Wednesday, September 10, 2008

उफ़! इतनी दहेज़हत्याएँ

राष्ट्रिय अपराध नियंत्रण ब्यूरो के तजा आंकडों के मुताबिक देश में हर रोज करीब १४ महिलाएं दहेज़की भेंट चढ़जाती हैं । बीते १२ सालों में दहेज़उत्पीडन के मामलों में १२० फीसदी बढोतरी हुई है । कड़े कानून और सरकार की तमाम कोशिशें दहेज सम्बन्धी अपराधों को रोकने में विफल रही हैं । किसी भी सभ्य समाज के माथे पैर दहेज़हत्याएँ और उत्पीडन की घटनाएँ कलंक के समान होती हैं । भारत में विकास की गति तेज है, शिक्षा का भी विस्तार हुआ है, आर्थिक समृधि भी आई है, महिलायें आत्मनिर्भर भी बनी हैं, दहेज़सम्बन्धी कानूनों में भी सुधार किया गया है, फिर क्यों दहेज सम्बन्धी अपराध नहीं रुक पा रहे हैं ? यह एक बडा सवाल है जिस पर विचार करना जरूरी है । इस सवाल के जवाब तलाशने होंगे । दरअसल तमाम विकास के बावजूद भारत समाज परम्परावादी मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाया है । यही वजह है कि मोटे तौर पर आज भी न तो पुरुषों को और न महिलाओं को दहेज लेने या देने में कुछ गलत दिखाई देता है । मानसिक रूप से दहेज कि स्वीकार्यता ही इस गंभीर समस्या को खत्म नहीं होने देती । हाँ, जब कोई अपना दहेज सम्बन्धी अपराध का शिकार बनता है, तब जरूर दहेज प्रथा को गलत बताकर इसकी आलोचना करते हैं । दहेज प्रथा सामाजिक सम्बन्धों पर असर डालती है । रिश्तों पर से भरोसा कम करती है, इसलिए जरूरी है कि इस समस्या का हल निकला जाए । इसके लिए व्यापक दृष्टिकोण से सोचने कि जरूरत हैनई पीढी को खास तौर से इस कुप्रथा के खात्मे के लिया आगे आना चाहिए । अगर नई पीढी दहेज़प्रथा मिटाने का संकल्प ले ले, तो काफी हद तक समस्या का समाधान सम्भव है

7 comments:

betuki@bloger.com said...

इस कुप्रथा के खात्मे के लिए कहीं न कहीं महिलाओं को ही आगे आना होगा। घर में मौजूद ननद, सास, जेठानी, दौरानी सभी महिलाएं हैं। फिर भी महिलाओं पर अत्याचार। दहेज हत्यायें।

सचिन मिश्रा said...

Yahin to rona hai.

दिनेशराय द्विवेदी said...

सशक्त सामाजिक आंदोलन की जरूरत है।

Anonymous said...

दहेज हत्या समाज के लिए कलंक है। लेकिन इस समाज में हर आदमी के दो चेहरे हैं। वह अपनी लड़की की शादी के समय अलग विचार रखता है जबकि लड़के के विवाह के समय उसके विचार बदले हुए होते हैं।

Manisha said...

दहेज की समस्या नई पीढ़ी से नहीं, बल्कि पुरानी पीढ़ी से खत्म हो सकती है। ये पुरानी पीढ़ी वाले ही शादी की बातचीत करते हैं और दहेज मांगते और देते हैं।

मनीषा

PREETI BARTHWAL said...

यहां पुरानी पीढ़ी या नई पीढ़ी की बात नहीं।
दहेज लेने की प्रथा लोगो के दिमाग में भरी रहती है इसमे आज के लोग भी शामिल हैं। वो इसमें अपनी शान समझते है। इस सोच को बदलना होगा।

निर्मल गुप्त said...

priyaranjanjee,
your naration is superb.keep your blog regular.
NIRMAL