई है कि उसे बहुंत गंभीरता से लेना जरूरी है । अभी थोडे दिन पहले ही मेरठ में विदेशी युवती से बस में छेडछाड़की घटना ने जिले को शर्मसार किया । मेरठ में कई बार लडकियों के लिए कॉलेज आना जाना बहुत तकलीफदेह साबित होता है क्योंकि उन्हें कई बार मनचलों की छेडछाड़और अभद्र टिप्पणियों का सामना करना पडता है । इसी मेरठ शहर में छेडछाड़का विरोध करने पर युवती के ऊपर तेजाब डालने तक की घटना हुई है । मेरठ में वर्ष २००७ में छेडछाड़की १३६ घटनाएं दर्ज हुईं । छेडछाड़की घटनाओं की एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि लोकलाज के कारण बहुत बडी संख्या में ऐसे मामलों की रिपोर्ट ही दर्ज नहीं कराई जाती है । इस कारण मनचलों के हौसले बुलंद रहते हैं । लडकियों की घटती जनसंख्या ही बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है । ऊपर से ऐसी घटनाएं उनकी तरक्की में बाधा बन जाती है । उन्हें हर कदम पर आगे बढऩे के लिए संघर्ष करना होता है ।
वंश को आगे बढाने के े लिए लडके के प्रति मोह की मानसिकता, दहेजप्रथा जैसी बुराइयां समाज में प्रचलित होने के कारण कन्या भ्रूण हत्या के मामले बढ़ रहे हैं । कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए भी पुख्ता व्यवस्थाएं नहीं हैं । इसी का नतीजा है कि मेरठ में एक हजार लडकों के मुकाबले लडकियों की संख्या ८५७ रह गई है । लडकियों के जन्म के बाद ही उनकी लडाई शुरू हो जाती है । भारतीय परंपरागत समाज में अभी भी लडका-लडकी का भेद बहुत गहराई से अपनी जडें जमाए हुए है । शिक्षा और विकास की तमाम स्थितियों के बाद भी लडकियों के साथ भेदभाव अभी खत्म नहीं हो पा रहा है । खासतौर से ग्रामीण अंचलों में यह समस्या गंभीर है । इसी कारण गांवों में अनेक लडकियां शिक्षा से वंचित रह जाती हैं । कई बार मां-बाप पढाना भी चाहें तो गांव में विद्यालय नहीं होते और दूसरे गांवों में वे उन्हें पढऩे नहीं भेजते । किशोरावस्था में भी उन्हें कदम कदम पर लडकी होने का अहसास कराया जाता है और इस कारण उन पर अनेक बंधन भी लगाए जाते हैं ।
उच्च शिक्षा ग्रहण करने में भी कई बार उन्हें अपनी इच्छाओं को तिलांजलि देकर परिजनों की इच्छा के अनुरूप राह चुननी होती है । कन्या महाविद्यालयों की कमी के चलते लडकियों को कई बार पढाई के सही अवसर नहीं मिल पाते हैं । कैरियर को लेकर भी उन्हें पूरी स्वतंत्रता नहीं मिल पाती है । रोजगार के कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें उनके े लिए कम अवसर होते हैं । जहां वह रोजगार पा लेती हैं, वहां भी उन्हें लडकी होने के नाते असुरक्षा का बोध होता रहता है । दफ्तरों में भी स्त्री पुरुष भेद की मानसिकता के कारण महिलाओं को असुविधा होती है । यही स्थिति विवाहके ामले में रहती है । विवाह के सम्बन्ध में स्वतंत्र निर्णय लेने की स्थिति लडकी की नहीं रहती है । उसकी जिंदगी का फैसला परिवार के लोग करते हैं । जीवन साथी के चयन में आजादी न मिलने के कारन कई बार उन्हें त्रासदी का सामना करना पडता है।
यह बहुत सुखद है कि इन तमाम लडाइयों को लडकर भी लडकियां तेजी से आगे बढ़रही हैं । हाल ही में घोषित उत्तराखंड न्यायि। सेवा सिविल जज (जूडि) के परिणाम के मुताबिक मुजफ्फरनगर के कांस्टेबल की बेटी ज्योति जज बन गई है । इसी मेरठ शहर की अलका तोमर ने कुश्ती, गरिमा चौधरी ने जूडो, आभा ढिल्लन ने निशानेबाजी, दौड़में पूनम तोमर ने विश्वस्तर पर महानगर का नाम रोशन किया है । लेकिन अगर लडकियों को समस्याओं से मुक्ति दिला दी जाए तो वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कामयाबी की नई इबारत लिख सकती हैं ।

( अमर उजाला काम्पैक्ट , मेरठ के अक्टूबर २००८ के अंक में प्रकाशित )
( फोटो गूगल सर्च से साभार )

21 comments:

Udan Tashtari said...

आभार इस आलेख को यहाँ प्रस्तुत करने का. निश्चित ही इस दिशा में बदलाव आया है और अनेकों बदलावों की आशा है.

Anonymous said...

डॉ. अशोक़प्रियरंजन
हिन्दी ब्लोगिंग मे कुछ गिने चुने ब्लॉगर ही हैं जो महिला आधारित विषयों पर महिला के दृष्टिकोण को रख ते हैं . यहाँ ज्यादातर ब्लॉगर केवल और केवल एक रुढिवादी सोच से बंधे हैं जो महिला को केवल और केवल घर मे रहने वाली वास्तु समझते हैं . आप नए एक अच्छा आलेख प्रस्तुत किया . और ब्लोग्स पर भी कमेन्ट करे जहाँ लोग आज भी उसी दकियानूस सोच से पीड़ित हैं
सादर

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत अच्छा विषय है... हैरत की बात तो यह है कि पढ़े-लिखे लोग भी यह समझते हैं कि लड़किया कुछ नहीं कर सकतीं... हमारे ही ब्लॉग को कुछ ब्लोगर किसी पुरूष का ब्लॉग मानते हैं... क्या किसी लड़की को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार नहीं है...? खैर...हमने अपने ब्लॉग में आपके ब्लॉग का लिंक दिया है...

Anil Pusadkar said...

समाज की वास्तविक स्थिती को सामने ला दिया आपने। लडकियों को वाकई हर मोर्चे पर लडना पड रहा है। घर के बाहर भी और भीतर भी।वंश बढाने वाली बात भी अब गले नही उतरती आश्रमों मे जाकर बुजूर्गों को देखो तो लगता है की एक नही चार पुत्र होने के बाद ये यंहा रहने पर मज़बूर हैं तो ऐसे पुत्रों का क्या फ़ायदा। उनसे तो बेटियां हज़ार गुना अच्छी हैं।

admin said...

यह लडाई सिर्फ लडकियों की नहीं, मानसिकता की है। और ऐसी लडाइयों के लिए कभी कभी सदिया भी नाकाफी होती हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि लडाई छोड दी जाए। ध्‍यान रखें कि लडाई जितनी कठिन हो, मंजिल उतनी आनंददायक होती है।

rakhshanda said...

ये लड़ाई सदियों से चलती आरही है और अभी जाने कब तक चलती रहेगी क्योंकि मंजिल अभी काफी दूर है..लेकिन हौसले हैं की बढ़ते जारहे हैं...और जब साथ इतने मज़बूत हौसले हों तो मंजिल देर में सही, मिलती ज़रूर है...

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ हौसलों के लिए कोई बंधन नही ......ऐसी कितनी लड़किया unsung हीरो की तरह रोजमर्रा के जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रही है

Renu Sharma said...

DR. Ashok ji , shukriya mere blog tak aane ke liye .
stree ke mrm ko uthne ke liye bhi shukriya .
is tarh ke lekh padkar lagta hai ki naari ki aawaj bhi koi sun sakta hai .
shukriya

Tarun said...

Aise Ladko pakar ke do jamane chahiye, Police ko chahiye ki thori shakti barte. Jab bhi chuttiyon me Meerut jaata hoon kahin koi police wala gast karta nazar nahi aata. Bus kisi chauk me kursi daal baith jaate hain. Aisi na jaane kitni ladkiyan hai jo har roj ye ladai larti hain.

Anonymous said...

आपके दृष्टिकोण से मेरी भी सहमति है डाक्‍टर साहब।

निर्मल गुप्त said...

ashokjee,
aapkay laikh say aik sarthak bahas ki shurvat ho sakti hai.Kabhi mauka miley to meri aik kavita hai LADKIAN UDAAS HAIN ...you may see it on nirmalgupt.sulekha.com.
nice blog.cngrats.
nirmal

प्रदीप मानोरिया said...

गज़ब लाजवाव
सार्थक पड़ताली आलेख . बधाई
मेरे ब्लॉग पर दस्तक देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
मेरी नई पोस्ट कांग्रेसी दोहे पढने हेतु आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं

ज्ञान said...

समस्यायें तो सभी जगह और सभी को है, लड़कियाँ उनसे अलग नहीं हैं। हाँ उनकी श्रेणी ज़रूर अलग है।

PREETI BARTHWAL said...

अशोकप्रियरंजन जी आपने बहुत ही अच्छा लेख लिखा है। इसके लिए आपको बधाई। अपनी बात कहना चाहुंगी कि 'कदम कदम पर एक नई लङाई का सामना करना पङता है लङकीयों को। बदलाव की उम्मीद करते ही रहते है लेकिन कब तक होगा? कुछ बदलाव हुए है लेकिन वहां भी ऐसों की कमी नही होती जो राह में रोङे न अटकाते हों।'

RADHIKA said...

अशोक जी सर्वप्रथम तो अच्छे आलेख के लिए बधाई व धन्यवाद ,आपने स्त्रियों से जुड़े कई मुद्दों को अपने लेख में आलेखित कर इस दिशा में और विचार किए जाने के लिए सभीको प्रेरित किया हैं . मेरा इस संबंध में यह मानना हैं की यह समस्या समाज की हैं ,स्त्री जो भी भुगत रही हैं वह संपूर्ण समाज की दुर्बल मानसिकता का परिचायक हैं ,कुछ प्रबुद्ध पुरूष वर्ग स्त्री के विकास के लिए प्रयत्न कर रहा हैं ,किंतु यह नाकाफी हैं ,स्त्री का जीवन तभी बदलेगा ,जब वह ख़ुद इस दिशा में प्रयत्न करेगी ,आख़िर मुसीबते उसकी ही मंजिलो में रोड़ा बनकर खड़ी हैं , कुछ स्त्रियाँ ऐसा कर भी रही हैं ,किंतु कुछ प्रयत्न के करने से बहुत कुछ स्त्री विकास की आशा नही की जा सकती ,सर्वप्रथम स्त्री को ही यह समझना होगा की उसे किस दिशा में व कैसे प्रयत्न करने हैं .उसे सामाजिक व आर्थिक दोनों क्षेत्रो में मजबूत होने के साथ ही ऐसे छेड़- छाड़ करने वाले लड़को को दो थप्पड़ खींच के देने हिम्मत भी करनी पड़ेगी , अगर लड़कियों ने ऐसा करना शुरू किया तो इस तरह के लड़को की हिम्मत भी नही रहेगी ऐसा करने की .आपकी पोस्ट बहुत अच्छी हैं ,और विषय बहुत सारगर्भित और वृहत ,आपके इस पोस्ट के सभी पहलुओ पर अपनी राय में टिप्पणी में चाहकर भी पुरी नही दे सकुंगी ,अत: इस संबंध में जल्द ही एक पोस्ट निकालूंगी .
साभार

sarita argarey said...

ज्वलंत सामाजिक मुद्दे पर आपकी चिंता जायज़ है ।संचार क्रांति के इस युग में मोबाइल जैसे उपकरणों ने समाज को बहुआयामी साधन मुहैया कराए हैं , लेकिन गैर ज़िम्मेदार तौर - तरीकों ने इस बेहतरीन संपर्क साधन को घातक बना दिया है । महिलाओं की तरक्की को रोकने की ये बेहूदा हरकतें कामयाब नहीं होंगी ।
साधुवाद ।

seema gupta said...

" very critical issue presented in a very expressive manner'

regards

शोभा said...

अशोक जी,
बहुत सही और सुंदर लेख लिखा है. क्या कहूँ इस सच्चाई को बहुत करीब से महसूस भी किया है. आप जैसे लेखेक शायद समाज जी विचारधारा मैं परिवर्तन ले आयें. सस्नेह.

shelley said...

ladkio ke mamle me bahut kuch sudhara hai , par avi kai marche jitna baki hai. isme samay lagega kyoki badlaw har kshetra me samanrup se nahi hua hai.

सचिन मिश्रा said...

Bahut badiya.

jyoti saraf said...

DOCTER SAAB BAHUT BADHIYA. AP JAISI SOCH RAKHNE WALO KO DEKHKAR LAGTA HAI KI INSANIYAT ABI JINDA HAI AUR MAHILA KO SAMANTA KA ADHIKAR MILKAR RAHEGA. MAI B EK LADKI HU JO PURUSHWADI SAMAJ PROFESSION ME APNE ASTITVA AUR APNE ADHIKAR KE LIYE LAD RAHI HU. MAI B IN VISHAYO PAR LIKHNA PASAND KARTI HU. AJ TO ALAM YAH HAI KI MAHILA MUSIBATO KI PARWAH KIYE BINA APNE LAKHSYA KO PANE KE LIYE ANGE BADH RAI HAI WAHI PURUSH APNI JHUTI SHAAN BACHAYE RAKHNE KE LIYE PARESAN HAI